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हरिदेव जोशी : राजस्थान का वो मुख्यमंत्री, जो तीन बार CM बना लेकिन पांच साल पूरे नहीं कर सका

जिसका एक ही हाथ था, लेकिन हाथ वाली पार्टी की पॉलिटिक्स हैंडल करने में माहिर था.

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हरिदेव जोशी कभी सांसद का चुनाव नहीं लड़े और न ही कभी केंद्र की राजनीति में गए.

चुनावी मौसम में दी लल्लनटॉप आपके लिए लेकर आया है पॉलिटिकल किस्सों की ख़ास सीरीज़- मुख्यमंत्री. इस कड़ी में बात राजस्थान के उस नेता की, जिसका एक ही हाथ था, लेकिन हाथ वाली पार्टी की पॉलिटिक्स करता था और मुस्तैदी से करता था. जो लगातार 10 बार विधायक और तीन बार मुख्यमंत्री बना, लेकिन एक बार भी मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. नाम था हरिदेश जोशी.

हरिदेव जोशी: राजस्थान का वो मुख्यमंत्री जो तीन बार सीएम बना लेकिन 5 साल पूरे नहीं कर पाया

साल 1989. तारीख 3 दिसंबर. राजस्थान का राजभवन. नए मुख्यमंत्री की शपथ की तैयारी चल रही थी. निर्वाचित मुख्यमंत्री अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ लेने से पहले कांग्रेस के ऑफिस में पहुंच चुके थे. तिलक लगाकर स्वागत किया गया. निर्वाचित मुख्यमंत्री वहां से शपथ के लिए रवाना हो गए. तभी राजभवन के मुख्य सचिव ने एक एनाउंसमेंट किया- मुख्यमंत्री की शपथ का समारोह अपरिहार्य कारणों से स्थगित कर दिया गया है. अगले कार्यक्रम की सूचना आपको जल्दी ही दी जाएगी. वहां बैठे लोग अवाक रह गए. आखिए ऐसा क्या हुआ कि एक मुख्यमंत्री को शपथ से जस्ट पहले रोक दिया गया? वजह बताएंगे, मगर आखिर में. पहले शुरुआत की तरफ चलते हैं .

अंक 1: बांस की खपच्चियों के फेर में गया हाथ

राजस्थान में एक जिला है बांसवाड़ा. हर बरसात में माही नदी की डूब में आकर इस जगह का बाकी राजस्थान से संपर्क कट जाता था. यहां के खांदू गांव में पैदा 14 दिसंबर, 1921 को पैदा हुए हरिदेव जोशी. करीब 10 साल की उम्र में हरिदेव का बांया हाथ टूट गया. गांव के आस-पास डॉक्टर नहीं था तो घरवालों ने देसी इलाज करवाया. बांस की खपच्चियों से हाथ सीधा करवा दिया. लेकिन दवाइयों के अभाव में हाथ में जहर फैल गया. घरवाले शहर इलाज के लिए लेकर गए. डॉक्टर ने कहा- हाथ काटना पड़ेगा नहीं तो रिस्क है. और हरिदेव का बायां हाथ काट दिया गया.


हरिदेव जोशी तीन बार सीएम रहे लेकिन कभी पांच साल पूरे नहीं कर सके.
हरिदेव जोशी तीन बार सीएम रहे लेकिन कभी पांच साल पूरे नहीं कर सके.

एक हाथ वाले हरिदेव हारे नहीं. आदिवासी इलाका था. डूंगरपुर रियासत के अधीन. यहीं पर पढ़ाई भी की और फिर बड़े होने पर सियासत भी. कांग्रेस में एक्टिव रहे. गिरफ्तार और रिहा हुए.

फिर देश आजाद हुआ. कांग्रेस के ज्यादातर लोग अब सरकार का हिस्सा थे. नए लोगों को संगठन में जगह मिली. हरिदेव को इसी क्रम में मौका मिला. 1950 में वह नए बने राजस्थान सूबे के प्रदेश महासचिव बन गए. फिर सूबे में पहले चुनाव हुए. हरिदेव डूंगरपुर सीट से लड़े और जीते. बन गए विधायक. जो वह अगली 10 विधानसभाओं के दौरान रहे. लगातार.

