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सरकार चिल करे, देश में बेरोजगारी और प्रदूषण का असली कारण मच्छर हैं!

मच्छर से परेशान एक शख्स की कहानी

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प्रदूषण से लेकर बेरोजगारी तक, हर परेशानी का कारण हैं मच्छर!

एक मच्छर आदमी को….. बना देता है. ना, ना जो आप सोच रहे हैं, वो नहीं. चौकीदार बना देता है. वो भी वो वाला नहीं जो आप समझ रहे हैं. असल में रातभर जागने वाला चौकीदार. ये मैं आपको इसलिए बता रहा हूं क्योंकि मैं मच्छरों से परेशान हूं. मेरी तरह कई लोग इन दिनों मच्छरों से परेशान हैं.  

ये मच्छर मुझे स्कूल के सबक याद दिला रहे हैं. बचपन में पढ़ा था, ‘बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख.’ वैसे ही ये मच्छर हैं. इन्हें रैकेट लेकर खोजो तो एक नहीं दिखता, सोने चले जाओ तो झुंड बनाकर आ जाते हैं. अब मेरा भी फिल्मों का बायकॉट करने का मन करने लगा है. इसलिए नहीं कि मैं ऑफेंड हूं, मुझे लगता है कि फिल्में समतामूलक समाज की स्थापना के लिए काम नहीं कर रही हैं. दबे-कुचले और चुसे हुए लोगों की आवाज़ उठानी फिल्मों ने बंद कर दी हैं.

फिल्मों में डायलॉग होते हैं. 'मुन्ना झुंड में तो सुअर आते हैं.' झूठ है ये. आप बताइए आख़िरी बार कब सुअरों ने झुंड बनाकर आप पर हमला किया था. कब किसी सुअर ने आपको काटा था. सुअर मुफ्त में बदनाम हैं, झुंड में तो मच्छर आ रहे हैं. मेरे घर के मच्छरों की सबसे बड़ी ताकत उनका कॉन्फिडेंस है. उन्हें भगाने के लिए कमरे में कॉइल जलाता हूं तो वो उसके पास बैठकर बॉनफायर करते हैं. मशीन लगाता हूं तो वे फ्यूम्स को सूंघकर मनाली ट्रेंस पर डांस करते हैं. बाकी मच्छर ठंड में चले जाते हैं. मेरे वाले जाते नहीं बल्कि मेरे ही ब्लैंकेट में आकर सो जाते हैं.

देखें वीडियो- कुछ लोगों को मच्छर ज़्यादा क्यों काटते हैं? 'मीठा खून' नहीं, ये है वजह!

एक रिपोर्ट आई थी कि स्मॉग के चलते दिल्ली-एनसीआर वाले बिना पिए ही रोज 20 सिगरेट पी रहे हैं. मैं 3 का एक्स्ट्रा धुआं पी रहा हूं, कॉइल्स की वजह से. (सिगरेट नहीं पी रहा. रिश्तेदार हित में वैधानिक चेतावनी जारी!) मैं एक कन्फेशन भी करना चाहता हूं. दिल्ली-एनसीआर में फैले प्रदूषण का जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ मैं हूं. किसी पराली या किसी पटाखे को दोष मत दीजिए. ऑड डे की सारी गाड़ियां इवन डे में मिलकर जितना प्रदूषण नहीं फैलातीं. उससे ज़्यादा धुआं हर घंटे मेरे कमरे से निकल रहा है. कॉइल जलाने से अगर किसी का नाम पड़ता हो तो मैं कॉइली जेनर या विराट कॉइली हूं. इनके चक्कर में पूरी रात जागकर बिता देता हूं. पड़ोसी अपना घर लॉक तक नहीं करते क्योंकि उन्हें पता है चौकीदार जाग रहा है.

एक कन्फेशन मैं और करना चाहता हूं. अगर देश में 45 सालों में सबसे ज़्यादा बेरोजगारी है तो मेरे कारण. मोहल्ले वालों ने चौकीदार को हटा दिया है. उन्हें लगता है चौकीदारी के लिए मैं जाग तो रहा हूं. लोगों पर फिल्में मरने के बाद बनती हैं, मुझ पर पैदा होने के पहले बन गई थी. राजकपूर ने बनाई थी. 'जागते रहो.'

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कभी-कभी लगता है, ये मच्छर नहीं हैं. आयकर विभाग वाले हैं. खाना मैं खाता हूं, पोषण ये ले जाते हैं. एक बार काटते हैं, फिर दोबारा आकर जीएसटी के तौर पर 28% और काट जाते हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ मच्छर काटते हैं, काटते इनकम टैक्स वाले भी हैं लेकिन उनसे रिटर्न आने की उम्मीद तो रहती है. ऐसा भी नहीं है कि मेरे घर के आसपास सफाई नहीं रहती. जिस शहर में पीने का पानी भी 75 रुपये की बोतल में खरीदना पड़ता है. वहां जमे पानी में मच्छर पैदा होने की गुंजाइश ही नहीं है. बाकी मेरा फ़्लैट भी उतना ही साफ रहता है, जितना फ़्लैट का किराया देने के बाद बैंक अकाउंट.

अंत में मैं हाथ जोड़कर इन मच्छरों से यही कहना चाहूंगा. 
हे मॉस्कीटो.... सॉरी नासपीटों.... मेरा पीछा छोड़ दो. 

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