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गलवान में क्या चीनी सेना भारत की सीमा में घुसी थी? विदेश मंत्री जयशंकर ने लल्लनटॉप को बताया

Foreign Minister S Jaishankar ने डोकलाम विवाद पर भी बात की. उन्होंने बताया वहां विवाद असल में हुआ क्यों था.

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एस जयशंकर ने लल्लनटॉप के जमघट प्रोग्राम में गलवान औऱ डोकलाम पर खुलकर बातचीत की. (फोटो - आजतक)

लद्दाख के गलवान घाटी में 15 जून, 2020 की रात भारत और चीन की सेना के बीच झड़प हुई थी. भारत की तरफ से इस झड़प में एक कमांडर समेत 20 जवान शहीद हो गए थे. वहीं, कुछ सैनिक घायल भी हो गए थे. चीन के भी कुछ जवानों के मारे जाने की ख़बर आई. इस झड़प के बाद से दोनों देशों के संबंधों में तनाव भी देखा गया. गलवान में क्या स्थिति है,  इस पर डॉ. एस जयशंकर ने लल्लनटॉप से बात की. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने द लल्लनटॉप के खास में कार्यक्रम जमघट में  खुलकर बातचीत की. गलवान पर उन्होंने बताया,

"मई 2020 के पहले गलवान में नॉर्मल सिचुएशन ये थी कि दोनों सेनाओं के अपने-अपने बेसेज़ थे. वो बेस से बाहर निकलकर पट्रोलिंग करते थे और पट्रोलिंग करके वापस चले जाते थे. 2020 में चीन ने पहले के एग्रीमेंट्स का उल्लंघन किया. वो काफ़ी बड़ी संख्या में अपने सैनिकों को LAC तक ले आए. हमारा एग्रीमेंट है कि LAC के पास एक लेवल से ज़्याद ट्रूप्स नहीं लाना चाहिए. जब उन्होंने डिप्लॉय किया तो हमने काउंटर-डिप्लॉय किया. काउंटर-डिप्लॉयमेंट में सेनाएं अपने बेस से निकलकर टेंपररी कैंप बनातीं हैं. उनके बीच की दूरी काफ़ी घट जाती है. काफ़ी नज़दीक हो जाते हैं. सबसे ज़्यादा ख़तरा क्लोजअप फ़ॉवर्ड डिप्लॉयमेंट्स में है. हमारी कोशिश है कि मिलिटरी कमांडर टॉक्स से समाधान निकलना चाहिए . दोनों साइड अपने बेसेज़ में चले जाएं. और, दोनों के बीच जो दूरी पहले थी, वो यथास्थिति लौट आए."

बातचीत में उन्होंने बताया कि गलवान, पंगोंग सो, गोगरा में समाधान निकल चुका है. इससे पहले ऐसा समझौता 1958 में बाराहुती में हुआ था. पट्रोलिंग दोनों साइड्स नहीं कर रहे. अभी 1-2 जगह पट्रोलिंग पर विवाद है. कौन कहां तक आएगा, कैसे रुकेगा? अगर टकराव हुआ तो उसमें ख़तरा क्या है? अभी इस पर बातचीत चल रही है.

डोकलाम विवाद पर क्या बोले जयशंकर?

चीन और भूटान के बीच तकरीबन 477 किलोमीटर लंबी सीमा को लेकर लंबे समय से विवाद है. दोनों के बीच अब तक राजनयिक संबंध भी नहीं हैं. डोकलाम क्षेत्र सिक्किम के पास भारत-चीन-भूटान ट्राइजंक्शन पर स्थित है. भारत डोकलाम पर भूटान के दावे का समर्थन करता रहा है. भारत इस जगह को भूटान का मानता है. भूटान से हुई संधि के चलते यहां अपनी सेनाओं को तैनात रखता है ताकि भारतीय सीमाएं सुरक्षित रहें. जब चीन ने जून 2017 में यहां सड़क निर्माण का काम शुरू किया, तो भारतीय सैनिकों ने उसे रोक दिया था.

जब लल्लनटॉप ने पूछा डोकलाम में क्या हुआ? तो उनका जवाब था,

"डोकलाम एक अलग मसला है. वहां ट्राइजंक्शन को बदलने की कोशिश हुई. हमारे बीच एक समझौता है कि आपस में बैठकर तीनों पार्टियां (भारत, भूटान और चीन)  ट्राइजंक्शन डिसाइड करेंगी. वहां चीन स्थिति तय करने की कोशिश कर रहा था. हमने इसका विरोध किया. और, गतिरोध के बाद ये तय हुआ कि वो वापस जाएं, हम वापस आएं. ताकि ट्राइजंक्शन आपसी सहमति से तय किया जा सके."

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जब जयशंकर से पूछा गया कि क्या हमें इसका अंदेशा पहले से था? तब उन्होंने बताया,

"पड़ोसी देशों के साथ हमारा जिस तरह का बॉर्डर है, उसमें आर्मी अपने हिसाब से प्लानिंग करती है. आप नज़र रखते हैं. हमारे बीच स्टैंडऑफ़ हुआ. और, दोनों पार्टियां मसले को सुलझाना चाहतीं थीं."

डोकलाम विवाद सुलझाने में किसकी भूमिका सबसे अहम थी? इस सवाल पर जयशंकर का कहना है कि डोकलाम में भारत की सेना ने काम किया और मोदी सरकार ने भी. किसी भी स्थिति में लीडरशिप को क्लीयर रहना होता है और फ़ौज ग्राउंड पर काम करती है. उनके बीच में जो लोग होते हैं, सबका थोड़ा-थोड़ा योगदान होता है.

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