
बच्ची के पिता विडियो में मेजरगंज रेफरल अस्पताल के डॉक्टरों पर लापरवाही का इल्जाम लगा रहे हैं. स्थानीय पुलिस ने भी यही कहा है. न केवल इलाज में लापरवाही बरती गई, बल्कि ऐम्बुलेंस जैसी जरूरी चीज भी नहीं मुहैया कराई गई. पिता का कहना है कि बच्ची करीब 40 मिनट तक जिंदा थी. अगर कोशिश की जाती, तो वो बच सकती थी.
आपको ये विडियो देखना चाहिए ये बिहार के सीतामढ़ी जिले की घटना है. यहां चैनपुर नाम का एक गांव है. सिमरन के पिता अमरेंद्र राम यहीं रहते हैं. ये घटना एक वायरल विडियो की शक्ल में हम तक पहुंची. विडियो में कई लोग जमीन पर बैठे दिख रहे हैं. रोना-रोहट मचा है. एक आदमी गोद में बच्ची लिए खड़ा है. वो उसकी बेटी थी, जो मर गई है. बच्ची की लाश को थामे-थामे बेहद गुस्से में वो आदमी मोबाइल कैमरा की तरफ देखते हुए अपनी बात कह रहा है. वो चाहता है कि उसकी बात पूरे भारत तक पहुंचे. प्रधानमंत्री तक पहुंचे. उसने जो कहा, वो उस बच्ची के जिंदा होने से मर जाने की कहानी है. वो कहता है-
मोदी जी, मेरी बात ध्यान से सुनिए. मैं सीतामढ़ी जिला से बोल रहा हूं. चैनपुर में मेरा बेटी को सांप काट लिया था. मेजरगंज में मैं लेकर गया हॉस्पिटल में. यहां मैं (बच्ची के शव को हिलाते हुए) सुरक्षित लेकर गया था. कोई शासन, कोई प्रशासन मेरे को गाड़ी नहीं दिया है. मैं उसको बोला ऐम्बुलेंस दो, सीतामढ़ी लेकर जाने के लिए. लेकिन कोई मुझको गाड़ी नहीं दिया है. देखो मेरा बेटी. बेटी बचाओ का ऐलान कर रहे हो आप. बेटी बचाओ नहीं, बेटी मराओ कर रहे हो आप. मेरा बेटी को मार दिए हो आप. देखो ये उंगली में सबूत, सांप काटा है. (बच्ची की कलाई की तरफ इशारा करते हुए) मैं यहां पर बांधकर हॉस्पिटल में पहुंचा हूं. और बोला हूं कि इसको बढ़िया से ट्रीटमेंट कीजिए. तब दू गो (दो) सुइया लगाया है. पता नहीं कौन सा सुइया लगाया है.ये शब्द बहुत देर तक आपको मायूस करते हैं. आप मायूसी में ताज्जुब करते हैं. कि बच्ची की ताजा लाश गोद में लेकर भी ये इंसान इतनी तमीज से बात कैसे कर रहा है? और क्या उम्मीद है उसे? मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री तक बात पहुंच जाने से क्या उसकी बच्ची लौट आएगी?
सीतामढ़ी लेकर जाने के लिए मेरे पास कोई साधन नहीं था. टेम्पु में लेकर गया हूं. मेरा बेटी आधा रास्ता में मर गया है. आपके पास ऐम्बुलेंस नहीं है? यही सरकारी हॉस्पिटल है? मेरे को किडनैप कर लीजिए. आइए अगर मैं गलती बोल रहा हूं तो. पूरा समाज, पूरा सबूत मेरे साथ है. देखिए (बच्ची के शरीर की तरफ इशारा करते हुए) मैं लाश लिया हूं. बेटी को लाश लिया हूं. इतना पागल हूं, इतना पागल हूं कि मन तो करता है कि प्रशासन तक पहुंच जाऊं. अगर है किसी में दम तो शेयर कीजिए बात को आगे. बेटी बचाओ नहीं, बेटी मारो हो रहा है. इलाज नहीं हो रहा है. सत्यानाश हो रहा है. मेरा बेटी को सांप काट लिया, तो इलाज नहीं होगा? डेढ़ घंटा तक करीब मेरा बेटी जिंदा रही है. डेढ़ घंटा बोल रहा हूं, सॉरी. आधा घंटा, करीब चालीस मिनट तक मेरा बेटी जिंदा रही है. ऐम्बुलेंस नहीं मिला मेरे को. (कैमरे से रिकॉर्डिंग करते हुए इंसान से बात करते हुए) अब इसको स्टॉप करो और शेयर करो.

