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"कांवड़ियों की भावनाएं आहत ना हों, इसलिए...", कांवड़ यात्रा वाले निर्देश पर यूपी सरकार का SC में तर्क

राज्य सरकार ने हलफनामे में दलील दी कि दुकानों और ढाबों के नाम में कन्फ्यूजन के कारण कांवड़ियों ने शिकायत की थी. इसलिए इस तरह का आदेश दिया गया.

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अब इस मामले पर 5 अगस्त को सुनवाई होगी. (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के उस फैसले पर अंतिरम रोक जारी रखा है, जिसमें कांवड़ रूट पर पड़ने वाले दुकानदारों को नेमप्लेट लगाने का आदेश दिया गया था. कोर्ट के आदेश पर यूपी सरकार ने जवाब भी दाखिल किया है. राज्य सरकार ने हलफनामे में कहा है कि कांवड़ रूट पर दुकान मालिकों के नाम लगाने का आदेश इसलिए दिया गया ताकि कांवड़ियों की धार्मिक भावनाएं “अनजाने में भी” आहत ना हों. इसके अलावा सरकार ने इस आदेश के पीछे "शांति व्यवस्था" बनाए रखने की दलील दी.

इंडिया टुडे से जुड़ीं सृष्टि ओझा की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य सरकार ने हलफनामे में एक और दलील दी. ये कि दुकानों और ढाबों के नाम में कन्फ्यूजन के कारण कांवड़ियों ने शिकायत की थी. इसलिए इस तरह का आदेश दिया गया. सरकार ने बताया कि पुरानी घटनाएं बताती हैं कि दुकानों में खाने-पीने की चीजों में कन्फ्यूजन को लेकर तनाव और विवाद की स्थिति बनी. ऐसी स्थिति को रोकने के लिए कदम उठाए गए हैं.

रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 25 जुलाई की रात साढ़े 10 बजे कोर्ट में जवाब दाखिल किया. सरकार ने ये भी दलील दी कि आदेश के जरिये दुकानदारों और स्थानीय विक्रेताओं के कारोबार पर कोई बैन नहीं लगाया गया है. सिर्फ मांसाहार खाना बेचने पर प्रतिबंध है. दुकानदार बाकी बिजनेस पहले की तरह कर सकते हैं.

राज्य सरकार ने जवाब में आगे लिखा है, 

"खाने को लेकर 'छोटा संशय' भी कांवड़ियों की धार्मिक भावनाएं आहत करने के लिए काफी है. और इससे मुजफ्फरनगर जैसे सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में मामला बिगड़ सकता है. यह आदेश धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर किसी तरीके से भेदभाव नहीं करता है. ये आदेश किसी धर्म या समुदाय के इतर, कांवड़ रूट में पड़ने वाले सभी दुकानदारों के लिए है."

यूपी और उत्तराखंड सरकार के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. कोर्ट में गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद और लेखक आकार पटेल ने याचिकाएं दायर की थीं. इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी थी. कोर्ट ने राज्य सरकारों से जवाब भी मांगा था.

अब शुक्रवार, 26 जुलाई को जस्टिस ऋषिकेष रॉय और एसवीएन भट्टी की बेंच ने सुनवाई की. बेंच ने कहा कि खाने की जगहों पर नाम लिखने के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता है. ये भी कहा कि अगर कोई खुद से ऐसा करना चाहता है तो किसी तरह की रोक नहीं है.

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याचिकाकर्ताओं की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि जवाब दाखिल करने के लिए उन्हें समय चाहिए. इसलिए कोर्ट ने अंतरिम रोक को बढ़ाने का फैसला लिया. अब मामले की अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी.

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