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अमेरिका-चीन के बीच 'ग्रे ज़ोन वॉरफ़ेयर' क्या है, जिसका ज़िक्र भारत के आर्मी चीफ़ ने किया?

भू-राजनीति पर चर्चा का मंच रायसीना डायलॉग में भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ जनरल अनिल चौहान ने 'ग्रे ज़ोन वॉरफेयर' का ज़िक्र किया है. इसका इतिहास-भूगोल जान लीजिए.

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ग्रे ज़ोन युद्ध में दुनिया की दो सबसे बड़े प्लेयर्स संलिप्त है. (फ़ोटो - AP)

21वीं सदी की दुनिया में कूटनीति, अंतरराष्ट्रीय संबंध और भू-राजनीति का बहुत ज़ोर है. दुनिया ग्लोबल विलेज हुई जा रही है. मगर असल में क़बीले आज भी हैं. बस अब वो व्यवस्था इतनी पुख़्ता हो गई है कि क़बीले-क़बीले नहीं लगते, नेशन-स्टेट्स कहलाते हैं. उनके तरीक़े क़बीलाई नहीं लगते, डिप्लोमेसी के जामे से ढक दिए गए हैं. इसीलिए इस वक़्त में दोस्त और दुश्मन स्थायी नहीं है. सीमा पर भले तनाव रहे, धंधा पूरे ज़ोर में चलता रहता है. चुनांचे कुछ दोस्त हैं, कुछ दुश्मन, कुछ ‘हालाती’.

भू-राजनीति के लिए चर्चा के मंच रायसीना डायलॉग में भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ़ जनरल अनिल चौहान ने 'ग्रे ज़ोन वॉरफेयर' का ज़िक्र किया. ये वही हालात हैं.

रायसीना डायलॉग क्या है?

रायसीना डायलॉग का नौवां संस्करण 21 फ़रवरी से नई दिल्ली में आयोजित हुआ था. विदेश मंत्रालय के साथ साझेदारी में थिंक टैंक ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन रायसीना डायलॉग की मेज़बानी करता है. सम्मेलन नई दिल्ली में होता है, 2016 से हो रहा है, और इसमें राजनीतिक, व्यावसायिक, मीडिया और नागरिक समाज से लोग शामिल होते हैं. इस साल लगभग 115 देशों के 2,500 से ज़्यादा प्रतिनिधि शामिल हुए थे.

भू-राजनीति (geo-politics) और भू-अर्थशास्त्र (geo-economics) पर एक सालाना सम्मेलन किया जाता है. मक़सद, कि दुनिया की समकालीन चुनौतियों पर चर्चा हो, उनके समाधान निकाले जाएं. विदेश मंत्रालय की एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़, 2024 संस्करण का विषय 'चतुरंग: संघर्ष, प्रतियोगिता, सहयोग, सृजन' था.

सम्मेलन के आख़िरी दिन 'नए युद्ध: नीतियां, प्रथाएं और तैयारी' मौज़ू पर चर्चा के दौरान भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ जनरल अनिल चौहान ने दक्षिण चीन सागर के हालात का उदाहरण दिया, जहां कभी-कभी इस क्षेत्र में छोटी नावों के टकराव की घटनाएं सामने आती हैं. इसी का हवाला देते हुए ग्रे-ज़ोन वॉरफे़यर के उदय पर चर्चा की.

ग्रे ज़ोन वॉरफ़ेयर क्या है?

ग्रे का इस्तेमाल किस लिए होता है? बीच के लिए. सफ़ेद और काले के बीच की जगह के लिए. इसीलिए आप पढ़ते-सुनते हैं कि फ़ला कहानी या फ़िल्म का अमुक किरदार ग्रे है. माने न हीरो है, न विलन. उसमें दोनों के रंग हैं. अब दुनिया का दस्तूर है कि सफ़ेद माने अच्छा और काला माने ख़राब, तो ग्रे का शेड इसी हिसाब से हल्का-गाढ़ा तय किया जाता है.

इसी तरह शांतिपूर्ण कार्रवाई और ख़ूनी जंग के बीच की जगह है, ग्रे ज़ोन वॉरफ़ेयर. दरअसल, जब किन्हीं दो पार्टीज़ के बीच खींचतान हो, तो यथास्थिति को बदलने (या बिगाड़ने) के लिए कुछ ख़ुराफ़ात की जाती है. बस इसमें ध्यान इस बात का रखना होता है कि लाइन क्रॉस न हो जाए, इस कार्रवाई का अंजाम युद्ध या किसी तरह की सैन्य प्रतिक्रिया न हो.

