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सबरीमाला में महिलाओं के जाने पर आपत्ति जताने वाली जज खुद मंदिर पहुंचीं

जस्टिस (रिटायर्ड) इंदू मल्होत्रा ने फैसले में कहा था कि कोर्ट को धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए.

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सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस इंदू मल्होत्रा (फोटो- पीटीआई/इंडिया टुडे)

जस्टिस (रिटायर्ड) इंदू मल्होत्रा. सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple) में महिलाओं के प्रवेश पर असहमति जताने वाली महिला जज. इस फैसले के बाद जस्टिस मल्होत्रा (Justice Indu Malhotra) की खूब आलोचना हुई थी कि उन्होंने मंदिर में सभी उम्र के महिलाओं के प्रवेश के फैसले पर असहमति जताई. अब जस्टिस इंदू मल्होत्रा खुद सबरीमाला मंदिर के दर्शन करने पहुंचीं. उनकी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इसमें वो पूजा करती दिख रही हैं. जस्टिस मल्होत्रा सुप्रीम कोर्ट की उस बेंच का हिस्सा थीं जिसने सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं को जाने की अनुमति दी थी. लेकिन 5 जजों की उस बेंच में जस्टिस मल्होत्रा का अलग फैसला था.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस इंदू मल्होत्रा 13 जनवरी को सबरीमाला मंदिर दर्शन के लिए गई थीं. इस दौरान उन्होंने मीडिया से कहा कि वो यहां मंदिर का दर्शन करने आई हैं ना कि केस के बारे में बातचीत करने. मकाराविलाक्कू की पूर्व संध्या पर वो पूजा करने पहुंची थीं. केरल में मकर संक्रांति के दिन मकाराविलाक्कू मनाया जाता है और इस दिन भगवान अयप्पा की पूजा होती है.

जस्टिस मल्होत्रा ने क्या कहा था?

सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में सभी महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी थी. पहले मंदिर में 10 से 50 साल की महिलाओं का जाना मना था. महिलाओं की अनुमति नहीं होने के पीछे तर्क ये है कि सबरीमाला भगवान अयप्पा का मंदिर है. भगवान अयप्पा बाल ब्रह्मचारी हैं. 10 से 50 साल की उम्र तक की महिलाओं को पीरियड्स होते हैं. 

5 जजों की इस बेंच ने कहा था कि महिलाओं को पूजा से रोकने से उनकी गरिमा को ठेस पहुंचती है. सालों से चले आ रहे पितृसत्तात्मक नियम बदले जाने चाहिए. लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है. इस बेंच में एकमात्र जज जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने असहमति जताई थी. जस्टिस इंदू ने कहा था कि कोर्ट को धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए. उन्होंने तर्क दिया था कि धार्मिक आस्थाओं को समाज को ही तय करना चाहिए ना कि कोर्ट को. जस्टिस मलहोत्रा ने कहा था कि सबरीमाला श्राइन के पास आर्टिकल-25 के तहत अधिकार है, इसलिए कोर्ट इन मामलों में दखल नहीं दे सकता है.

जस्टिस मल्होत्रा ने असहमति जताते हुए कहा था, 

"धर्म के मामले में तार्किकता नहीं देखनी चाहिए. गहरी धार्मिक आस्थाओं के मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए. धार्मिक प्रथाओं को सिर्फ समानता के अधिकार के आधार पर नहीं परखा जा सकता."

कई महत्वपूर्ण केस में शामिल रहीं

जस्टिस इंदू मल्होत्रा सुप्रीम कोर्ट में जज बनने वाली सातवीं महिला थीं. जज बनने से पहले वो सुप्रीम कोर्ट में ही सीनियर वकील थीं. 12 मार्च 2021 को वो सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुई थीं.

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की जज बनने के बाद जस्टिस इंदू मल्होत्रा कई अहम फैसलों का हिस्सा रहीं. सबरीमाला केस के अलावा अडल्ट्री के फैसले में भी वो बेंच में शामिल थीं. अडल्ट्री यानी शादी के इतर किसी और व्यक्ति से प्रेम संबंध का होना. सितंबर 2019 में इसे कानूनी अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था. इसके अलावा समलैंगिकता को अपराध से बाहर करने के फैसले में भी वो शामिल थीं.

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