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दक्षिण कोरिया के इतिहास के सबसे बड़े स्कैंडल की कहानी

क्या है वो मजबूरी जिसके चलते, एक इंसान जिस पर जुर्म साबित हुआ, जेल हुई, जिसके चलते दक्षिण कोरिया की सरकार गिर गई, राष्ट्रपति को जेल जाना पड़ा, उसे सरकार माफ़ कर रही है?

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द्वितीय विश्व युद्ध से पहले की बात है. कोरियन पेनिन्सुला तब एक था. यहां 1938 में टाइगु नाम के शहर में 28 साल के ली ब्यांग चल ने ट्रक का धंधा शुरू किया. साथ में किराने की दुकान भी शुरू की. ली ब्यांग अपने ट्रकों से पूरे शहर में मछली, नूडल और सब्जियां बेचने लगे. धंधा बढ़ा, फला-फूला और जल्द ही पूरे कोरिया में फैल गया. फिर 1950 में कोरियन युद्ध की शुरुआत हुई. ली ब्यांग ने अपना धंधा समेटा और बूसान चले गए.

1953 में कोरिया युद्ध ख़त्म हुआ. तब तक देश दो हिस्सों में बंट चुका था. रूस के प्रभाव वाला कम्युनिस्ट उत्तर कोरिया और अमेरिका के प्रभाव वाला दक्षिण कोरिया. स्वाभाविक था कि अमेरिका की राह पर चलने वाले दक्षिण कोरिया ने पूंजीपति व्यवस्था का रास्ता चुना. लेकिन इसका असर अपेक्षा के विपरीत हुआ.

सोवियत संघ की मदद से अगले सात सालों में उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया से ज्यादा तरक्की की. वहीं दक्षिण कोरिया अमेरिका के रहमोकरम पर आश्रित था. खाने-पीने के लिए भी अमेरिकी फंड के बिना काम ना चलता था. ऊपर से देश में राजनैतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार ने दिक्कत पैदा कर रखी थी. फिर साल 1961 में अचानक से दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था ने एक बड़ी करवट ली. इस सब की शुरुआत हुई एक तख्तापलट से. उस साल कोरिया की आर्मी के एक जनरल ‘पार्क चंग’ ने देश की कमान अपने हाथ में ले ली. पार्क खार खाए बैठे थे कि अमेरिकी फ़ौज, जो दक्षिण कोरिया में तैनात थी, उसके सैनिक मज़े काट रहे थे, जबकि आम कोरियाई नागरिकों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं थी.

पार्क ने सत्ता सम्भालते ही देश के अमीरों को निशाने पर लिया. लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया कि यही लोग देश की तरक्की का इंजन साबित हो सकते हैं.

इन्हीं लोगों में से एक थे ‘ली ब्यांग’. सरकार ने ली ब्यांग समेत तमाम उद्योगपतियों को खूब समर्थन दिया. पैसे के अलावा पॉलिसी के स्तर पर भी मदद दी गई. उसी समय ली ब्यांग इलेक्ट्रॉनिक्स के धंधे में उतर रहे थे. सरकार ने उनकी मदद के लिए पॉलिसी बनाई कि देश में कोई विदेशी कम्पनी व्यापार नहीं कर सकती, ताकि कोरियाई कम्पनियों को कंपीटिशन का सामना न करना पड़े. आने वाले सालों में ली ब्यांग ने शिप-बिल्डिंग, पेट्रोकेमिकल और एयर क्राफ़्ट इंजन समेत तमाम तरह के उद्योग खोले और जल्द ही वो दक्षिण कोरिया के सबसे अमीर आदमी बन गए. उनकी कम्पनी देश-विदेश में फैली और दुनिया में दक्षिण-कोरिया का दूसरा पर्याय बन गई. इस कम्पनी का नाम है सैमसंग. दक्षिण कोरिया में सैमसंग अर्थव्यवस्था का दूसरा नाम है. दक्षिण कोरिया की GDP का 20% इस एक कम्पनी से आता है.

आज इनकी कहानी क्यों सुना रहे हैं?

दरअसल इन्हीं ली ब्यांग के पोते और सैमसंग ग्रुप के चेयरमैन ली जे योंग आजकल कोरिया में मुख्य खबर बने हुए हैं. सरकार ने उन्हें माफी दे दी है. किस मामले में?
ली जे योंग पर 54 करोड़ रूपये घूस देने का आरोप था. सजा भी हुई. फिर जेल से बाहर आए. फिर दुबारा कंपनी के कामकाज में अनियमितता बरतने का आरोप लगा. फिर जेल गए. फिर पैरोल पर बाहर आए. और अब सरकार ने पूरी तरह से माफी दे दी है. सवाल उठता है कि आखिर सरकार ने ऐसा किया क्यों?

