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मोदी के बड्डे पर जो चीते आए थे, उनमें से एक बस इस वजह से मर गया

मृत चीते को कौन सी बीमारी थी?

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सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो- इंडिया टुडे)

पिछले साल नामीबिया से भारत लाए गए 8 चीतों में एक की मौत हो गई है. सभी चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था. इनमें से एक साशा नाम की मादा चीता की मौत हुई है. कूनो नेशनल पार्क ने एक बयान में बताया कि साशा पिछले करीब 2 महीनों से बीमार थी. साशा किडनी संक्रमण से पीड़ित थी. पार्क ने बताया कि साशा को किडनी की बीमारी भारत लाए जाने से पहले से थी.

साशा के बारे में क्या पता चला?

कूनो नेशनल पार्क के मुताबिक, इस साल 22 जनवरी को मॉनिटरिंग टीम ने पार्क में साशा को सुस्त पाया था. इसके बाद डॉक्टरों की एक टीम ने उसकी जांच की और उसे क्वारंटीन बाड़े में भेज दिया. जब ब्लड सैंपल की जांच हुई तो पता चला कि साशा की किडनी में संक्रमण है. बीमारी निकलने के बाद भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिकों ने नामीबिया से साशा की ट्रीटमेंट हिस्ट्री मांगी. पता चला कि साशा को पहले से किडनी की बीमारी थी.

नामीबिया से 17 सितंबर 2022 को आठ चीते भारत आए थे. 17 सितंबर को ही PM मोदी का जन्मदिन होता है. भारतीय वैज्ञानिकों के पूछे जाने पर नामीबिया के चीता कंजर्वेशन फाउंडेशन ने बताया कि आखिरी बार 15 अगस्त 2022 को ब्लड जांच हुई थी. उस दौरान साशा के खून में क्रियेटिनिन का लेवल 400 से अधिक पाया गया था. कूनो नेशनल पार्क के मुताबिक, क्रियेटिनिन के इस लेवल से पता चलता है कि साशा को किडनी की बीमारी भारत में आने से पहले से ही थी.

कूनो नेशनल पार्क में चीता (फोटो- PIB)

कूनो नेशनल पार्क ने बताया है कि साशा के इलाज के लिए नामीबियाई डॉक्टरों से भी मदद ली गई. इलाज के दौरान साउथ अफ्रीका के वेटरिनरी डॉक्टरों ने भी साशा को देखा. हालांकि बीमारी पता चलने के दो महीने बाद साशा नहीं बच पाई. अब नामीबिया से लाए गए चीतों में 7 बचे हैं. इनमें से तीन नर और एक मादा चीता खुले जंगल में छोड़े गए हैं. पार्क के मुताबिक ये सभी स्वस्थ हैं.

‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत चीतों की वापसी

इस साल 18 फरवरी को साउथ अफ्रीका से भी 12 चीते लाए गए थे. ये सभी चीते फिलहाल कूनो नेशनल पार्क के क्वारंटीन बाड़ों में हैं. भारत में चीतों की वापसी 'प्रोजेक्ट चीता' योजना के तहत हुई है. भारत ने साल 2022 की शुरुआत में चीतों को लाने के लिए नामीबिया से समझौता किया था. सरकार का मानना है कि चीतों के आने से जंगल और घास के मैदान के इकोसिस्टम की बहाली में मदद मिलेगी.

दरअसल, साल 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से चीतों को विलुप्त मान लिया था. यानी देश में एक भी चीता नहीं बचा था. चीतों को दोबारा देश में बसाने के लिए पिछली सरकारों ने भी प्रयास किए. हालांकि ये प्रयास अंत तक नहीं पहुंचे. 1970 के दशक में भारत ने ईरान से चीतों को लाने की कोशिश की थी, लेकिन ये सफल नहीं हो पाई थी. साल 2009 में यूपीए सरकार ने पहल की. अफ्रीकन चीतों को लाने के प्रस्ताव को सरकार ने मंजूरी दी.

अप्रैल 2010 में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश अफ्रीका भी गए. इसके लिए 2010-12 के बीच देश में 10 जगहों का सर्वेक्षण भी किया गया था. उस वक्त शुरुआती तौर पर 18 चीतों को तीन जगहों पर बसाने की योजना थी. हालांकि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चीतों के भारत लाने पर रोक लगा दी थी. मामले पर कोर्ट में सालों तक विवाद जारी रहा. फिर साल 2020 में कोर्ट ने अनुमति दी. इसके बाद नए सिरे से चीतों को लाने की कोशिशें जोर पकड़ी.

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