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जिस अल-अक्सा मस्जिद के लिए हमास ने इज़रायल पर हमला किया, उसका इतिहास क्या है?

हमास का कहना है कि वो अल-अक्सा की गरिमा की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. कहा कि ये 'उनके लोगों पर होने वाले ज़ुल्म का बदला' है.

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तीन पंथों की मान्यता के बीच जगड़ा इतिहास (फोटो - ब्रिटैनिका)

इज़रायल (Israel) और ग़ाज़ा पट्टी के बीच जंग छिड़ी हुई है. ग़ाज़ा (Gaza) के चरमपंथी समूह हमास ने इज़रायल पर 5,000 रॉकेट दागे. ज़मीन, पानी और हवा के रास्ते से देश की सीमा में घुसपैठ की. जवाब में इज़रायली सेना ने ग़ाज़ा के ख़िलाफ़ जंग का एलान कर दिया. हमास (Hamas) के ठिकानों को निशाना बनाया. दोनों तरफ़ भयानक अस्थिरता तारी है. रिहायशी इलाक़ों में भी बमबारी की ख़बरें आई हैं.

मगर जंग क्यों? हमास का कहना है कि वो अल-अक्सा की गरिमा की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं. ग्रुप के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माइल हानियेह ने अल-जज़ीरा को बताया कि ये 'उनके लोगों पर होने वाले ज़ुल्म का बदला' है. वेस्ट बैंक पर 'क़ब्ज़े' का बदला है. अपने बयान में हमास में अल-अक्सा मस्जिद का भी ज़िक्र किया:

"..हम अल-अक्सा की रक्षा के लिए सम्मान, प्रतिरोध और गरिमा की लड़ाई लड़ रहे हैं. और, कमांडर-इन-चीफ़ अबू ख़ालिद अल-दीफ़ के दिए नाम 'अल-अक्सा फ़्लड' के तहत लड़ रहे हैं. ये बाढ़ (फ़्लड) ग़ाज़ा में शुरू हुई है. लेकिन जल्द ही पश्चिमी तट और हर उस जगह तक फैल जाएगी, जहां हमारे लोग मौजूद हैं."

इसीलिए हाल के विवाद की जड़ को समझने के लिए अल-अक्सा मस्जिद और उसके विवादित इतिहास को समझना होगा.

35 एकड़ की ज़मीन का झगड़ा

जेरुसलम (यरूशलम) के इतिहास को समझने के लिए हमें बहुत पीछे चलना होगा. सदियों पीछे. ईसा से भी पहले.

पहले पुरानी वाली टाइमलाइन में दाखिल होते हैं. ईसा मसीह के क़रीब हज़ार साल पहले यहूदी राजा सोलोमन ने एक भव्य मंदिर बनवाया. यहूदी इसे 'फ़र्स्ट टेम्पल' कहकर पुकारते थे. किंग सोलोमन को इस्लाम और इसाइयत दोनों में पैगंबर का दर्जा मिला हुआ है. सोलोमन के बनाए फर्स्ट टेम्पल को बाद में बेबिलोनियन लोगों ने तोड़ दिया. फिर करीब 500 साल बाद - 516 ईसा-पूर्व में - यहूदियों ने दोबारा इसी जगह पर एक और मंदिर बनाया. वो मंदिर कहलाया, 'सेकेंड टेम्पल'. यहां यहूदी नियमित पूजा करने आया करते थे. सेकंड टेम्पल 600 साल तक सलामत रहा.

फिर सन् 70 में यहां रोमन्स ने हमला बोला. मंदिर को तोड़ने की कोशिश भी हुई. मंदिर को तोड़ा तो गया, लेकिन पश्चिम की तरफ़ दीवार का एक हिस्सा बच गया. मंदिर की ये दीवार आज भी मौजूद है. यहूदी इसे 'वेस्टर्न वॉल' या 'वेलिंग वॉल' कहते हैं. वो इसे अपनी आख़िरी धार्मिक निशानी मानते हैं. इंटरनेट पर आपने वेस्टर्न वॉल की तस्वीरें देखी होंगी. आज भी यहूदी पंथ के लोग यहां पूजा करने आते हैं. दीवार की दरारों में लोग मन्नत वाली चिट्ठियां रख देते हैं. वो दीवार से लिपटकर रोते भी हैं, इसीलिए वेलिंग वॉल नाम आया.

