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कैलाश जोशी : मध्यप्रदेश का वो मुख्यमंत्री, जिसपर जनसंघ से ज़्यादा समाजवादियों को भरोसा था

कहानी मध्यप्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री की, जो प्रधानमंत्री को पीठ दिखाकर सो गया.

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कैलाश जोशी मध्यप्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे.
24 नवबंर 2019 रविवार को कैलाश जोशी का निधन हो गया. पॉलिटिकल किस्सों की ख़ास सीरीज़- मुख्यमंत्री. इस कड़ी में बात मध्यप्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री की, जो इमरजेंसी में जेल गया और वापस लौटा तो फिर दोबारा चुनाव जीत गया और बन गया मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री. जिसपर संघ से ज्यादा समाजवादियों को भरोसा था और जब प्रधानमंत्री उससे मिलने पहुंचे तो वो उन्हें पीठ दिखाकर सो गया. नाम था कैलाश जोशी.

कैलाश जोशी: मध्य प्रदेश के इस सीएम पर जनसंघ से ज़्यादा समाजवादियों को भरोसा था


अंक 1 - सखलेचा नहीं चलेगा, नहीं चलेगा
इमरजेंसी में हुई जेल कई नेताओं को फली थी. लेकिन कम ही हुआ कि किसी नेता को विधानसभा के सामने गिरफ्तार करके जेल भेजा गया और जब वो बाहर आया तो न सिर्फ चुनाव जीतकर दोबारा विधानसभा में घुसा, बल्कि मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ली. और ये सब बिना किसी और कि लकीर छोटी किए. इमरजेंसी हटने के बाद मोरार जी देसाई पीएम बने. उन्होंने उन सभी राज्यों की सरकरें बर्खास्त कर दीं, जहां कांग्रेस शासन कर रही थी. मध्य प्रदेश में भी उनमें से एक था. नए सिरे से विधानसभा चुनाव हुए.
इमरजेंसी के बाद जब चुनाव हुए तो जनता पार्टी की जीत हुई और प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई.
इमरजेंसी के बाद जब चुनाव हुए तो जनता पार्टी की जीत हुई और प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई.

कई विपक्षी दलों के मर्जर से बनी जनता पार्टी ने 320 में 231 सीटें जीतीं. इन 231 सीटों में अकेले जनसंघ गुट की 129 सीटें थीं. दूसरे नंबर पर समाजवादी थे, जिन्होंने इस गठबंधन में 80 सीटें जीती थीं. सामान्य गणित कहता था, मुख्यमंत्री जनसंघ से बने. लेकिन जनसंघ में भी मुख्यमंत्री पद के तीन-तीन दावेदार थे. कैलाश जोशी, सुंदरलाल पटवा और वीरेंद्र कुमार सखलेचा. तीन दावेदारों के बीच जनसंघ की स्वाभाविक पसंद थे सखलेचा. 1967 में गोविंद नारायण सिंह के वक्त जब संविद सरकार बनी थी, तो सखलेचा डिप्टी सीएम थे. उन्हें प्रशासनिक राजकाज का अनुभव था. फिर जनसंघ के संगठन मंत्री और मध्यप्रदेश में जनसंघ के पितृ पुरुष माने जाने वाले कुशाभाऊ ठाकरे का हाथ भी सखलेचा के सिर पर ही था.

कुशाभाऊ ठाकरे चाहते थे कि मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा ही बनें.

लेकिन समाजवादी नहीं चाहते थे कि सखलेचा सीएम बने. वजह? सखलेचा की जिस बात पर कुशाभाऊ वारी-वारी जाते थे, उसी के लिए वो समाजवादियों को फूटी आंख नहीं सुहाते थे. सखलेचा मनसा-वाचा-कर्मणा संघ के आदमी थे. वो सीएम बनते तो मध्यप्रदेश सरकार संघ की शाखा संस्कृति लाकर रहते. इसीलिए जनता पार्टी में समाजवादी, भारतीय लोकदल और दूसरे घटक दलों ने सखलेचा के नाम पर वीटो लगा दिया. जनसंघ 1952 के चुनाव से कोशिश कर रहा था. 25 साल बाद राजयोग बना था. लेकिन गरारी जो फंसी तो चलने का नाम नहीं ले रही थी. ऐसे में कुशाभाऊ ने संयम से काम लिया. एक कदम पीछे हटे. कैलाश जोशी का नाम आगे बढ़ाया जो 1972 से 1977 तक नेता प्रतिपक्ष रहे थे.
समाजवादी खेमा कैलाश जोशी को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था और मुहर भी कैलाश जोशी के नाम पर ही लगी.
समाजवादी खेमा कैलाश जोशी को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था और मुहर भी कैलाश जोशी के नाम पर ही लगी.