बच्ची के पिता अमरेंद्र कैमरे पर सिमरन के हाथ में बंधी पट्टी दिखा रहे हैं. पुलिस का कहना है कि बच्ची काफी जागरूक था. सांप काटने की स्थिति में जरूरी प्राथमिक बातों का ध्यान रखा था.
क्या हुआ सिमरन के साथ? हमने मेजरगंज के थाना प्रभारी सैफ अहमद खान से बात की. उन्होंने इस घटना की पुष्टि की. बताया कि 7 सितंबर को बच्ची का परिवार उसे लेकर आया था. उन्होंने अपनी तरफ से पूरी सावधानी बरती थी. बच्ची की कलाई में कपड़ा बांधा था, ताकि जहर शरीर में न फैले. मेजरगंज का अस्पताल पहले प्राथमिक हॉस्पिटल था, लेकिन अब उसे रेफरल अस्पताल बना दिया गया है. आस-पास के करीब आठ पंचायतों के गांवों के मरीजों यहां आते हैं. बमुश्किल दो डॉक्टर हैं यहां. SHO खान ने बताया कि अस्पताल के प्रभारी के के झा की तरफ से लापरवाही हुई. बच्ची को इंजेक्शन देते ही झट से उसके हाथ में बंधा कपड़ा हटा दिया गया. फिर जब उसकी हालत और बिगड़ने लगी, तो उसे सीतामढ़ी के सदर अस्पताल में रेफर कर दिया गया. लेकिन ऐम्बुलेंस मांगे जाने पर कहा गया कि ड्राइवर उपलब्ध नहीं है. डॉक्टरों का ये जवाब सुनकर सिमरन के घरवाले बौखला गए. तब तक वहां और भी लोग जमा हो गए थे. थोड़ा हल्ला-हंगामा हुआ. पुलिस मौके पर पहुंची. फिर बच्ची की हालत देखते हुए परिवार ने टेम्पो किराये पर लिया. मगर बच्ची अस्पताल पहुंचने से पहले रास्ते में ही मर गई.
बरसात के मौसम में सांप काटने की घटनाएं बढ़ जाती हैं ये हर साल की बात है. बरसात के मौसम में सांप काटने की घटनाओं में इजाफा होता है. बाढ़ के दिनों में ऐसे वाकये और भी ज्यादा बढ़ जाते हैं. करीब एक महीने पहले सीतामढ़ी के DM ने बाढ़ तैयारियों से जुड़ी मीटिंग की थी. ऐसी मीटिंग्स में बाकी जरूरी बातों के अलावा दवाओं के स्टॉक को लेकर भी बात होती है. आठ पंचायतों के लोग जिस अस्पताल में सबसे पहले पहुंचते हों, वहां सांप काटने जैसी गंभीर स्थिति पर सही इलाज मौजूद न होना माफ न किए जाने वाली लापरवाही है. वो भी तब, जब आपको पहले से स्थिति पता हो. आपको मालूम हो कि कभी भी दवा की जरूरत पड़ सकती है. इस मौसम में तो प्रशासन को अतिरिक्त मुस्तैदी दिखानी चाहिए. ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि सर्पदंश जैसे मामलों में सदर अस्पताल भेजने की जरूरत ही न पड़े. दवाओं का पर्याप्त स्टॉक हो. दिन या रात, चौबीस घंटे ऐम्बुलेंस मौजूद रहे. यहां तो ऐन इमरजेंसी पर ऐम्बुलेंस का ड्राइवर गायब था? ऐसी लापरवाहियों पर आंख मूंदना गुनाह है.
फिलहाल कोई शिकायत नहीं लिखवाई गई है हमने SHO खान से पूछा कि क्या सिमरन के परिवार ने डॉक्टरों के खिलाफ कोई शिकायत लिखवाई है. जवाब मिला, नहीं. पुलिस का कहना है कि अगर उन्हें शिकायत मिलती है, तो वो अपनी कार्रवाई करेंगे.

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