इस पवित्र जगह के भीतर ही 'द होली ऑफ़ द होलीज़' है. यहूदियों का सबसे पवित्र स्थान. यहूदियों का विश्वास है कि यही वो जगह है, जहां से दुनिया बनी थी. और, यहीं पर पैगंबर इब्राहिम ने अपने बेटे इश्हाक की बलि देने की तैयारी की थी.

द डोम ऑफ द रॉक और पश्चिमी दीवार (वेलिंग वॉल), जेरूसलम.

मुसलमान भी इस जगह को लेकर अक़ीदा रखते हैं. उनका मानना है कि सन् 621 में इसी जगह से इस्लाम के आख़िरी पैगंबर मोहम्मद ने जन्नत तक का सफ़र किया था. इसे इस्लाम में 'मेराज' कहते हैं. इसी मस्ज़िद में पैगंबर मोहम्मद ने ख़ुद से पहले आए सभी पैगम्बरों के साथ नमाज़ अदा की थी.

इस मस्ज़िद से मुसलमानों की एक और मान्यता जुड़ी हुई है. दरअसल, पहले दुनिया के सारे मुसलमान इसी मस्ज़िद की तरफ़ रुख करके नमाज़ अदा किया करते थे. बाद में वो मक्का स्थित मस्ज़िद-ए-हरम की ओर रुख कर नमाज़ अदा करने लगे. इसीलिए आप देखते होंगे कि भारत के मुसलमान पश्चिम दिशा की तरफ़ रुख कर के नमाज़ पढ़ते है. क्योंकि भूगोल के लिहाज़ से मक्का भारत से पश्चिम में है.

तीन पंथों का विवाद

पैगंबर मोहम्मद के देहांत के 4 साल बाद मुसलामानों ने जेरुसलम पर हमला कर दिया. तब यहां बाइज़ेन्टाइन एम्पायर का राज था. तब पवित्र कंपाउड दोबारा मुसलमानों के पास आया. आज अल-अक्सा मस्ज़िद के सामने की तरफ़ है, एक सुनहरे गुंबद वाली इस्लामिक इमारत है. इसे कहते हैं - डोम ऑफ़ दी रॉक.

यहूदियों की वेस्टर्न वाल, मुसलामानों की अल-अक्सा मस्जिद और डॉम ऑफ़ दी रॉक. ये सभी ईमारतें 2 एकड़ के कंपाउंड के अंदर हैं. इस कंपाउंड में ईसाइयों का भी एक पवित्र चर्च मौजूद है. वो मान्यता रखते हैं कि यहीं ईसा मसीह को क्रूसीफाई किया गया था. और, यहीं उनका पुनर्जन्म हुआ था. इसी जगह में ईसाइयों का ये चर्च बनाया गया है.

अल-अक्सा मस्जिद (फोटो - विकीमीडिया)

2 ऐकड़ की ज़मीन में दुनिया के 3 बड़े धर्मों की आस्था से जुड़ी इमारते हैं. वजह है, तीनों पंथों की शुरूआत. तीनों धर्मों के तार समय में पीछे जाकर एक साथ जुड़ते हैं. ये सभी पैगंबर इब्राहीम के मानने वाले हैं. इसलिए इन्हें 'ऐब्राहमिक रिलीजन' कहा जाता है. पैगंबर इब्राहीम को अपने इतिहास से जोड़ने वाले ये तीनों ही धर्म जेरुसलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं. यही वजह है कि सदियों से मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के दिल में इस शहर का नाम बसता रहा है.

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विश्व युद्ध के बाद का इतिहास इसी तरफ इशारा करता है कि जब-जब अल अक्सा में हिंसा हुई है, इज़रायल और फिलिस्तीनी गुटों के बीच लंबा हिंसक संघर्ष हुआ है. इसीलिए सभी को अनहोनी का डर है. इसी साल के अप्रैल महीन में इज़रायली पुलिस अल-अक्सा मस्जिद के अंदर घुसी, मस्जिद के अंदर तोड़-फोड़ की और लोगों पर स्टन गन और रबर की गोलियों से हमला किया. इसमें क़रीब 40 लोग घायल हो गए हैं. पुलिस की सफ़ाई थी कि कुछ उपद्रवी लोग मास्क लगाकर मस्जिद में छिपे हुए थे. उनके पास लाठियां, पटाखे और पत्थर थे. इसलिए उन्हें मजबूरन परिसर में घुसना पड़ा. तब से लोगों को इस हिंसा का डर था, जिसकी ज़द में इज़रायल और ग़ाज़ा है.