अगर आप गांव के इलाके में रहते हैं, या कभी रहे हों तो आप सांड की जरूरत को समझते होंगे. क्योंकि गाय के गर्भाधान के लिए इसकी मदद ली जाती है. अगर सांड नहीं तो फिर इसके लिए किसी डॉक्टर की मदद लेनी होती है. लेकिन इन दोनों उपायों के बावजूद गिर, साहीवाल और रेड शिंडी जैसी अच्छी नस्ल की गायें कम होती जा रही थीं. लेकिन अब राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) के वैज्ञानिकों ने खोज लिया है एक तीसरा उपाय - क्लोनिंग.
NDRI करनाल के वैज्ञानिकों ने देश में पहली बार क्लोन गाय पैदा की है. गिर नस्ल की इस बछिया का नाम गंगा रखा गया है. बछिया पैदा हुई थी 16 मार्च को. लेकिन NDRI करनाल के डायरेक्टर डॉ. हिमांशु पाठक ने सोमवार, 27 मार्च को इसके बारे में जानकारी सार्वजनिक की.
भारतीय वैज्ञानिकों का कमाल, बछिया की क्लोनिंग हर समस्या का अंत?
"क्लोनिंग की बछिया के गुण गिने जाते हैं."
क्लोनिंग की शुरुआत पशु और दूध उत्पादन के क्षेत्र में एक नई पहलकदमी है. ये क्लोनिंग क्या होती है और ये कैसी की जाती है, आइए इसके बारे में जान लेते हैं.
#शुक्राणु की ज़रूरत नहीं पड़तीNDRI करनाल के साइंटिस्ट डॉ नरेश सेलोकर के मुताबिक क्लोनिंग में स्पर्म का नहीं, बल्कि सोमेटिक सेल का उपयोग होता है. उन्होंने लल्लनटॉप से बात करते हुए कहा,
‘इसमें सोमेटिक सेल या कोशिकाओं का उपयोग होता है. जिसे जानवर (जिस नस्ल का बच्चा चाहिए) के शरीर से निकालकर लैब के अंदर ‘कल्चर’ किया जाता है. साथ ही ओसाइट्स (अंडक) को सूइयों की मदद से जानवरों से अलग किया जाता है. फिर दोनों को मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है. जिसमें 7-8 दिन का वक्त लगता है.’
उन्होंने आगे कहा,
विकसित भ्रूण (ब्लास्टोसिस्ट) को फिर किसी भी सरोगेट मदर (गाय) के अंदर ट्रांसफर कर दिया जाता है. और इस तरह से क्लोन तैयार होता है. इसके नौ महीने बाद क्लोन जानवर पैदा होता है. गंगा की क्लोनिंग के लिए गिर नस्ल का सेल लिया गया. और साहीवाल किस्म का अंडा लिया गया, जिसका DNA निकाल दिया गया. और फिर इससे भ्रूण तैयार करके इसे जर्सी गाय के अंदर ट्रांसफर कर दिया.'
डॉ नरेश सेलोकर के मुताबिक इस तकनीक को विकसित करना काफी चुनौतीपूर्ण रहा है और पूरी प्रक्रिया में करीब 2 साल का समय लगा. उन्होंने कहा,
# फायदा क्या होगा?‘भैंस की अपेक्षा गाय से सेल और अंडे निकालना काफी मुश्किल था. साथ ही हमारे पास गाय की क्लोनिंग की टेक्नीक भी मौजूद नहीं थी. ऐसे में हमें काफी रिसर्च करनी पड़ी. हम 2021 से ही इसकी कोशिश में जुटे थे और अब आकर हमें सफलता मिली है.’
डॉ नरेश के मुताबिक इस तकनीक के इस्तेमाल से जो अच्छी नस्ल की दुधारू पशु हैं, उसकी संख्या काफी बढाई जा सकती है. उन्होंने कहा,
‘इस तकनीक का इस्तेमाल करके हाई क्वालिटी वाले नस्ल के जानवरों पैदा करने में सफलता मिलेगी. इससे दूध का उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ सांड की कमी दूर होगी. गिर नस्ल की गाय जिसका क्लोन पैदा किया गया, वो लगभग 15 लीटर तक दूध दे रही है. ऐसे में इस तकनीक के विकसित होने से किसान को भी काफी सफलता मिलेगी.’
NDRI करनाल इसी तकनीक से भैंस की क्लोनिंग करने में सफलता हासिल कर चुका है. साल 2009 में इस टेक्निक के जरिए जिस भैंस को पैदा किया गया था, उसका नाम गरिमा रखा गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फिलहाल ऐसी 16 भैंसें पैदा की जा चुकी है.
वीडियो: चिड़ियाघर में बंद सारस ने खाना छोड़ा, आरिफ को लेकर विधायक ने ये मांग उठाई