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तबाही मचाने वाले चक्रवातों को कब आदमी और कब औरत वाले नाम मिलते हैं?

चक्रवात ‘मोका’ भीषण चक्रवाती तूफान में तब्दील हो गया है. आज बताएंगे इन चक्रवातों को नाम कैसे मिलता है.

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दुनियाभर में चक्रवातों को नाम देने के अलग-अलग तरीके हैं. (फोटो- आजतक)

चक्रवात ‘मोका’ (Cyclone Mocha) भारत के दक्षिण-पूर्वी तट की ओर तेजी से बढ़ रहा है. 12 मई को सुबह चक्रवात ‘मोका’ भीषण चक्रवाती तूफान में तब्दील हो गया. मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के मुताबिक 12 मई की सुबह यह बंगाल की दक्षिण-पूर्वी खाड़ी से सटे मध्य भाग में केंद्रित था. IMD ने अलर्ट जारी किया है कि इसके बाद ‘मोका’ और तेज होने के साथ उत्तर-पूर्व की तरफ बढ़ सकता है.

चक्रवात भारी तबाही मचाने के अलावा अपने नामों को लेकर भी चर्चा में रहते हैं. मोका के बारे में तो आप पढ़ ही रहे हैं. इससे पहले 'बुलबुल', 'लीजा', 'हुदहुद', 'कटरीना', 'निवान' जैसे नाम अलग-अलग चक्रवातों को दिए गए हैं. ‘मोका’ के बहाने आज आपको ये बताते हैं कि चक्रवातों के नाम रखे कैसे जाते हैं.

चक्रवातों को नाम कैसे देते हैं?

इंसान के बच्चे की तरह चक्रवात भी पैदा होने के कुछ दिन तक गुमनाम रहता है. नाम देने की शुरुआत होती है हवा की स्पीड के आधार पर. जब हवा लगभग 63 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गोल-गोल चक्कर काटने लगती है, तब उसे ट्रॉपिकल स्टॉर्म (तूफान) कहते हैं. ये स्पीड बढ़ते-बढ़ते जब 119 किलोमीटर प्रति घंटे से ऊपर पहुंचती है, तो उसे ट्रॉपिकल हरिकेन कहते हैं. ज्यों-ज्यों स्पीड बढ़ती है, हरिकेन की कैटेगरी बदलती है और 1 से 5 की स्केल पर बढ़ती जाती है.

चक्रवातों को नाम देना सबसे पहले अटलांटिक सागर के इर्द गिर्द बसे देशों ने शुरू किया. अंकल सैम का अमेरिका ऐसा ही एक देश है. उसने चक्रवातों को नाम देना शुरू किया ताकि उसका रिकॉर्ड रखा जा सके. इससे वैज्ञानिकों, समंदर में चल रहे जहाज़ों के स्टाफ और हरिकेन से बचने की तैयारी कर रहे प्रशासन को सहूलियत होती.

कैरेबियन आइलैंड्स के लोग एक समय कैथलिक संतों के नाम के पर चक्रवातों के नाम रखते थे.

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी फौज चक्रवातों को औरतों के नाम देने लगी. ये तरीका खूब पसंद किया गया और स्टैंडर्ड बन गया. लेकिन कुछ वक्त बाद औरतों ने सवाल किए कि जब वो आबादी का आधा ही हिस्सा हैं तो तबाही लाने वाले पूरे चक्रवातों को उन्हीं के नाम क्यों दिए जाएं. फिर 1978 में आधे चक्रवातों को मर्दो के नाम दिए जाने लगे.

यूएस वेदर सर्विस में हर साल चक्रवातों के लिए 21 नामों की लिस्ट तैयार की जाती है. हर अल्फाबेट से एक नाम. Q, U, X, Y, Z से नाम नहीं रखे जाते. अगर साल में 21 से ज़्यादा तूफान आ जाएं तो फिर ग्रीक अल्फाबेट जैसे अल्फा, बीटा, गामा इस्तेमाल किए जाते हैं. दिल्ली के ट्रैफिक की तरह ही यहां भी ऑड-ईवन सिस्टम है. ईवन साल (जैसे 2004, 2014, 2018) में पहले चक्रवात को आदमी का नाम दिया जाता है. ऑड सालों में (2001, 2003, 2007) पहले चक्रवात को औरत का नाम दिया जाता है. एक नाम छह साल के अंदर दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता. ज़्यादा तबाही मचाने वाले तूफानों के नाम रिटायर कर दिए जाते हैं, उदाहरण के लिए कटरीना.

भारत में क्या सिस्टम है?

भारत हिंद महासागर में नाक दिए हुए है, इसलिए हमारे यहां भी ढेर सारे चक्रवात आते हैं. हिंद महासागर में आने वाले तूफानों को नाम देने का चलन 2004 में शुरू हुआ. इससे पहले के चार सालों में भारत, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, पाकिस्तान, श्रीलंका और थाईलैंड ने मिल कर नाम देने का एक फॉर्मूला बनाया.

इसके मुताबिक सभी देशों ने अपनी ओर से नामों की एक लिस्ट वर्ल्ड मीटियोरोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन को दी है. भारत की लिस्ट में 'अग्नि', 'आकाश', 'बिजली', 'मेघ' और 'सागर' जैसे नाम हैं. पाकिस्तान की भेजी लिस्ट में 'निलोफर', 'तितली' और 'बुलबुल' जैसे नाम हैं. नाम देने लायक चक्रवात आने पर आठ देशों के भेजे नामों में से बारी-बारी एक नाम चुना जाता है. अपने यहां के सिस्टम में 10 साल तक एक नाम दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता. ज़्यादा तबाही मचाने वाले चक्रवातों के नाम को रिटायर कर दिया जाता है.

अब ये भी बता देते हैं ‘मोका’ नाम कहां से आया. इस चक्रवात को ये नाम यमन देश एक छोटे से गांव के नाम पर मिला है, जो मछली पकड़ने और कॉफी प्रोडक्शन के लिए जाना जाता है.

(इस स्टोरी के सारे इनपुट हमारे साथी निखिल की चक्रवात पर की गई इस स्टोरी से लिए गए हैं.) 

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