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OLA के CEO को चुभ रही शनिवार और रविवार की छुट्टी शुरू कैसे हुई?

OLA के CEO Bhavish Aggarwal ने Week Off पर ऐसी बात कही है कि पूरा इंटरनेट उनकी आलोचना कर रहा है.

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फिर ये 8 घंटे काम करने का नियम कहां से आया?

घर जाने का समय हो गया. लेकिन काम इतना है कि 12 घंटे दफ्तर में रुकना पड़ रहा है. घर जाने के बाद भी बॉस का फ़ोन आ रहा है. शिफ़्ट के बाद तो छोड़ ही दीजिए, वीक ऑफ वाले दिन भी काम करना पड़ता है. ऐसे वर्क-कल्चर को आप क्या कहेंगे?

मान लेते हैं इस तरीके के वर्क-कल्चर से आपके ख़ून में नमक आ जाता है. लेकिन आपकी इस सोच से इतर ओला (Ola) के सीईओ भाविश अग्रवाल ने एक बात कही थी और उनकी कही ये बात अब इंटरनेट पर आग की तरह फ़ैल रही है. बात ही कुछ ऐसी है. वायरल हो रहे पुराने वीडियो के टुकड़े में वो शनिवार और रविवार की छुट्टी के खिलाफ बोलते दिखाई दे रहे हैं. अब इस वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर उन्हें आलोचना झेलनी पड़ रही है.

 भला ऐसा क्या कह दिया भविश ने?

वायरल हो रहे वीडियो में भाविश अग्रवाल कह रहे हैं कि वो 'वर्क लाइफ बैलेंस' की मॉडर्न थिंकिंग को सही नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि शनिवार और रविवार की छुट्टी भारतीय परंपरा नहीं है. यह पश्चिमी सभ्यता माने वेस्ट के कल्चर का हिस्सा है.

भाविश ने आगे कहा, 


हमारे देश में पहले शनिवार और रविवार की छुट्टी नहीं होती थी. हमारा कैलेंडर भी अलग था. इसी आधार पर हम छुट्टियां करते थे, जो कि हर महीने एक या दो होती थीं. औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के बाद वीकेंड की छुट्टी हमारी संस्कृति में आई. हालांकि, अब इसकी जरूरत नहीं रह गई है.

अब बात छुट्टियों की और भारत के वर्क कल्चर की हो रही है, तो इसका थोड़ा इतिहास समझ लेते हैं. 

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भारत के वर्क कल्चर का इतिहास 
हफ्ते में 5 या 6 दिन काम क्यों?

कहानी US से शुरू करते हैं. वहां शुरूआती दौर में सात दिनों में से छह दिन काम के लिए बने थे. और एक दिन छुट्टी. छुट्टी का दिन आपके धर्म से तय होता था. जैसे यहूदियों के लिए शनिवार और ईसाइयों के लिए रविवार. इसे देखते हुए अमेरिका ने 5 दिन के वीकडेज की शुरुआत की, क्योंकि यहूदियों के लिए शनिवार और ईसाइयों के लिए रविवार की छुट्टी देना अनिवार्य हो गया था. अमेरिका में बहुत सी कंपनियों ने इसे अपनाना शुरू किया. और देखते ही देखते दो दिन की छुट्टी का नियम दुनिया भर में आ गया.  भारत में कई कंपनियां आज भी 6 दिन काम और रविवार की छुट्टी देती हैं. (जैसा आपकी स्कूल में होता था!) लेकिन विदेशी कंपनियों के भारत आने से ये नियम 6 दिन से बदलकर 5 दिन हो गया. धीरे-धीरे भारत में भी शनिवार और रविवार दोनों दिन की छुट्टी वर्कर्स को मिलने लगी. यहां से एक सवाल और उठता है कि क्या भारत हमेशा से ही रविवार को छुट्टी का दिन मानता था? नहीं, इसकी भी एक कहानी है. इसका श्रेय महाराष्ट्र के श्रमिक नेता नारायण मेघाजी लोखंडे को दिया जाना चाहिए. अंग्रेजों के आने के बाद भारत में श्रमिकों को सातों दिन काम करना होता था. भारतीयों के लिए लिए कोई छुट्टी का दिन नहीं था. जबकि ब्रिटिश स्टाफ को संडे की छुट्टी मिलती थी. 

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 10 जून 1890 को ब्रिटिश सरकार ने रविवार का अवकाश घोषित किया 


भारत में ट्रेड यूनियन जैसी संस्थाओं की शुरुआत हुई. और यहां से शुरू हुआ रविवार की छुट्टी के लिए आंदोलन. वैसे इस आंदोलन के जनक भी नारायण मेघाजी लोखंडे ही थे. उन्होंने अंग्रेजों के सामने मजदूरों को एक दिन की छु्ट्टी देने की आवाज उठाई. 7 सालों तक आंदोलन चलाया गया. आखिरकार 10 जून 1890 को ब्रिटिश सरकार ने मजदूरों और अन्य लोगों के लिए रविवार का अवकाश घोषित कर दिया.