लाल बत्ती मिली विधायकी के 13वें साल में. सुखाड़िया ने उन्हें 1965 में मंत्री बनाया अपनी सरकार में. सुखाड़िया गए तो 1971 में बरकतुल्लाह खान उर्फ प्यारे मियां सीएम बने. और उनकी कैबिनेट में सबसे सीनियर मंत्री थे हरिदेव जोशी. ये सीनियर पर इतना जोर क्यों. अगले अंक में आप समझ जाएंगे.

अंक 2: मिर्धा को मात दे बने सीएम

1973 में हार्ट अटैक के चलते बरकतुल्लाह की मौत हो गई. हरिदेव जोशी को सीनियर मोस्ट के नाते कार्यवाहक मुख्यमंत्री बना दिया गया. अब सबकी नजर इंदिरा पर थी. पिछली बार दिल्ली से सीएम चुनने वाली इंदिरा बोलीं- विधायक दल खुद अपना नेता चुने. दरअसल इंदिरा हरिदेव को लेकर बहुत उत्साही नहीं थीं. उन्हें याद था कि जब राष्ट्रपति के चुनाव के फेर में कांग्रेस दो फाड़ हुई थी, तब जोशी विरोधी खेमे में थे. वो बात और है कि बाद में वह इंदिरा कैंप में लौट आए थे.

तो फिर इंदिरा की च्वॉइस कौन थे. उनके गृहराज्य मंत्री और सूबे के बड़े जाट नेता रामनिवास मिर्धा. अब मिर्धा और हरिदेव आमने सामने थे. विधायक दल की वोटिंग हुई. और उससे ऐन पहले कांग्रेस के विधायकों का एक गुट मिर्धा के पाले से खिसक लिया. कौन सा गुट, मिर्धा को पसंद न करने वाले जाट नेताओं का गुट. कोई इसमें परसराम मदेरणा का नाम गिनाता है तो कोई शीशराम ओला का.

पर गिनने वाली असल बात ये है कि मिर्धा हार गए. जोशी 13 वोट से जीत विधायक दल के नेता बन गए. और फिर उन्होंने कार दिल्ली दौड़ा दी, आलाकमान का आशीर्वाद पाने. इंदिरा पसीज गईं और जोशी राजस्थान के सीएम बन गए.


1969 के राष्ट्रपति चुनाव के समय जोशी ने इंदिरा पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.जिसके चलते इंदिरा उनसे खासी नाराज थीं.
1969 के राष्ट्रपति चुनाव के समय जोशी ने इंदिरा पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी.जिसके चलते इंदिरा उनसे खासी नाराज थीं.

अंक 3: अब बारिशों में भी घर आ-जा सकें उसके लिए पुल बनाएंगे

मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने सबसे पहले क्या काम किया. जिस माही नदी के चक्कर में उनका जिला पूरे सूबे से कट जाता था, उस पर कई पुल बनवाए. इसके अलावा तीन विश्वविद्यालय शुरू किए. कोटा, अजमेर और बीकानेर में.

फिर इंदिरा के बेटे संजय का काल शुरू हुआ. हरिदेव ने संजय गांधी के पांच सूत्री कार्यक्रम को अतिरिक्त उत्साह से लागू किया. कई विपक्षी विधायकों को भी फोड़कर अपनी पार्टी में ले आए.

मगर जनता, पार्टी बदलने का मन बना चुकी थी. इसलिए 1977 में बाकी उत्तर भारत की तरह राजस्थान में भी कांग्रेस बुरी तरह हारी. पहले लोकसभा में और फिर कुछ महीने बाद विधानसभा में. हरिदेव जोशी अब पूर्व मुख्यमंत्री हो गए. कांग्रेस तीन साल बियाबान में रही. और इस दौरान एक दूसरा राजस्थानी संजय का खास हो गया. नाम था जगन्नाथ पहाड़िया.

इससे क्या हुआ. 1980 में जब कांग्रेस सत्ता में लौटी तो सूबे का ताज पहाड़िया के सिर सजा. फिर संजय की मृत्यु हुई और उसके एक साल बाद पहाड़िया हटे तो शिवचरण माथुर का नंबर लग गया. मगर हरिदेव की हसरतें अभी मरी नहीं थीं.