सरकार का कहना है कि ऐसा न हुआ तो दक्षिण कोरिया बर्बाद हो जाएगा. आज से पांच साल पहले इन्हीं ली जे योंग की गिरफ्तारी के लिए जनता सड़कों पर थी. आज वही जनता कह रही है, ‘हां, ली जे योंग को वापिस लाना ही होगा.’

दक्षिण कोरिया के इतिहास के सबसे बड़े स्कैंडल की कहानी? 

साल 2014. दक्षिण कोरिया की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में दाखिले की प्रक्रिया चल रही थी. दाखिले की लाइन में खड़ी एक लड़की गोल्ड मैडल लेकर पहुंची थी. लड़की ने इंटरव्यू में बताया कि ये गोल्ड उसने 2014 एशियन गेम्स में जीता था. ऐसा करना नियमों के खिलाफ था. मैडल को एडमिशन में फैक्टर नहीं बनाया जा सकता था. बहरहाल ‘चुंग यो-रा ना’ नाम की इस लड़की का एडमिशन हो गया. थोड़ा हो हल्ला जरूर हुआ लेकिन फिर ये बात आई-गई हो गई.

चुंग यो-रा ने कॉलेज शुरू किया और लगातार तीन सेमेस्टर टॉप करती चली गयी. खास बात थी कि चुंग यो-रा ने कभी कोई क्लास अटेंड नहीं की. किसी ने उसे कभी कोई एग्जाम देते हुए भी नहीं देखा. धीरे-धीरे ये बात छात्रों के बीच बड़ा मुद्दा बन गई. कैम्पस में प्रदर्शन हुए. यूनिवर्सिटी के प्रेज़िडेंट पर आरोप लगा कि वो चुंग यो-रा का फेवर कर रहे हैं. उनसे इस्तीफ़ा मांगा गया. खबर लोकल अखबारों तक पहुंची. पत्रकारों ने पहला सवाल यही पूछा कि आखिर चुंग यो-रा है कौन?

जैसे ही इसका जवाब मिला, सारी कहानी साफ़ हो गई. चुंग यो-रा की मां का नाम था चोई सुन-सिल. और चोई सुन-सिल दक्षिण कोरिया की राष्ट्रपति पार्क ग्यून-हाय की खास दोस्त है. चूंकि राष्ट्रपति का नाम आया था, इसलिए खबर बड़ी होती चली गई. एक कोरियन न्यूज़ चैनल के हाथ चोई सुन-सिल का एक टैबलेट लगा. क्या था इस टैबलेट में?

टेबलेट में राष्ट्रपति पार्क के पुराने भाषण थे. जिनमें कई जगह मार्क किया हुआ था. जाहिर था कि राष्ट्रपति पार्क के भाषण न केवल चोई से होकर गुजरते थे बल्कि वो इन भाषणों को एडिट भी किया करती थी. इसके अलावा टैबलेट में राष्ट्रपति के कैबिनेट मीटिंग की जानकरी, उनके सलाहकारों की नियुक्ति समेत कई जानकारियां थीं.

इस खबर में दक्षिण कोरिया की पॉलिटिक्स में भूचाल ला दिया. चोई सरकारी पदाधिकारी नहीं थी. इसके बावजूद उनके पास नॉर्थ-कोरिया के साथ हुई कई गोपनीय मीटिंग्स जैसे संवेदनशील मुद्दों की जानकरी थी. चोई के ऊपर यह भी इल्ज़ाम लगा कि पार्क के निर्णयों और उसके सार्वजनिक बयानों पर भी चोई का प्रभाव था. और इस पूरी कहानी के तार लाखों करोड़ो के घोटाले से जुड़े थे.

यहां पर दो सवाल. राष्ट्रपति पार्क के ऊपर चोई का इतना प्रभाव क्यों था? और दूसरा सवाल कि इस पूरी कहानी से सैमसंग का क्या लेना-देना है?