मूलतः एक कपड़ा व्यापारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले कैलाश चंद्र जोशी देवास से थे. वही देवास, जहां 1929 से संघ के संस्थापक हेडगेवार का आना-जाना था. जोशी जनसंघ बनने के बाद से ही इसके साथ जुड़े हुए थे. एक बार नगर पंचायत अध्यक्ष रहने के बाद जोशी 1962 से लगातार बागली विधानसभा से विधायक बनते आ रहे थे. 19 महीने तक मीसा के तहत जेल में बंद रहने के बाद जब वो बाहर आए तो बागली ने उन्हें फिर जिताया था. लेकिन जोशी की स्वीकार्यता बागली से बाहर भी थी और जनसंघ से बाहर भी. व्यवहार में कड़क जोशी के विरोधी भी कहते, क्या सीधा और सच्चा आदमी है. इसीलिए समाजवादियों को लगा कि जोशी की छांव में वो बचे रहेंगे और आगे पनपने की गुंजाइश होगी. सो उन्होंने हामी भर दी. जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड को भी जोशी का नाम ज़्यादा जंचा. 24 जून, 1977 को कैलाश जोशी मध्यप्रदेश के इतिहास में पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री हुए.
अंक 2 - मोरारजी देसाई की तरफ पीठ करके सोए जोशी

मोरारजी देसाई जब कैलाश जोशी से मिलने भोपाल गए थे, तो कैलाश जोशी उनको पीठ दिखाकर सो गए थे.

नए मुख्यमंत्री पहले तो धड़ाधड़ अध्यादेश लाकर कानून बनाने के लिए खबरों में आए. मगर फिर सिर्फ और सिर्फ अपनी नींद के चलते सुर्खियां कायम करते दिखे. अखबारों ने लिखा कि जोशी कहीं जाने के लिए घर से एयरपोर्ट के लिए निकले, रास्ते में नींद आ गई और फिर वो अपनी यात्रा को बीच में ही छोड़कर घर आकर सो गए. बीमारी का सुनकर जब लोग सीएम आवास पहुंचते, सीएम का स्टाफ किसी को मिलने नहीं देता. बस एक जवाब, साहब आराम कर रहे हैं. लोग कहने लगे कि किसी बीमारी की वजह से कैलाश जोशी को इतनी नींद आती थी. जोशी से पूछो तो कहते, मुझ पर एक करीबी आदमी ने टोटका करवा दिया है.

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट में याचिका लगाई गई थी कि कैलाश जोशी मुख्यमंत्री पद के लिए अनफिट हैं.

जल्द मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका लग गई. अखबारों की 86 कतरनों के साथ. कि जोशी सीएम के लिए अनफिट हैं. खबरें जनता पार्टी संसदीय बोर्ड तक भी पहुंची. आजिज़ आकर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 3 दिन के मध्यप्रदेश दौरे का ऐलान किया. देसाई भोपाल के एयरपोर्ट पहुंचे. प्रोटोकॉल के मुताबिक जोशी को आगवानी के लिए पहुंचना चाहिए था. लेकिन देसाई को मिले सखलेचा. फिर दोनों सीधे सीएम आवास रवाना हुए. पत्रकार मायाराम सुरजन बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोरारजी को देखकर भी जोशी उठकर बैठ नहीं पाए. उन्हें धीरे से बताया गया कि पीएम साहब मिलने आए हैं. जोशी सिर्फ हां-हूं कर पाए. फिर दूसरी तरफ करवट लेकर सो गए. मोरारजी ने इसके बाद उनके आराम में खलल नहीं डाला.
लेकिन खलल तो पड़ चुका था. सीएम आवास पर इसी दिन जनता पार्टी विधायक दल की बैठक थी. जोशी से मिलने के बाद इस बैठक को मोरारजी ने संबोधित किया. जोशी तब भी नींद में. पीएम को देखकर सीएम ने करवट बदली, सभी को मालूम चल गया. प्रेस वालों ने सवाल किया कि जोशी को दौरे से दूर क्यों रखा है, तो मोरारजी ने कहा, सीएम साहब की तबीयत खराब है, मैं खुद डॉक्टर से मिला हूं.
कैलाश जोशी के बारे में बीजेपी नेता कहते थे कि उनकी बीमारी की सबसे बड़ी वजह कुशाभाऊ ठाकरे थे.
कैलाश जोशी के बारे में बीजेपी नेता कहते थे कि उनकी बीमारी की सबसे बड़ी वजह कुशाभाऊ ठाकरे थे.