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क़रीब 2500 साल पहले चीन में एक सैन्य जनरल, रणनीतिकार, दार्शनिक और लेखक हुए, सन त्ज़ु. उनकी कहनी बहुत जगहों पर सटीक है. कूटनीति के लिए वो कहते थे, ‘जंग की सबसे बड़ी कला ये है कि बिना लड़े ही शत्रु को हरा दें.’

कूटनीति का ही एक पक्ष है, ग्रे ज़ोन वॉरफ़ेयर. बस इसमें 'बिना लड़े' से थोड़ा ज़्यादा लड़ना होता है. सीधे खुला युद्ध नहीं होता. इसीलिए साइबर हमले, आर्थिक दबाव और छुटपुट संघर्ष जैसी रणनीतियां अपनाई जाती हैं. कुछ विशेषज्ञ इसमें आर्थिक कार्रवाइयों भी जोड़ते हैं. मसलन, क़र्ज़ का जाल और आर्थिक प्रतिबंध.

विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि छोटी ताक़तें - जिनके पास बहुत संसाधन नहीं होते - वो इस तरीके़ का इस्तेमाल करती हैं. अब सीधी जंग हुई, तो वो हार जाएंगे. इसीलिए ग्रे ज़ोन.

शुरू कैसे हुआ?

पूर्व-अमेरिकी सैन्य एक्सपर्ट रॉबर्ट जे गिस्लर कहते हैं कि ग्रे ज़ोन जंग की नींव द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शुरू हुए शीत युद्ध के साथ ही पड़ गई. दुनिया दो ख़ेमों की बंट गई -- अमेरिका और रूस. USA और USSR के वैचारिक और आर्थिक प्रभुत्व की होड़ के बीच सीधे संघर्ष नहीं किया जा सकता था, क्योंकि दोनों पक्षों के पास परमाणु हथियार थे, और परमाणु की क़ीमत दुनिया देख चुकी थी. इसीलिए प्रॉक्सी जंगें लड़ी गईं. सीधे नहीं, इधर-उधर से एक-दूसरे को हराने के जतन किए गए.

शीत युद्ध तो सोवियत संघ के विघटन के साथ ख़त्म हो गया. मगर 21वीं सदी की डिप्लोमेसी में भी ग्रे ज़ोन ने अपनी ग्रे जगह खोज ली. अब हालिया उदाहरण क्या हैं?

सुरक्षा और कूटनीति के विशेषज्ञों ने कुछ रूसी और चीनी कार्रवाइयों को ग्रे ज़ोन युद्ध के उदाहरण के तौर पर गिना है. जैसे फिलीपींस के मुताबिक़, दक्षिण चीन सागर में 135 से ज़्यादा चीनी समुद्री मिलिशिया जहाज हैं. उन्होंने ये भी आरोप लगाए हैं कि चीन ने उनकी नावों पर हमले किए. वहीं, चीन की तट रक्षक सेना के आरोप हैं कि फ़िलीपीन्स वाले चीन की नावों पर हमला करते हैं. हाल ही में छपी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, ताइवान ने भी शिकायत की है कि बीते चार सालों में चीन की सैन्य कार्रवाई बढ़ी है.

विदेश नीति अनुसंधान संस्थान पैसिफ़िक फ़ोरम के एक पेपर के मुताबिक़, अमेरिका भी इसी तरह की रणनीति में लगा हुआ है. चाहे वो चीन के ख़िलाफ़ आर्थिक प्रतिबंध हों या चीनी आयात पर शुल्क लगाना.

समस्या क्या है? जंग नहीं होती, तो ऐसा लग सकता है कि ये ठीक है. मगर ठीक नहीं है. क्योंकि ग्रे ज़ोन में एक समस्या है. ये आपको स्पष्टता से दूर करता है. शांति और तनाव के बीच की रेखाओं को धुंधला कर देता है. इससे होता ये है कि दुश्मन कौन है और दोस्त कौन, ये पता नहीं चलता. और, इससे ये अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और स्थिरता के लिए चुनौती बन जाता है.