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मस्जिद से लाउडस्पीकर हटवाने हाई कोर्ट गए थे, उसने मंदिर की आरती याद दिला दी

बजरंग दल नेता शक्ति सिंह जाला ने ये याचिका दायर की थी. इसमें दावा किया गया था कि लाउडस्पीकर के माध्यम से होने वाली अजान के कारण “ध्वनि प्रदूषण” होता है, जो कि लोगों और विशेष रूप से बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है.

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बेंच ने कहा कि ये वर्षों से चली आ रही आस्था और परंपरा है जो 5 से 10 मिनट के लिए होती है. (फोटो- ट्विटर)

गुजरात हाई कोर्ट ने मस्जिदों में अजान के वक्त लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ी एक याचिका को खारिज कर दिया है (High Court rejects plea to ban loudspeakers in mosques). कोर्ट ने याचिका को ‘पूरी तरह से गलत’ करार दिया. साथ ही मंदिरों की आरती में इस्तेमाल होने वाले लाउडस्पीकर पर सवाल भी खड़ा किया.

गुजरात हाई कोर्ट ने 28 नवंबर को मस्जिदों में अजान के इस्तेमाल पर बैन की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की. बजरंग दल नेता शक्ति सिंह जाला ने ये याचिका दायर की थी. इसमें दावा किया गया था कि लाउडस्पीकर के माध्यम से होने वाली अजान के कारण “ध्वनि प्रदूषण” होता है, जो कि लोगों और विशेष रूप से बच्चों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है.

लेकिन सुनवाई करने वाली हाई कोर्ट की बेंच ने इसे खारिज कर दिया. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध पी माई की बेंच ने कहा कि वे ये नहीं समझ पा रहे कि “मानवीय आवाज़ अजान” ने ध्वनि प्रदूषण पैदा करने के लिए डेसीबल (माने शोर का लेवल) को निर्धारित सीमा से अधिक कैसे बढ़ा दिया. बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान ये भी सवाल किया कि, क्या याचिकाकर्ता का मामला ये है कि किसी मंदिर में आरती के दौरान घंटियों और घड़ियों का शोर बाहर नहीं सुनाई देता है?

कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा,

“आपके मंदिरों में सुबह की आरती भी ढोल-नगाड़ों के साथ 3 बजे ही शुरू हो जाती है. तो क्या इससे किसी को किसी भी तरह का शोर नहीं होता? क्या आप कह सकते हैं कि घंटे और घड़ियाल का शोर केवल मंदिर परिसर में ही रहता है? क्या ये मंदिर के बाहर नहीं फैलता है?”

बेंच ने कहा कि वो इस तरह की जनहित याचिका पर विचार नहीं करेगी. साथ ही कहा कि, ये वर्षों से चली आ रही आस्था और परंपरा है जो 5 से 10 मिनट के लिए होती है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये भी कहा कि अजान दिन के अलग-अलग समय पर होती है. याचिकाकर्ता किसी विशेष क्षेत्र के लिए कोई भी ऐसा डेटा नहीं उपलब्ध करा पाए हैं जिससे ये साबित हो सके कि दस मिनट की अजान से ध्वनि प्रदूषण होता है.

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