वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) परिसर को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI की रिपोर्ट आई. ASI ने अपनी 839 पन्नों की रिपोर्ट में कहा है कि मौजूदा ढांचे के निर्माण से पहले वहां एक हिंदू मंदिर था. दावा किया कि इसके तहखाने में देवी-देवताओं की मूर्तियां भी मिली हैं. इसके लिए ASI ने चार महीने तक मस्जिद परिसर में कलाकृतियों, शिलालेखों, मूर्तियों और दीवारों का अध्ययन किया. ये रिपोर्ट हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को सौंप दी गई है. वाराणसी की जिला अदालत ने पिछले साल 21 जुलाई को मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वे कराने का आदेश दिया था. इस आदेश पर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी हरी झंडी दी थी. इसके बाद ASI ने चार महीने तक परिसर में सर्वे किया. इस रिपोर्ट में क्या-क्या निकलकर सामने आया, सब एक-एक कर बताते हैं.
'ज्ञानवापी मस्जिद से पहले वहां हिंदू मंदिर था', ASI रिपोर्ट की एक-एक बात जान लीजिए
ASI की रिपोर्ट कहती है कि मस्जिद की पश्चिमी दीवार, पहले से मौजूद हिंदू मंदिर का ही बाकी बचा हिस्सा है.

ASI की रिपोर्ट की माने तो मस्जिद परिसर में कई चीजें मिलीं. इनमें शिलालेख, मूर्तियां, सिक्के, वास्तुशिल्प अवशेष, मिट्टी के बर्तन, दूसरी कलाकृतियां भी शामिल हैं. इन सामानों को ASI ने 6 नवंबर को जिला प्रशासन की कस्टडी में रख दिया. ASI का कहना है कि इस साइंटिफिक सर्वे को इस तरीके से किया गया, ताकि ढांचे को किसी तरह का नुकसान न हो. ASI ने अपनी ब्रीफ फाइंडिंग में जो लिखा है, उसकी एक प्रति दी लल्लनटॉप के पास भी उपलब्ध है.
इसमें सबसे पहले जीपीआर सर्वे का जिक्र किया गया है. जीपीआर यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार सर्वे. ये जमीन के नीचे की सतह के सर्वे का सबसे आधुनिक तरीका है. इसके लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का इस्तेमाल होता है. और बिना जमीन में खुदाई करे अंदर की सतह में दबी चीजों का पता लग सकता है. GPR सर्वे के जरिये मेटैलिक और नॉन मेटैलिक चीजों का पता कर सकते हैं. जैसे कोई धातु, प्लास्टिक, कंक्रीट से बने ढांचे. लेकिन कितनी गहराई तक? ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस क्षमता यानी किस फ्रीक्वेंसी की मशीनों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
- रिपोर्ट बताती है कि मस्जिद परिसर के सेंट्रल चैंबर और पहले से मौजूद संरचना के मुख्य प्रवेश द्वार का सर्वे किया गया.
- इसके अलावा पश्चिमी कक्ष और पश्चिमी दीवार.
- मौजूदा ढांचे में पहले से मौजूद ढांचों के पिलर्स के फिर से इस्तेमाल पर.
- पत्थर पर अरबी और फारसी शिलालेखों का.
- तहखाने में मूर्तिकला के अवशेषों का.
इन चीजों के सर्वे के बाद ASI इस नतीजे पर पहुंचा कि ज्ञानवापी मस्जिद से पहले यहां एक बड़ा मंदिर था. रिपोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद के लिए 'मौजूदा ढांचे' शब्द का इस्तेमाल किया गया है. कहा गया है कि मंदिर में एक बड़ा सेंट्रल चैंबर था. और यहीं सेंट्रल चैंबर मौजूदा ढांचे का सेंट्रल हॉल है. इसके अलावा उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम में भी एक-एक चैंबर थे. मंदिर के सेंट्रल चैंबर का मुख्य द्वार पश्चिम की तरफ से था, जो पत्थर की दीवारों से ब्लॉक कर दिया गया. प्रवेश द्वार पर पक्षियों और जानवरों की नक्काशी की गई थी. और ये तोरण द्वार जैसा है. यानी कोई बड़ा द्वार जिसका ऊपरी हिस्सा मंडप आकार का होता है. ललाट बिम्ब वाले एक छोटे प्रवेश द्वार पर भी नक्काशी की गई थी, जिसे मिटा दिया गया. इसका एक छोटा सा हिस्सा देखा जा सकता है.