लेकिन जोशी की नींद को लेकर टोने-टोटके के अलावा कम से कम एक और मत था. उस वक्त जनता पार्टी के महासचिव रघु ठाकुर का. वो कहते थे कि कैलाश जोशी की खराब तबीयत की वजह कोई और नहीं, खुद कुशाभाऊ ठाकरे हैं. बकौल रघु ठाकुर, कुशाभाऊ कैलाश जोशी को पार्टी के ऐसे-ऐसे काम दे देते थे कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें पूरा करना बस की बात नहीं होती थी. जोशी से काम छूट जाते और कुशाभाऊ के डर की वजह से वो बीमार पड़ जाते. इतने बीमार कि अगर कुशाभाऊ ठाकरे कभी कैलाश जोशी से मिलने के लिए घर आ जाते थे तो भरी गर्मी में कैलाश जोशी रजाई ओढ़कर सो जाते थे. खैर, मोरारजी को जो देखना था, देख चुके थे. वह दौरा खत्म करके दिल्ली लौट गए.
अंक - 3 अटल बिहारी वाजपेयी रवानगी की भूमिका बनाने लगे
Lal Krishna Advani, President of BJP and Former Deputy Prime Minister with Atal Bihari Vajpayee, former Prime Minister of India and Kailash Joshi at book release function in New Delhi, India
अटल बिहारी वाजपेयी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कह दिया था कि बीमारी की वजह से कैलाश जोशी खुद ही इस्तीफा देकर आराम करना चाहते हैं.

कैलाश जोशी तबीयत से हारे ही हुए थे, इतने में एक और आघात हुआ. एक दिन इलाहाबाद से आई एक महिला ने भोपाल में प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उस महिला ने कहा कि वो कैलाश जोशी की पहली पत्नी है. पत्रकारों के सामने रोते हुए उस महिला ने दावा किया था कि कैलाश जोशी से उसकी बाकायदा शादी हुई है. लेकिन इसे एक राजनीतिक स्टंट माना गया. लेकिन इससे जोशी के इस्तीफे की चर्चा फिर चल पड़ी.
इतने में अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदौर में प्रेस से कह दिया कि जोशी तो बीमारी के चलते इस्तीफा आराम करना चाहते हैं, लेकिन समाजवादियों की ज़िद है कि वो इस्तीफा न दें. ये जोशी के लिए साफ इशारा था कि जनसंघ अपना मन बना चुका है. लेकिन शरीर साथ नहीं ही दे रहा था. वाजपेयी के बयान के तीन दिन बाद जोशी ने तय किया कि दिल्ली के एम्स जाकर इलाज करवाया जाए.
कैलाश जोशी ने चंद्रशेखर को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वो मुख्यमंत्री बने रहना चाहते हैं.
कैलाश जोशी ने चंद्रशेखर को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वो मुख्यमंत्री बने रहना चाहते हैं.

जोशी जानते थे कि दिल्ली जाकर अस्पताल में भर्ती होने का सीधा मतलब भोपाल खो देना है. तो उन्होंने जनता पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर को एक चिट्ठी लिखकर बताया कि तबीयत सुधर रही है. इसलिए सीएम बने रहना चाहता हूं. बात साबित करने के लिए उन्होंने चिट्ठी वाली शाम को कैबिनेट की एक मीटिंग भी बुला ली. सूबे के पूरे मंत्री तैयारी के साथ सचिवालय पहुंच गए. जोशी ने कपड़े बदले. लेकिन गाड़ी पोर्ट पर लगने को हुई कि उनका मन बदल गया. जोशी सो गए. सचिवालय इत्तला की गई कि सीएम साहब आराम करेंगे.
अगली शाम जोशी दिल्ली पहुंच गए. एम्स में इलाज शुरू हुआ. मध्यप्रदेश सरकार ने दो दिन बाद मेडिकल बुलेटिन जारी किया. इसमें सब था, सिवाय बीमारी के नाम के. लेकिन जो बातें हो रही थीं, उनमें एक शब्द बार-बार आता था - नर्वस ब्रेकडाउन.
अंक - 4 अब जोशी को विश्राम दिया जाता है

दिल्ली में जनता पार्टी की बैठक में तय किया गया कि अब कैलाश जोशी मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे.

कैलाश इसके बाद ज़्यादा दिन सीएम नहीं रहे. दिल्ली में जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक हुई. अब तक मोरारजी की ही तरह पार्टी चंद्रशेखर के साथ भी मुलाकात के दौरान सो जाने वाली घटना हो चुकी थी. जनसंघ की नए चेहरे की मांग मज़बूत हो गई थी. ऐलान हो गया कि जोशी की जगह लेंगे वीरेंद्र कुमार सखलेचा सीएम होंगे.
कैलाश जोशी ने कुर्सी बचाने की आखिरी कोशिश तब की, जब वीरेंद्र सखलेचा का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए प्रस्तावित हुआ. विधायक दल की मीटिंग में 25 विधायकों ने सखलेचा के खिलाफ वोट किया. लेकिन बात कब की कैलाश जोशी के हाथ से निकल चुकी थी. हटना तय था. कैलाश जोशी ने कहा, सम्मानजनक पद चाहिए. तब उन्हें बिजली और उद्योग मंत्री बनाया गया.
वीरेंद्र सखलेचा जब मुख्यमंत्री बने, तो कैलाश जोशी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया.
वीरेंद्र सखलेचा जब मुख्यमंत्री बने, तो कैलाश जोशी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया.