पहले, पहले सवाल का जवाब समझिए. इस सब की शुरुआत हुई 15 अगस्त 1974 से. उस दिन साउथ कोरिया में एक हाई प्रोफ़ाइल मर्डर हुआ. पार्क ग्यून-हाय की मां युक युंग-सू की हत्या कर दी गई थी. पार्क ग्यून-हाय के पिता पार्क चुंग-ही साउथ कोरिया के राष्ट्रपति हुआ करते थे. मां की मौत से 22 साल की पार्क एकदम अकेली हो गई थी. पिता के ऊपर जिम्मेदारियां थी, वो पार्क पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहे थे.

ऐसे में पार्क को एक चिट्ठी मिली. चिट्ठी दावा करती थी कि पार्क अपनी मरी हुई मां से मिल सकती है. इस चिट्ठी को लिखने वाले का नाम था चोई ताई-मिन, जो एक तांत्रिक और एक कल्ट लीडर था. उसने दावा किया कि पार्क की मां उसके सपने में आती है. पार्क उसके चंगुल में फंस गई. चोई ताई-मिन, पार्क का आध्यात्मिक सलाहकार बन गया.

1994 में ‘चोई ताई-मिन’ की मौत हो गई. इसके बाद उसकी जगह उसकी बेटी ‘चोई सुन-सिल’ ने ले ली. 2013 में पार्क ग्यून-हाय दक्षिण कोरिया की राष्ट्रपति बनी. इसका सबसे बड़ा फायदा मिला चोई सुन-सिल को. उसने राष्ट्रपति के नाम पर अपनी बेटी को आगे बढ़ाया और खूब पैसा भी कमाया.

अब समझिए इस सब में सैमसंग की एंट्री कैसे हुई. सैमसंग, LG हुंडई जैसी कंपनियों के लिए दक्षिण कोरिया में एक नाम चलता है, चेबोल. इस शब्द का मतलब है कंपनियों का ऐसा समूह जिन पर एक परिवार का कन्ट्रोल हो. ये कम्पनियां दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत मायने रखती हैं. चेबोल के अलावा इनके लिए दक्षिण कोरिया के लोग एक और नाम यूज़ करते हैं- ऑक्टोपस. ये नाम इसलिए क्योंकि इन कंपनियों की पहुंच सरकार के सभी उच्च पदों तक होती है. इन्हीX के हिसाब से पॉलिसी बनती है और सरकार से भरपूर मदद मिलती है.

साल 2013 ‘ली-कुन-ही’ सैमसंग के मालिक थे. 2014 में उनकी हार्ट अटैक से मौत हुई और बागडोर आ गयी उनके बेटे ‘ली जे योंग’ के हाथ में. ‘ली जे योंग’ के दौर में ही सैमसंग ग्रुप की दो कंपनियों के बीच मर्जर की बात चल रही थी. लेकिन इसके लिए एक सरकारी फंड की बैकिंग की जरुरत थी. इस फंड का नाम था नेशनल पेंशन फंड, जो दक्षिण कोरिया की राष्ट्रीय पेंशन स्कीम का फंड था.

15 सितम्बर 2014 को सैमसंग के मालिक ‘ली जे-योंग’ और राष्ट्रपति पार्क के बीच एक मीटिंग हुई. इस मीटिंग में पार्क ने जे-योंग से सरकारी मदद के बदले एक मांग रखी. ये मांग थी कुछ घोड़ों की. अब याद कीजिए उस मैडल की जो एडमिशन के वक्त चुंग यो-रा ने दिखाया था. ये मैडल उन्हें मिला था एशियन गेम्स में. और खेल का नाम था घुड़सवारी. इससे आप समझ सकते हैं कि घोड़ों की ये मांग किसके लिए की गई थी. और ये कोई आम घोड़े नहीं थे. इन तीन घोड़ों की कुल कीमत 32 करोड़ रूपये के बराबर थी.

इसके अलावा भी ‘ली जे योंग’ ने दो कंपनियों को करोड़ों की रकम दी थी. बाद में पता चला कि ये दोनों कंपनियां राष्ट्रपति पार्क की दोस्त चोई सुन-सिल के नाम पर थीं. घोटाले की पूरी कहानी बाहर आते ही जनता सड़कों पर आ गई. 12 नवंबर, 2016 को 10 लाख लोगों ने सियोल के गवांघवामुन चौराहे पर प्रदर्शन किया. ये लोग राष्ट्रपति पर महाभियोग का मुक़दमा चलाने और उनके इस्तीफ़े की मांग कर रहे थे. इसके बाद दिसंबर, 2016 में उन पर महाभियोग लगाया गया. 10 मार्च, 2017 को उन्हें राष्ट्रपति के पद से हटा दिया गया. उनकी दोस्त चोई जर्मनी भाग गई. बाद में लौटीं तो उन्हें 20 साल की सजा हुई. लेकिन बात सिर्फ चोई और राष्ट्रपति तक सीमित नहीं थी.