अंक 4: विधायक का एनकाउंटर हुआ तो भाग्य जिंदा हुआ

राजस्थान में शिवचरण माथुर का राज चल रहा था. वह इंदिरा के बाद राजीव के भी खास हो गए थे. लेकिन जब राजनीतिक हाराकीरी होती है तो सब खास आम हो जाते हैं. माथुर के साथ ये हुआ मानसिंह एनकाउंटर के चलते. सात बार का विधायक मारा गया तो माथुर की भी राजनीतिक बलि हो गई. इस प्रकरण के बारे में विस्तार से आप जानेंगे शिवचरण माथुर के किस्से में. यहां बस इतना जानें कि माथुर का इस्तीफा हुआ तो हीरालाल देवपुरा को कार्यवाहक सीएम बनाया गया. फिर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीत गई. और राजीव ने हरिदेव जोशी को मुख्यमंत्री बना दिया. इससे सबसे ज्यादा चिढ़े राजीव कैबिनेट के गृह मंत्री बूटा सिंह.

दरअसल बूटा सिंह पंजाब के थे. मगर सेफ सीट के फेर में राजस्थान की जालौर सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे. उनके नाम पर एक इलेक्शन कमेटी मीटिंग में चर्चा हुई. कमेटी में जोशी भी थे. उन्होंने बाहरी उम्मीदवारों का विरोध किया. बात बूटा तक पहुंची. राजीव का वीटो लगा और उन्हें टिकट मिल गया. फिर वह जीत भी गए. और मंत्री भी बन गए. और मंत्री जी जब मौका मिलता जोशी की बुराई करते. तो क्या बूटा जोशी की गद्दी खिसका पाए. कुछ योगदान तो जरूर रहा होगा, मगर गद्दी गई सरिस्का के फेर में.

अंक 5: रणथंभौर में बचे मगर सरिस्का में नपे

जोशी मंत्रिमंडल में एक नेताजी थे नरेंद्र सिंह भाटी. राजीव गांधी के खास. और जोशी के विरोधी. जनवरी 1986 की बात है. राजीव नया साल मनाने परिवार समेत रणथंभौर आ रहे थे. जोशी उनके स्वागत की तैयारी में जुट गए. मगर भाटी ने कहा- राजीव ये सब नहीं चाहते. उनकी पर्सनल ट्रिप है. आप न जाएं. जोशी को लगा भाटी राजीव के खास हैं, ऐसे में उनकी बात मानना ही ठीक है.

मगर भाटी खुद रणथंभौर पहुंच गए. वहां जोशी के न आने पर राजीव के सामने अचरज भी जताया और प्रोटोकॉल का भी हवाला दिया. राजीव राजस्थान से नाराज लौटे.


राजीव गांधी ने जोशी को दो बार सीएम बनाया था.
राजीव गांधी ने जोशी को दो बार सीएम बनाया था.

इंटेलिजेंस के लोगों ने हरिदेव को अलर्ट कर दिया. जोशी फौरन दिल्ली पहुंचे और राजीव को सब सच बताया. राजीव की नाराजगी दूर हो गई. और अब नपने की बारी भाटी की थी. उन्हे मंत्रिमंडल से चलता कर दिया गया.

राजीव की फिर एक विजिट हुई. इस बार सरिस्का. राजीव ने खुद जोशी को संदेश भिजवाया. कि 18-19 दिसंबर, 1987 को मेरे मंत्रिमंडल की बैठक होगी. अलवर के सरिस्का में. मगर अनौपचारिक किस्म की. इसलिए राज्य सरकार इसे लेकर कोई तैयारी या खर्चा न करे.

जोशी राजनीतिक मुश्किलों में घिरे थे. ढाई महीने पहले ही देवराला सती कांड में उनकी सरकार की छीछालेदर हुई थी. पार्टी के विरोधी गुट उनको हटाने की मांग तेज कर रहे थे. ऐसे में जोशी किसी भी तरह बॉस को खुश करना चाहते थे. मगर एक रॉन्ग टर्न से सब गड़बड़ हो गया.

राजीव ने मंत्रियों से कहा था कि बिना तामझाम के वहां पहुंचिए. खुद के अमले में भी कटौती की. राजीव अपनी गाड़ी भी खुद ही ड्राइव कर सरिस्का पहुंचे. उन्हें रास्ता चकाचक लगा. फ्रेश पेबर यानी डामर बिछा हुआ था. सड़क किनारे पेंट था.


चुनाव कार्यसमिति की बैठक से बाहर निकलते हरिदेव जोशी, अशोक गहलोत और दूसरे नेता.
चुनाव कार्यसमिति की बैठक से बाहर निकलते हरिदेव जोशी, अशोक गहलोत और दूसरे नेता.

