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जीएन साईबाबा ने जेल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए, रिहा होने के बाद बोले- जिंदा बाहर नहीं आ पाता

प्रोफेसर साईबाबा ने कहा कि उन्हें जेल में सिर्फ इसलिए डाला गया क्योंकि 10 साल पहले वे दलितों, शोषितों, वंचितों और आदिवासियों के लिए काम कर रहे थे.

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साईबाबा ने कहा कि वे दूसरों की मदद के बिना एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते. (फोटो- वीडियो स्क्रीनशॉट)

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा (GN Saibaba) 7 मार्च को जेल से रिहा हो गए. माओवादियों से कथित संबंधों के केस में दो दिन पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें बरी किया था. 10 साल बाद जेल से रिहा होने के बाद प्रोफेसर साईबाबा ने मीडिया से कहा कि ये आश्चर्य है कि जेल में 'बर्बर जीवन' से जूझते हुए भी वे जेल से जिंदा बाहर निकल आए. 5 मार्च को हाई कोर्ट ने उन्हें रिहा करते हुए कहा था कि महाराष्ट्र पुलिस साईबाबा और अन्य लोगों के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं कर पाई. हालांकि महाराष्ट्र सरकार इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा चुकी है.

90 फीसदी से अधिक विकलांग प्रोफेसर साईबाबा नागपुर सेंट्रल जेल में बंद थे. जेल से निकलने के बाद उन्होंने नागपुर में ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने मीडियाकर्मियों को बताया कि वे दूसरों की मदद के बिना एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पहले उन्होंने अपने स्वास्थ्य का हवाला देकर मीडिया से बात करने से इनकार कर दिया था. साईबाबा ने कहा कि पहले उन्हें अपना इलाज करवाना है, उसके बाद ही बात कर पाएंगे.

हालांकि अपने वकीलों और रिपोर्ट्स के अनुरोध पर उन्होंने बात की. हमेशा वील चेयर पर रहने वाले साईबाबा ने बताया, 

"मई 2014 में जब मैं जेल गया, तब एक स्वस्थ इंसान था. मुझे सिर्फ पोलियो था. लेकिन अब हार्ट की समस्या है, पैंक्रियाज में, मसल में कई तरह की बीमारियां हो गई हैं. डॉक्टर ने मुझे कई ऑपरेशन एक साथ कराने को कहा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ."

साईबाबा ने अपने खराब स्वास्थ्य के लिए जेल प्रशासन पर और भी कई आरोप लगाए. कहा, 

"मेरा हार्ट सिर्फ 55 फीसदी ही काम करता है. लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा है कि डॉक्टर के बताने के बाद भी मेरा इलाज क्यों नहीं करवाया गया. मैं शौचालय (अकेले) नहीं जा सकता, मैं बिना सहारे नहा नहीं सकता. इसकी पूरी संभावना थी कि मैं जेल से जिंदा बाहर नहीं आ पाता."

अपने खिलाफ केस को झूठा बताते हुए प्रोफेसर साईबाबा ने कहा कि उन्हें जेल में सिर्फ इसलिए डाला गया क्योंकि 10 साल पहले वे दलितों, शोषितों, वंचितों और आदिवासियों के लिए काम कर रहे थे. उन्होंने आगे कहा कि अगर भारत का संविधान 50 फीसदी भी लागू हो जाए तो निश्चित तौर पर बदलाव हो जाएगा.

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माओवादियों से संपर्क रखने के आरोप में साईबाबा करीब 10 सालों से जेल में थे. महाराष्ट्र की एक निचली अदालत ने उन्हें साल 2017 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. 5 मार्च को बॉम्बे हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया था.

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