जनता पार्टी में जब फूट पड़ी और मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद 1980 में चुनाव हुए तो कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बने. लेकिन 1985 में जब दोबारा बीजेपी चुनाव हार गई और कांग्रेस के मोतीलाल वोरा मुख्यमंत्री बने तो पार्टी को एक बार फिर से कैलाश जोशी ही याद आए. पार्टी आलाकमान ने उनको सम्मान भी दिया और नेता प्रतिपक्ष का पद भी. लेकिन 1990 आते-आते कुशाभाऊ ने सखलेचा की जगह सुंदरलाल पटवा में दिल लगाना शुरू कर दिया था. उस साल जब सत्ता बीजेपी के हाथ आई तो कैलाश जोशी ने दावा ठोंका. लेकिन भाजपा के संसदीय बोर्ड ने उन्हें ही पटवा का नाम आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी थमा दी. जोशी तब खूब नाराज़ हुए थे. तब जोशी ने पटवा के मंत्रीमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया था. बाद में बिजली मंत्री बने.
Kailash Joshi with Atal Bihari Vajpayee, former Prime Minister of India, Babulal Gaur, Chief Minister of Madhya Pradesh, Uma Bharti, Murli Manohar Joshi and Lal Krishna Advani, President of BJP and Former Deputy Prime Minister at Kailash Joshi's book release function in New Delhi, India
2002 में जब उमा भारती ने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष बनने से इन्कार कर दिया, जब कैलाश जोशी को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

1998 में कैलाश जोशी राजगढ़ से सांसदी का चुनाव 56 हज़ार की मार्जिन से हारे. जीते दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह. लेकिन जोशी के कद को देखते हुए वाजपेयी ने उन्हें एक बार फिर राज्यसभा भेजा गया. 2002 में जब विक्रम वर्मा को दिल्ली बुलाया गया और उमा भारती ने भाजपा अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया, कैलाश जोशी को भितरघात से जूझ रही मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया.
2004 में वाजपेयी सत्ता से बाहर हो गए, लेकिन जोशी के सितारे बुलंद रहे. 2004 में कैलाश जोशी ने भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और ये जीत 2014 तक बरकरार रही. 2014 में जब नरेंद्र मोदी और लालकृष्ण आडवाणी के बीच अदावत खुलकर सामने आ गई थी, कैलाश जोशी ने आडवाणी से कहा कि वो भोपाल से चुनाव लड़ें. लालकृष्ण आडवाणी को तो भोपाल से टिकट नहीं ही मिला, कैलाश जोशी का भी टिकट काट दिया गया.

कैलाश जोशी की लिखी किताब का विमोचन अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था.

इसके बाद कैलाश जोशी का वक्त बीतता मालूम हुआ. कैलाश जोशी 90 के करीब हैं. भाजपा के 75 फार्मूले के तहत उन्हें न तो राज्य न तो केंद्र में कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिल सकती है. उनके बारे में आखिरी बार शोर मचा था जब मार्च 2014 में कांग्रेस ने एक कथित स्टिग जारी करके कहा कि जोशी एक करोड़ में टिकट बेच रहे हैं. चुनाव का मौसम था तो लोगों ने इस बात को ज़्यादा कान नहीं दिया. लेकिन लोगों ने याद ज़रूर किया कि कैसे कैबिनेट मंत्री बने कैलाश जोशी में इतनी सादगी थी कि उनके पास एक कार तक नहीं थी. 17 मई, 1981 को कैलाश जोशी लगातार पांचवी बार बागली से विधायक बने. इसके लिए कार्यकर्ताओं ने कैलाश जोशी का सम्मान कार्यक्रम रखा. अटल बिहारी वाजपेयी और राजमाता सिंधिया को दावत दी गई. मध्यप्रदेश की राजनीति में संत कहलाने वाले जोशी का मंच पर सम्मान हुआ और कार्यकर्ताओं ने चंदे से पैसा जुटाकर खरीदी गई एम्बेसडर कार की चाबी जोशी को सौंपी गई. ये जोशी की पहली गाड़ी थी. ऐसे हैं कैलाश जोशी.

कैलाश जोशी की आखिरी बार चर्चा 2014 में हुई थी, जब कहा गया था कि वो एक करोड़ रुपये में टिकट बेच रहे हैं.

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