ऐसा कैसे था. क्योंकि जोशी का अमला चाकचौंबद था. जोशी के विरोधी भी पीछे नहीं थे. उन्हें पता था कि जोशी ने राजीव के आने पर इंतजाम करने के लिए पूरी सरकार को लगा रखा है. ऐसे में राजीव की गाड़ी को सरिस्का से एक मोड़ पहले मुड़वा दिया. ये मोड़ एक मैदान पर खत्म होता था, जहां पर दर्जनों सरकारी गाड़ियां खड़ी थीं. राजीव ने वजह पूछी तो पता लगा कि सीएम साहब ने इंतजाम करने के लिए पूरा मजमा लगाया है. ये जानकर राजीव नाराज हो गए. कहा जाता है कि राजीव ने इसके लिए जोशी को डांटा. यहां तक कि उनकी लाई माला को भी स्वीकार नहीं किया. और इस मीटिंग के खत्म होने तक तय हो गया कि जोशी की कुर्सी अब ज्यादा दिन की नहीं है. दिल्ली जाकर राजीव ने जोशी को इस्तीफा देने के लिए कहा. जोशी ने कोई विरोध नहीं किया और 18 जनवरी, 1988 को इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह शिवचरण माथुर फिर सीएम बन गए.

अंक 6: अब शपथ वाला किस्सा पूरा कर लें !

1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में सीटें मिलीं जीरो. गाज गिरी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अशोक गहलोत और सीएम शिवचरण माथुर पर. दोनों के इस्तीफे हो गए. लेकिन दिक्कत ये थी कि राज्य में चार महीने बाद विधानसभा चुनाव था. ऐसे में राजीव ने हरिदेव को तलब किया. हरिदेव ने गुवाहटी से उड़ान भरी.

आपने सही पढ़ा. बांसवाड़ा नहीं गुवाहटी ही बोला. दरअसल शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री बनाने के बाद राजीव को लगा कि हरिदेव जोशी और पहाड़िया अगर सूबे में रहे तो दिक करेंगे. सो दोनों को राज्यपाल बना दिया. हरिदेव राजनीतिक रूप से संवेदनशील असम में तैनात किए गए.


जोशी 10 बार लगातार विधायक रहे थे. वो कभी चुनाव नहीं हारे.
जोशी 10 बार लगातार विधायक रहे थे. वो कभी चुनाव नहीं हारे.

जब केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी तो ये तय ही था कि कांग्रेस के जो नेता गवर्नर हाउस में हैं. वे इस्तीफा दे अपने घर लौटेंगे. हरिदेव ने भी ऐसा ही किया. फर्क बस इतना था कि वह राज्यपाल का पद छोड़ते ही मुख्यमंत्री बनने वाले थे. अपने गृह प्रदेश के. 2 दिसंबर, 1989 को जोशी विधायक दल के नेता चुन लिए गए. 3 दिसंबर को वह शपथ लेने पहुंचे. और इसी शपथ के ठीक पहले उन्हें रोक दिया गया. इसी रोक से ये किस्सा शुरू हुआ था. जो अब अपने अंत को है.

राज्यपाल ने जोशी को इसलिए 3 दिसंबर को शपथ नहीं दिलवाई क्योंकि तब तक बतौर असम राज्यपाल उनका इस्तीफा राष्ट्रपति ने मंजूर नहीं किया था. महामहिम वेंकटरमण की तरफ कांग्रेसी हरकारे दौड़ाए गए. शाम तक इस्तीफा स्वीकृत हुआ और फिर 4 दिसंबर 1989 को हरिदेव जोशी तीसरी और आखिरी बार सीएम बने. आखिरी क्यों. क्योंकि 4 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हारी. और फिर बीजेपी के भैरोसिंह शेखावत सीएम बने.

हरिदेव को लगता था कि वह चौथी बार भी सीएम बनेंगे. 93 के चुनाव के नतीजों के बाद. जब उन्हें त्रिशंकु विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया. नरसिम्हा राव के आशीर्वाद से. फिर भजनलाल उनकी मदद को भी आए. सरकार बनवाने में. मगर शेखावत का मैनेजमेंट इन तीनों पर भारी पड़ा. और इसके एक बरस बाद मुंबई के एक अस्पताल में ब्रेन हैमरेज से उनका निधन हो गया.

मुख्यमंत्री के अगले ऐपिसोड में बताएंगे बाबोसा की कहानी. सिनेमाहॉल के झगड़े ने जिनकी खाकी उतरवाई. फिर किसान विधायक और मुख्यमंत्री बना तो वही खाकी उसे सैल्यूट करने लगी.




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