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ईरान ने 12 अभिनेत्रियों पर बैन लगा दिया, वजह? हिजाब नहीं करती थीं

ईरानी अधिकारियों ने तारानेह अलीदूस्ती, कतायुन रियाही और फ़तेमेह मतामेद-आरिया समेत 12 अभिनेत्रियों को हिजाब क़ानून का उल्लंघन करने के लिए बैन कर दिया है. अब वे फिल्मों में काम नहीं कर पाएंगी.

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तारानेह अलीदूस्ती, कातायुन रियाही और फतेमेह मोटामेद-आरिया (फ़ोटो - सोशल मीडिया)

बीते साल ईरान से हिजाब के प्रतिरोध की ख़ूब ख़बरें आईं. अब ख़बरें बदल गई हैं. ईरान ने 'हिजाब क़ानून' न मानने के लिए 12 ऐक्ट्रेसेज़ पर बैन लगा दिया है. यानी वो फ़िल्मों में काम नहीं कर सकेंगी.

अंतरराष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी AFP की रिपोर्ट के मुताबिक़, ईरानी अधिकारियों ने तारानेह अलीदूस्ती, कतायुन रियाही और फ़तेमेह मतामेद-आरिया समेत 12 अभिनेत्रियों को हिजाब क़ानून का उल्लंघन करते हुए पाया है. अब उन्हें फ़िल्मों में काम करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

ईरान के संस्कृति और इस्लामी मार्गदर्शन मंत्री मोहम्मद मेहदी इस्माइली ने साप्ताहिक कैबिनेट बैठक के बाद स्थानीय मीडिया से कहा,

"जो लोग क़ानून का पालन नहीं करेंगे, उन्हें काम नहीं करने दिया जाएगा."

अलीदूस्ती और रियाही उन हस्तियों में से हैं, जिन्हें बीते साल हिजाब-विरोधी आंदोलन के लिए गिरफ़्तार तक किया गया था.

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और आंदोलन हो क्यों रहा था? सितंबर, 2022 में ईरान की मोरैलिटी पुलिस ने महसा अमीनी नाम की एक ईरानी-कुर्द लड़की को हिजाब के उल्लंघन के लिए हिरासत में लिया. बाद में उस लड़की की मौत हो गई. ईरान पुलिस पर आरोप लगे कि उन्होंने महसा की 'कस्टोडियल हत्या' की है. इस घटना के बाद महिलाओं ने अलग-अलग तरीक़ों से विरोध प्रदर्शन किए. सार्वजनिक तौर पर बाल काटे, हिजाब जलाए, सड़कों पर उतरीं, सोशल मीडिया पर हैशटैग चलाए. ईरानी अधिकारियों ने प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को दंगाई तक कह दिया.

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पिछले साल के विरोध प्रदर्शनों के बाद से ऐसी कई ख़बरें आईं कि महिलाएं ड्रेस कोड का उल्लंघन कर रही हैं. अलीदूस्ती और रियाही ने तब इस आंदोलन में अपनी आवाज़ मुखर की थी.

ईरान और हिजाब

1920 के दशक में ईरान में हिजाब के खिलाफ पहली बार महिलाओं का प्रतिरोध दिखा. वे सार्वजनिक जगहों पर बिना हिजाब के दिखने लगीं. तब सत्ता पर रेज़ा शाह थे. उनकी सत्ता के तहत हिजाब पहनने को बढ़ावा दिया गया. यहां तक कि 1936 में उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर हिजाब पहनने को अनिवार्य कर दिया. मगर रेज़ा शाह के बाद मोहम्मद रेज़ा पहलवी की सत्ता में हिजाब को 'पिछड़ा' माना जाने लगा. उच्च और मध्यम वर्ग की महिलाएं फिर से हिजाब के बिना सड़कों पर दिखने लगीं. नतीजतन, 1970 का दशक तक आते-आते हिजाब पहनना ही शाह के विरोध का प्रतीक बन गया. शिक्षित, मध्यम और उच्च वर्ग की महिलाएं हिजाब जानबूझकर पहनने लगीं.

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1979 में पश्चिमी सत्ता और प्रभाव के ख़िलाफ़ ईरान में क्रांति हुई. पहलवी राजवंश को उखाड़ फेंका गया. लेकिन ये सत्ता इस्लामिक थी, सो हिजाब को फिर से प्रोत्साहित किया गया. क्रांति के चार साल बाद - 1983 में - हिजाब अनिवार्य हो गया. शरिया की व्याख्या पर आधारित ईरानी क़ानून के तहत फ़रमान जारी किया गया कि महिलाएं बाल ढकेंगी, हाथ और चेहरे को छोड़कर बाक़ी सभी अंगों को ढकने वाले ढीले-ढाले कपड़े पहनेंगी.

ईरान सरकार ने हाल के साल-महीनों में हिजाब क़ानून का उल्लंघन करने वाली महिलाओं और व्यवसायों के ख़िलाफ़ 'कार्रवाई' और सख़्त कर दी है. सितंबर 2022 में ईरान के सांसदों ने महिलाओं की सज़ा को सख़्त करने के पक्ष में मतदान किया.

क्या-क्या प्रावधान हैं?

हिजाब और शुद्धता विधेयक (2022) के मुताबिक़,

  • ऐसे कपड़े पहनना जो गर्दन या जांघ को न ढकते हों या किसी के टखने या बाहें दिख रहे हों, तो उसे ग़ैर-क़ानूनी माना जाएगा.  
  • जो महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर 'अनुचित' कपड़े पहने हुए पकड़े जाएंगी, उन्हें चौथी डिग्री की सज़ा दी जाएगी.
  • दंड संहिता के अनुसार, इसका मतलब है पांच से 10 साल की जेल या 180 मिलियन से 360 मिलियन रियाल (तीन से छह लीख रुपये) का जुर्माना, या दोनों.
  • मीडिया और सोशल नेटवर्क पर 'नग्नता' को बढ़ावा देने या 'हिजाब का मज़ाक उड़ाने' वालों के लिए जुर्माना.
  • रकार ने मॉनिटर्स (मुखबिर एजेंट) के लिए एक मोबाइल ऐप और वेबसाइट शुरू की, ताकि ईरान की जनता हिजाब न पहनने वाली महिलाओं की ख़बर अफ़सरों तक पहुंचाएं.
  • विश्वविद्यालय में लड़के-लड़की का आपस में बात करना अपराध होगा.
  • परफ्य़ूम भी नहीं लगा सकते, अपराध होगा.
  • महिलाओं और पुरुषों की सब-वे ट्रेन्स तक अलग कर दीं.

विधेयक को गार्जियन काउंसिल के पास भेजा गया है. ये मौलवियों और न्यायविदों की एक रूढ़िवादी संस्था है, जो अंतिम निर्णय लेगी. वहीं, UN ने ईरानी सरकार के इस क़दम को भयानक लिंग-भेद बताया है.