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Chandrayaan 3 को चांद तक पहुंचाने में ISRO की क्या बड़ी मदद NASA और ESA ने की?

NASA और ESA ना करते मदद तो ट्रैक करने और मैसेज भेजने में मुश्किल हो जाती...

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(चंद्रयान-3 ट्रैक करने में NASA और ESA ने ISRO की सहायता की है (तस्वीरें: ISRO और NASA)

23 अगस्त 2023. ये तारीख GK का सवाल बनने वाली है. शाम 6:04 बजे Chandrayaan 3 का लैंडर ‘विक्रम’ चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिग करेगा. सब सही रहा तो भारत चांद पर पहुंच इतिहास रच देगा.  

ISRO के चांद तक पहुंचने में 3.84 लाख किमी की यात्रा है. इस यात्रा में दो संस्थाएं ISRO की सहायता कर रही हैं. ये दो संस्थाएं हैं- NASA (National Aeronautics and Space Administration) और ESA (European Space Agency). इन दो संस्थाओं ने पूरी यात्रा के दौरान चंद्रयान को लगातार ट्रैक करने में मदद की है. आज जब चंद्रयान चांद की सतह पर लैंड करने वाला है. लैंडिंग से पहले दो घंटे अहम हैं. इसमें भी आखिरी 15 मिनट क्रिटिकल होंगे. इस दौरान लैंडर मॉड्यूल के साथ बेहतर कम्युनिकेशन की जरुरत होगी. ताकि सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया को अच्छे से कमांड किया जा सके. लैंडिंग के आखिरी चरण में NASA और ESA की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. ये संस्थाएं ISRO की कैसे मदद कर रही हैं, आइए जानते हैं.

NASA और  ESA ने क्या किया?

दरअसल NASA के पास एक डीप स्पेस नेटवर्क (Deep Space Network-DSN) है. जिसमें दुनिया के अलग-अलग कोनों में विशाल रेडियो एंटीने की एक श्रंखला है. DSN के जरिए NASA अंतरिक्ष में रडार सुविधा और ट्रैकिंग कवरेज मुहैया करा रहा है. वहीं ESA के पास 'Estrack' नाम का अपना अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट ट्रैकिंग नेटवर्क है. अंतरिक्ष में सैटेलाइट को उनकी कक्षा में ट्रैक करने और जमीन से उनका संपर्क बनाए रखने में Estrack के ग्राउंड स्टेशनों से मदद मिलती है. Chandrayaan 3 के लॉन्च के बाद से ही ESA सैटेलाइट को उसकी कक्षा में ट्रैक करने, अंतरिक्ष यान से टेलीमेट्री संदेश प्राप्त करने में मददगार रहा है. Chandrayaan 3 से टेलीमेट्री संदेश ESA के डार्मस्टेड, जर्मनी स्थित यूरोपियन स्पेस ऑपरेशन सेंटर (ESOC) में आते हैं. ESA इन संदेशों को बेंगलुरु के मिशन ऑपरेशन सेंटर को भेज देता है. बेंगलरु से आने वाले निर्देशों को भी ESOC के जरिए सैटेलाइट तक भेजा जाता है. ESA का ये सेंटर Chandrayaan 3 और ISRO के बीच कम्युनिकेशन ब्रिज की तरह काम कर रहा है. 

इसके अलावा कोउरू, फ्रेंच गुयाना में ESA के 15-मीटर एंटीना और यूके के गोनहिली स्टेशन के 32-मीटर एंटीना की भी सहयाता ली जा रही है. ESA के ये दोनों एंटीना अपनी बेहतरीन तकनीकी क्षमताओं के चलते चुने गए हैं. इन दोनों स्टेशनों से Chandrayaan 3 की रेगुलर ट्रैकिंग हो रही है. उसके साथ बेहतर संपर्क बना हुआ है. NASA और ESA के जरिए Chandrayaan 3 और बेंगलुरु के मिशन ऑपरेशन सेंटर के बीच संचार का एक प्रभावी चक्र बन पाया है.

ISRO कर्नाटक के एक गांव बयालू में 32-मीटर डीप स्पेस ट्रैकिंग स्टेशन ऑपरेट करता है. इसी स्टेशन से ISRO अपने स्पेसक्राफ्ट को लोकेट, ट्रैक और कमांड करता है. इसी स्टेशन पर टेलिमेट्री संदेश और साइंटिफिक डेटा प्राप्त किए जाते हैं. ISRO को अन्य अंतरिक्ष एजेंशियों की मदद की जरुरत तब पड़ती है, जब स्पेसक्राफ्ट भारतीय एंटीना की पहुंच के बाहर हो जाता है. ऐसे में अपने अंतरिक्ष यान को ट्रैक करने, निर्देश भेजने और संचालन करने के लिए विदेशी स्पेश एजेंशियों की सहायता लेनी पड़ती है. दरअसल अंतरिक्ष में स्पेसक्राफ्ट को ट्रैक और कमांड करने के लिए दुनिया के अलग-अलग कोने में बड़ी क्षमता वाले स्पेस एंटीना लागाने और स्पेस कंट्रोल स्टेशन बनाने की जरुरत पड़ती है. पूरी दुनिया के अलग-अलग कोनों में अपना एंटीना लगाने और कंट्रोल स्टेशन बनाने में बड़ी लगात है. यह भारत के भविष्य की योजना हो सकती है. लेकिन वर्तमान में इस दिशा में NASA और ESA ने सहायता मुहैया कराई है. इन्हीं दोनों एजेंशियों की मदद से Chandrayaan 3 अभी तक बेहतर तरह से लोकेट, ट्रैक किया जा सकता है, साथ ही उसे कमांड दिए जा सके हैं. 

 

(यह स्टोरी हमारे साथी अनुराग अनंत ने की है)

 

 

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