हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस इस रिजल्ट को "अप्रत्याशित" और "अस्वीकार्य" बता रही है. राहुल गांधी ने भी कहा है कि वे हरियाणा के अप्रत्याशित नतीजे का विश्लेषण कर रहे हैं. लेकिन INDIA गठबंधन की पार्टियां चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस की आलोचना कर रही हैं. शिवसेना (UBT), तृणमूल कांग्रेस समेत कई दलों ने कांग्रेस की हार को "अहंकार" और "अति-आत्मविश्वास" का नतीजा बताया है. शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में यहां तक लिख दिया कि जीत की पारी को हार में कैसे बदला जाए, यह कांग्रेस से ही सीखा जा सकता है.
कांग्रेस हरियाणा में क्या हारी 'INDIA' वालों ने चुभने वाले ताने चुन-चुन कर मारे
शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में यहां तक लिख दिया कि जीत की पारी को हार में कैसे बदला जाए, यह कांग्रेस से ही सीखा जा सकता है.
'सामना' ने 9 अक्टूबर को अपने संपादकीय में हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के परिणामों पर विस्तार से लिखा है. शिवसेना के मुताबिक, हरियाणा में कांग्रेस की हार की वजह फाजिल आत्मविश्वास और स्थानीय नेताओं की नाफरमानी को माना जा रहा है. स्थिति अनुकूल होने के बावजूद कांग्रेस फायदा नहीं उठा सकी. कांग्रेस के साथ ऐसा हमेशा होता है. आगे लिखा गया है,
"पिछली दफा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में एक तरह का माहौल था कि भाजपा सत्ता में नहीं आएगी, लेकिन कांग्रेस की आंतरिक अव्यवस्था भाजपा के लिए मुफीद साबित हुई. सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा ने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबो दी है. हुड्डा की भूमिका इस तरह थी कि जैसे कांग्रेस के सूत्रधार वही हैं और जिसे वे चाहें वही कैंडिडेट होगा."
'सामना' ने ये भी लिखा है कि हरियाणा में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी समेत कई घटकों को दूर रखा, क्योंकि उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी नहीं चाहिए थी. इस खेल में पूरा राज्य ही हाथ से निकल गया. लिखा है, "कल महाराष्ट्र में चुनाव होंगे. महाराष्ट्र की जनता हरियाणा की राह पर नहीं जाएगी और राज्य में महाविकास अघाडी की जीत होगी. लेकिन राज्य में कांग्रेस नेताओं को हरियाणा के नतीजों से बहुत कुछ सीखना है."
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीत को लेकर अतिउत्साहित थी. सभी एग्जिट पोल्स में भी कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना था. लेकिन नतीजे कुछ और आए. 90 विधानसभा सीट वाले राज्य में बीजेपी ने अपने दम पर बहुमत हासिल की. 48 सीट मिली. हरियाणा के 58 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा, जब कोई पार्टी लगातार तीसरी बार सरकार बनाएगी. कांग्रेस 37 सीटों पर सिमट गई. वहीं इंडियन नेशनल लोक दल (INLD) को 2 सीटों पर जीत मिली. तीन निर्दलीय उम्मीदवार भी जीतकर आए.
इसी तरह तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठाए हैं. टीएमसी के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर बिना किसी का नाम लेते हुए लिखा है,
"इसी तरह का रवैया चुनाव हरवाता है. अगर हमें लग रहा है कि हम जीतने वाले हैं, तो हम किसी भी क्षेत्रीय पार्टी को तवज्जो नहीं देंगे. लेकिन जिन राज्यों में हम पिछड़ रहे हैं, वहां क्षेत्रीय पार्टियां हमें अपने साथ रखे. अहंकार, एकाधिकार और क्षेत्रीय पार्टियों को कम करके देखना घातक साबित हो रहा है. सीखना चाहिए."
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठाए. दिल्ली में AAP कार्यकर्ताओं के बीच उन्होंने कहा था कि हरियाणा के नतीजों का सबसे बड़ा सबक यही है कि चुनाव में किसी को अति-आत्मविश्वास नहीं होना चाहिए.
केजरीवाल ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन ये साफ है कि उनका इशारा कांग्रेस की तरफ था. चुनाव से पहले AAP और कांग्रेस के बीच गठबंधन की तैयारी थी. सीट शेयरिंग पर बात नहीं बनी और गठबंधन नहीं हुआ. इसके बाद AAP अकेले 89 सीटों पर चुनाव लड़ी. अब चुनाव नतीजों के बाद पार्टी की प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने कह दिया कि आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP, कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी.
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कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) ने भी कांग्रेस पर सवाल उठाया है. CPI के महासचिव डी राजा ने मीडिया से कहा कांग्रेस को आत्ममंथन करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र और झारखंड में INDIA गठबंधन के सभी सहयोगियों को साथ लेकर चलने की जरूरत है.
इस साल के अंत में महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. यहां कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों के साथ INDIA गठबंधन में सहयोगी है. वहीं, अगले साल की शुरुआत में दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव हो सकते हैं.
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