ASI की रिपोर्ट कहती है कि मस्जिद की पश्चिमी दीवार, पहले से मौजूद हिंदू मंदिर का ही बाकी बचा हिस्सा है. पश्चिमी दीवार पत्थरों से बनी है. इसे पश्चिमी चैंबर के बाकी बचे हिस्से से बनाया गया. दीवार से लगा सेंट्रल चैंबर अब भी पहले की तरह है. बाकी बगल के दोनों चैंबर्स (उत्तर और दक्षिण) में बदलाव कर दिये गए. ये सभी चैंबर्स सभी चार दिशाओं में खुलते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि मंदिर के उत्तर और दक्षिण हॉल के प्रवेश द्वारों को सीढ़ियों में बदल दिया गया. वहीं, उत्तरी हॉल के प्रवेश द्वार में बनी सीढ़ियां आज भी इस्तेमाल हो रही हैं. वहीं मस्जिद के पिलर्स को लेकर कहा गया है कि पहले से मौजूद पिलर्च को ही थोड़ा मॉडिफाई किया गया.
अब सर्वे में मिले शिलालेखों का जिक्र करते हैं. रिपोर्ट कहती है कि मस्जिद में कुल 34 शिलालेख पाए गए. ये शिलालेख पहले से मौजूद हिंदू मंदिर के पत्थरों पर थे. मस्जिद के निर्माण में इनका दोबारा इस्तेमाल हुआ. ये शिलालेख देवनागरी, ग्रंथ (दक्षिण भारतीय लिपि), तेलुगू और कन्नड़ लिपियों में हैं. ASI ने लिखा है कि पुराने शिलालेखों के दोबारा इस्तेमाल से ऐसा लगता है कि पुरानी संरचनाओं को तोड़ कर उनके हिस्सों को मौजूदा मस्जिद बनाने में इस्तेमाल हुआ है. इन शिलालेखों में तीन देवताओं- जनार्दन, रूद्र और उमेश्वरा के नाम भी पाए हैं. इन तीनों शिलालेख में 'महामुक्तिमंडप' शब्द के उल्लेख को ASI ने महत्वपूर्ण बताया है.
रिपोर्ट में ASI ने एक बड़ा तथ्य अपने एक पुराने रिकॉर्ड से भी रखा है. इसके मुताबिक, एक शिलालेख पर यह लिखा था कि मस्जिद का निर्माण मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल में (1676-77) में किया गया था. शिलालेख में ये भी लिखा था कि सन 1792-92 में मस्जिद की आंगन की मरम्मत की गई थी. इस शिलालेख की तस्वीर ASI के साल 1965-66 के रिकॉर्ड में दर्ज है. ASI ने बताया कि मौजूदा सर्वे में ये पत्थर मस्जिद के एक कमरे से बरामद हुआ. लेकिन मस्जिद के निर्माण और बाकी जानकारियों को मिटा दिया गया.
ASI ने औरंगजेब की बायोग्राफी 'मासीर-ए-आलमगिरी' का भी जिक्र किया है. इस जीवनी के 51 और 52वें पन्ने पर लिखा कि औरंगजेब ने अपने सभी प्रांत के गवर्नर को दूसरे धर्म के स्कूलों और मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था. जादूनाथ सरकार ने साल 1947 में मासीर-ए-आलमगिरी का अंग्रेजी अनुवाद किया था. इसी किताब के हवाले से ASI लिखता है कि 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब के आदेश पर उनके अधिकारियों ने काशी में विश्वनाथ मंदिर तोड़ दिया था.
रिपोर्ट के आखिर में तहखानों का भी जिक्र किया गया है. लिखा है कि मस्जिद में नमाज अदा करने के लिए पूरब के हिस्से में तहखाने बनाए गए थे. ASI की माने तो इस तहखाने को बनाने के लिए मंदिर के ही पिलर्स का इस्तेमाल हुआ. एक N2 नाम के तहखाने का जिक्र है. इसे बनाने में जिस पिलर का इस्तेमाल हुआ, उस पर घंटियां (मंदिर की), दीप रखने की जगह और समवत 1669 के शिलालेख मौजूद हैं. एक और तहखाने में S2 में मिट्टी के नीचे दबी हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी पाई गईं हैं.
