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लड़कियों की शादी की उम्र 18 नहीं 9 साल हो, ये इराक के न्याय मंत्रालय का संसद में प्रस्ताव है

इराक के न्याय मंत्रालय ने यह बिल पेश किया है. इस बिल का उद्देश्य देश के 1959 पर्सनल स्टेटस लॉ में संशोधन करना है. इस कानून में शादी के लिए लड़कियों की उम्र 18 साल बताई गई है, जिसे घटा कर 9 साल करने का प्रस्ताव रखा गया है.

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इस बिल का उद्देश्य देश के पस्रनल स्टेटस लॉ 1959 में संशोधन करना है. (सांकेतिक फ़ोटो/Unsplash.com)

इराक की संसद में एक बिल का प्रस्ताव रखा गया है. इसमें लड़कियों के लिए शादी/निकाह की कानूनी उम्र 18 साल से घटा कर सिर्फ़ 9 साल करने की बात कही गई है. बिल में यह भी प्रावधान किया गया है कि कोई भी व्यक्ति चुन सकता है कि उसके पारिवारिक मामले धार्मिक अथॉरिटी तय करेगी या सिविल ज्यूडिशरी.

इराक के न्याय मंत्रालय ने यह बिल पेश किया है. इसका उद्देश्य देश के पर्सनल स्टेटस लॉ 1959 में संशोधन करना है. इस कानून में शादी के लिए लड़कियों की उम्र 18 साल बताई गई है. खबर सामने आने के बाद से ही इस बिल की कड़ी आलोचना हो रही है. लोगों को डर है कि इससे उत्तराधिकार, तलाक और बच्चों की कस्टडी के मामलों में अधिकारों का हनन होगा.

न्यूज़ एजेंसी AFP की रिपोर्ट के मुताबिक अगर यह बिल पारित होता है, तो 9 साल की उम्र की लड़कियों और 15 साल की उम्र के लड़कों को शादी की अनुमति मिल जाएगी. आलोचकों ने इससे बाल विवाह और यौन शोषण बढ़ने की आशंका जताई है. उनका तर्क है कि यह कदम महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में लगी दशकों की मेहनत को कमजोर करेगा.

मानवाधिकार और महिला संगठनों के साथ सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं ने भी इस बिल का विरोध किया है. उनका कहना है कि इससे युवा लड़कियों की शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण पर बुरा असर पड़ेगा. उनका तर्क है कि बाल विवाह के कारण स्कूल छोड़ने की दर बढ़ जाती है. समय से पहले गर्भधारण हो जाता है. घरेलू हिंसा का खतरा भी बढ़ जाता है.

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बच्चों से जुड़ी यूनाइटेड नेशन्स की एजेंसी UNICEF के अनुसार, इराक में 28 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले ही हो जाती है.

ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) की रिसर्चर सारा सनबार ने AFP से कहा,

"इस कानून के पारित होने से देश आगे नहीं बल्कि पीछे की ओर जाएगा. इस उम्र में लड़कियों को खेल के मैदान और स्कूल में होना चाहिए, शादी के जोड़े में नहीं."

इराक महिला नेटवर्क की अमल कबाशी ने भी इसका कड़ा विरोध करते हुए कहा, 

"यह बिल पहले से ही रूढ़िवादी समाज में, पारिवारिक मुद्दों पर पुरुष वर्चस्व को बड़ी छूट देता है."

इस बिल को लेकर जुलाई में कई सांसदों ने आपत्ति जताई थी तो इसमें बदलाव करने के लिए इसे वापस ले लिया गया था. लेकिन 4 अगस्त को इसे शिया गुटों का समर्थन मिला. बिल के समर्थकों का दावा है कि इसका उद्देश्य इस्लामी कानून को मानक का दर्जा देना और युवा लड़कियों को "अनैतिक संबंधों" से बचाना है. वहीं, विरोधियों का कहना है कि यह तर्क बेकार है. यह बिल बाल विवाह जैसी वास्तविकताओं को नजरअंदाज करता है.

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