जनता की मांग थी कि ‘ली जे योंग’, जिन्हें ‘क्राउन प्रिंस ऑफ सैमसंग’ बोला जाने लगा था, उन्हें भी जेल में डाला जाए. ली जे योंग पर भी मुक़दमा चला. 2017 में उन्हें इस मामले में 5 साल की सजा हुई. लेकिन जल्द ही वो जेल से बाहर आ गए. इसके बाद उन पर दुबारा मुकदमा चलाया गया. और दुबारा उन्हें जेल में डाल दिया गया.

पार्क के बाद राष्ट्रपति बने, ‘मून जे-इन’ ने कहा कि वो चेबोल्स कंपनियों और सरकार का नाजायज़ गठजोड़ तोड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं. लेकिन जल्द ही इस प्रतिबद्धता की असलियत सामने आ गयी. 2021 में चुनाव से ऐन पहले ‘ली जे-योंग’ को पैरोल पर छोड़ दिया गया. लोगों के विरोध के बावजूद सरकार ने तर्क दिया कि अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए जरूरी है कि जे-योंग सैमसंग की जिम्मेदारी संभालें. हालांकि क़ानूनन जे-योंग सैमसंग के चेयरमैन नहीं बन सकते थे.

फिर इसी साल मई में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दक्षिण कोरिया का दौरा किया. तब उन्होंने ली जे-योंग से मुलाकात की. इसके बाद लगने लगा था कि जे-योंग को पूर्ण माफी मिल सकती है. फिर आज इस बात की पुष्टि भी हो गई. सरकार ने प्रेसिडेंशियल पार्डन के माध्यम से जे-योंग की सजा माफ़ कर दी.

इस माफी का चीन से क्या कनेक्शन है?

कोविड महामारी के बाद दुनिया भर की सप्लाई चेन्स पर असर पड़ा है. इसके चलते सेमीकंडक्टर चिप्स की सप्लाई में दिक्कत आ रही है. जिसका ख़ासा असर पड़ा है सैमसंग जैसी कंपनियों पर. सैमसंग की दिक्कत का मतलब है, दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था की दिक्कत.

इसी समय अमेरिका में भी सेमीकंडक्टर चिप्स की किल्लत हुई. इस बीच उन्हें ये अहसास भी हुआ कि चीन अगर किसी दिन चाहे तो चिप्स की सप्लाई को पूरी तरह रोक सकता है. क्योंकि दुनिया की आधे से ज्यादा सेमीकंडक्टर चिप्स की सप्लाई ताइवान से होती है.

अगर ऐसा हुआ तो अमेरिका को भारी दिक्कत हो जाएगी. इसी के चलते अमेरिकी संसद ने कुछ दिन पहले ही ‘चिप्स एक्ट’ पास किया. जिसके तहत अमेरिका देश में सेमीकंडक्टर चिप्स मैन्युफैक्चरिंग का बढ़ावा दिया जाएगा. इस प्लान में सबसे बड़ा साझेदार है सैमसंग जो अगले 20 सालों में अमेरिका में 11 सेमीकंडकर प्लांट लगाने वाला है. जानकारों का कहना है कि अमेरिकी चेंबर ऑफ कॉमर्स काफी समय से दक्षिण कोरियाई सरकार पर ‘ली जे योंग’ की रिहाई के लिए प्रेशर डाल रहा था. और इसी समीकरण के चलते जे-योंग की रिहाई हुई.

जनता, जो ‘ली जे योंग की गिरफ्तारी के लिए कुछ साल पहले सड़कों पर उतर आई थी, उसका क्या कहना है?

एक रीसेंट पोल के अनुसार दक्षिण कोरिया की 70 पर्सेंट जनता रिहाई के पक्ष में है. और जानकारों के अनुसार इसकी बड़ी वजह है कोविड से उपजी अनिश्चितता और डर. दक्षिण कोरिया की जनता में सालों से मान्यता रही है कि सैमसंग उनके देश की पहचान है. ऐसे में ये मानना दूर की कौड़ी नहीं कि अगर सैमसंग बेहतर करेगी तो देश बेहतर करेगा. 

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