फिर ये 8 घंटे काम करने का नियम कहां से आया?

Industrial Revolution अर्थात औद्योगिक क्रांति के वक़्त एक कर्मचारी को 100 घंटे काम करना पड़ता था. कारण, फ़ैक्टरियों को चौबीसों घंटे चालू रखना. जिसके चलते एक कर्मचारी को 14-16 घंटे की शिफ्ट में डाला जाता था. 

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ये 8 घंटे काम करने का नियम कहां से आया?


20 अगस्त, 1866 में नेशनल लेबर यूनियन नाम का एक नया संगठन बना. इस संगठन ने अमेरिकी कांग्रेस के सामने एक मांग रखी. ये मांग थी काम करने के घंटों को 14-16 घटाकर 8 घंटे करने की. खैर, उस वक्त उनके प्रयास विफल रहे. लेकिन इस प्रयास ने अमेरिका में एक नई लहर शुरू की. लोगों को इस बात का अहसास हुआ कि वो अपनी मांग रख सकते हैं.

3 सितंबर, 1916 को अमेरिकी कांग्रेस ने एडम्सन अधिनियम पास किया. जिसके तहत अंतरराज्यीय रेलकर्मियों से 8 घंटे काम करने को कहा गया. बाद में साल 1917 में सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम को संवैधानिक मान्यता भी दे दी.

25 सितंबर 1926 में फोर्ड मोटर पहली ऐसी कंपनी बनी जिसने 5 दिन वर्किंग और 8 घंटे काम करने की पॉलिसी अपनाई.

26 जून, 1940 में निष्पक्ष श्रम मानक अधिनियम (FLSA) के तहत हफ्ते में 40 घंटे काम करना और 2 दिन की छुट्टी अमेरिका भर में लागू हो गई.

भारत में विदेशी कंपनियों के आने से 8 घंटे काम और 2 दिन की छुट्टी  का चलन आया. लेकिन इन सभी का आना कब शुरू हुआ? इसकी शुरुआत हुई 90 के दशक में. आगे की कहानी के तत्व आपको पता ही हैं, डॉक्टर मनमोहन सिंह , बजट, उदारीकरण. और असर कुछ ऐसा कि विदेशी कंपनियां का भारत में आना-टिकना शुरू-सफल हुआ. 

आज की तारीख में भारत के केंद्रीय सरकारी विभाग के अनुसार श्रमिकों के मोटे तौर पर दो समूह हैं - 5-दिवसीय (प्रति दिन 8 घंटे और 30 मिनट) और 6-दिवसीय (7 घंटे और 30 मिनट).

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24 जुलाई को डॉक्टर मनमोहन सिंह ने 18,650 शब्दों का बजट पेश किया

इसे बहुत हैवी आंकड़ों और बारीक विश्लेषण के साथ समझना चाहें तो ऐसे समझें. 5 दिन काम करके दो दिन छुट्टी लेने वालों का करियर इनपुट और जीवन:

औसत भारतीय कामकाजी जीवन 18-67 साल के बीच चलता है. 
माने ये 49 साल काम करने के टाइम के बराबर है. 
जिसमें कुल घंटे होते हैं 429,240.
सोना भी जरूरी है इसलिए कुल नींद के लिए मिलेगा समय -143,080 घंटे (औसतन 8 घंटे प्रति रात) 24 घंटे में 3 का भाग कर दीजिए, इतना सोना डिजर्व करता है कामकाजी इंसान. 
तो नौकरी के सालों में कितने घंटे जागते रहेंगे? :  286,160 घंटे
छुट्टी-वुट्टी हटा के प्रति वर्ष कुल वर्किंग डे निकलेंगे 251 दिन
तो जीवन भर में कुल काम के दिन हो जाएंगे 12,299 दिन (18-67 साल के बीच)
जीवन भर में मत जाइए. हर हफ्ते कितने घंटे काम होगा? औसतन प्रति दिन 8.5 घंटे (42.5 घंटे/5 दिन का सप्ताह)
इस हिसाब से 49 साल के नौकरी वाले जीवन में 104,542 घंटे आप काम करेंगे.

आंकड़े बहुत हो गए न? डराने के लिए ही लिखे हैं. अब जब भी कोई दो दिन का वीक ऑफ हटाने-घटाने को कहे या छुट्टी के दिन काम करने को कहे. उसे इन्हीं आंकड़ों में फंसा के डरा दीजिएगा. कहिएगा चार दिन की ज़िंदगी है. उसमें भी 104,542 घंटे काम कर रहा है इंसान. अब क्या ही कर दे?

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