मुस्लिम पक्ष क्या बोला?ये सब हमने आपको ASI की रिपोर्ट से बताया है. इन्हीं फाइंडिंग्स के आधार पर ASI ने निष्कर्ष निकाला कि ज्ञानवापी मस्जिद जहां है, वहां पहले हिंदू मंदिर था. रिपोर्ट सामने आने के बाद हिंदू पक्ष की तरफ से केस लड़ रहे वकीलों ने अपने दावे पर और मजबूती से अपना पक्ष रखा है.
हालांकि मुस्लिम पक्ष अब भी इस बात को खारिज कर रहा है. मुस्लिम पक्ष की तरफ़ से अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी के वकील अखलाक अहमद का कहना है कि मंदिर को तोड़कर कभी मस्जिद बनाई ही नहीं गई. उन्होंने कहा कि ASI की रिपोर्ट पढ़ने के बाद वो कोर्ट में आपत्ति भी दाखिल कर सकते हैं.

ASI ने जो सर्वे किया, उसमें विवादित हिस्से यानी वज़ूखाना को छोड़ा गया था. इस एक हिस्से को साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सील करवा दिया था. मस्जिद में मिले इस ढांचे को मुस्लिम पक्ष ने 'फव्वारा' कहा था, तो हिंदू पक्ष ने 'शिवलिंग' अब ASI की रिपोर्ट पर अदालत में जिरह होगी.
ज्ञानवापी मामले पर मस्जिद कमेटी सुप्रीम कोर्ट में पहले से इस मुद्दे पर लड़ाई लड़ रही है. कमेटी का कहना है कि मस्जिद के धार्मिक ढांचे में बदलाव की कोशिश की जा रही है. इसके लिए मुख्य रूप से तीन कानूनों का हवाला दिया जा रहा है.
1. 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट
2. वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995
3. 1983 का उत्तर प्रदेश काशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट
1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट यानी पूजा स्थल कानून. इस कानून को 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय बनाया गया था. कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को देश में धार्मिक स्थलों की जो स्थिति रही, वही स्थिति बरकरार रहेगी. अधिनियम की धारा 3 कहती है कि कोई भी व्यक्ति किसी धार्मिक संप्रदाय के किसी उपासना स्थल का किसी अलग धार्मिक संप्रदाय के उपासना स्थल में परिवर्तन नहीं करेगा. इसका उल्लंघन करने पर 3 साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
ये पूरा विवाद क्या है?ज्ञानवापी का मामला पहली बार साल 1991 में कोर्ट पहुंचा था, जिसमें ये दावा किया गया था कि जिस स्थान पर मस्जिद है, पहले वो मंदिर था, इसलिए उस जमीन को हिंदू समुदाय को वापस लौटाया जाना चाहिए. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि 2000 साल से भी पहले महाराजा विक्रमादित्य ने उस स्थान पर मंदिर बनवाया था. बाद में 1669 में मुगल शासक औरंगजेब के 'फरमान' पर इस मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बना दी गई. लेकिन 1998 में मस्जिद कमेटी ने कोर्ट से मांग की कि हिंदू पक्ष की याचिका को खारिज किया जाना चाहिए. बाद में ये मामला ठंडा पड़ गया.

लेकिन साल 2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद फिर से खड़ा हो गया. वाराणसी की लोकल कोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई. बाबरी मस्जिद मामले के एक वकील विजय शंकर रस्तोगी ने 'विश्वनाथ मंदिर के भगवान विश्वेश्वर' के 'मित्र' के रूप में ये मांग की कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसद का ASI से सर्वे कराया जाए. वाराणसी की निचली अदालत ने आठ अप्रैल 2021 को इसकी इजाजत भी दे दी. फिर मस्जिद कमेटी और यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी. हाई कोर्ट ने निचली अदालत को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि जब 1991 की याचिका लंबित है तो फिर इस तरह का आदेश कैसे दिया जा सकता है.
इस मामले में एक नई कड़ी तब जुड़ गई, जब विश्व वैदिक संस्थान संघ से जुड़ी पांच महिलाओं ने 2021 में याचिका दायर कर मांग की कि ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ परिसर में स्थित 'मां श्रृंगार गौरी स्थल' पर उन्हें पूजा करने की इजाजत दी जाए. उन्होंने कहा था कि ज्ञानवापी मस्जिद के पश्चिम की तरफ वाली दीवार पर देवी श्रृंगार गौरी की तस्वीर है. इसी याचिका पर कोर्ट ने मस्जिद परिसर के भीतर सर्वे कराने का आदेश दिया, जिसे लेकर इस समय विवाद चल रहा है.
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