The Lallantop

MSP पर सरकार का प्रस्ताव या 'खेल', क्यों नहीं माने किसान?

सरकार ने MSP पर 'गारंटी' दी, किसानों ने सुना, फिर एक रात में ऐसा क्या हुआ जो आंदोलन दोबारा शुरू कर दिया?

post-main-image
किसानों ने कहा कि केंद्र के प्रस्ताव से उन्हें कोई फायदा नहीं होगा. (फोटो - PTI)

प्रदर्शन कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध (Farmers Protest) ख़त्म नहीं हो रहा. फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर नरेंद्र मोदी सरकार ने जो प्रस्ताव रखा था, किसानों ने उसे ख़ारिज कर दिया है और कहा कि वो 21 फ़रवरी की सुबह अपना 'दिल्ली चलो' (Dilli Chalo) मार्च फिर से शुरू करेंगे. किसान नेताओं का कहना है कि सरकारी प्रस्ताव में स्पष्टता नहीं है और वो उनके हित में भी नहीं है.

सरकार ने क्या प्रस्ताव दिया था?

किसानों की दो प्रमुख मांगें हैं. पहली कि सरकार MSP गारंटी पर क़ानून बनाए. भले ही सरकार उनकी पूरी फसल न ख़रीदे, पर अगर किसान खुले बाज़ार में भी अपनी उपज बेचता है, तो उसे न्यूनतम क़ीमत की गारंटी मिले. क़ानून बन जाने से सरकार, प्राइवेट कंपनियां या पब्लिक सेक्टर एजेंसियां, कोई भी मनमाने दाम पर फसल नहीं ख़रीद पाएगा.

दूसरी मांग: MSP गारंटी के साथ किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करवाना चाहते हैं. इसके अलावा किसानों और खेतिहर मज़दूरों को पेंशन मिले, बिजली दरों में बढ़ोतरी न हो, किसानों का क़र्ज़ माफ़ हो, भूमि अधिग्रहण अधिनियम (2013) बहाल किया जाए, लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में न्याय मिले, 2020-21 में हुए आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवज़ा दिया जाए और पुलिस ने जो मामले दर्ज किए थे, वो भी वापस लिए जाएं.

ये भी पढ़ें - पिछली बार से कितना अलग है किसान आंदोलन-2.0?

अब सरकार ने क्या वादा किया? वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल, कृषि व किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने चंडीगढ़ में किसान नेताओं के साथ चौथे दौर की बातचीत की. केंद्रीय मंत्रियों के पैनल ने सरकार की ओर से प्रस्ताव रखा:

  • मसूर, उड़द, तुअर, मक्का और कपास उगाने वाले किसानों के साथ दो सहकारी एजेंसियां NCCF (राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ) और NAFED (भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ) 5 साल का एग्रीमेंट करेंगी. और, इस एग्रीमेंट के ज़रिए सीधे किसानों से ये फसलें MSP पर ख़रीदी जाएंगी.
  • ख़रीद की मात्रा पर कोई सीमा नहीं होगी, और इसके लिए एक पोर्टल बनाया जाएगा.

इससे पहले, 18 फरवरी की रात केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि साल 2004 से 2014 के बीच UPA सरकार ने केवल साढ़े 5 लाख करोड़ रुपये की फसलों की ख़रीद MSP पर की थी. और, मोदी सरकार ने बीते दस सालों में 18 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की ख़रीद की है.

ये भी पढ़ें - क्या होता है MSP? 

बैठक के बाद किसान नेताओं ने कहा था कि वो अपने संगठन के साथ सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और दो दिनों में आगे की रणनीति तय करेंगे.

किसान क्यों नहीं माने?

केंद्रीय मंत्री ने तो दावा कर दिया. मगर किसान इससे ख़ुश नहीं हैं. उनका सीधा कहना है कि केवल पांच नहीं, सभी 23 फ़सलों पर MSP की गारंटी चाहिए.

किसान मजदूर मोर्चा के नेता सरवन सिंह पंधेर ने शंभू सीमा पर मीडिया से कहा,

हम सरकार से अपील करते हैं कि या तो हमारे मुद्दों का समाधान करें या बैरिकेड हटा दें और हमें शांतिपूर्वक विरोध करने के लिए दिल्ली जाने की अनुमति दें.

दरअसल, सरकार जिन पांच फसलों पर MSP देने की बात रही है, उससे सभी किसानों का फ़ायदा नहीं है. कृषि अर्थशास्त्री देवेंद्र शर्मा ने दैनिक भास्कर से इस मसले पर तफ़्सील चर्चा की है. उन्होंने बताया कि सरकार का फ़ोकस पंजाब-हरियाणा पर है, क्योंकि वहीं के किसान आंदोलन कर रहे हैं. और तो और लंबे समय से सरकार इस कोशिश में है कि पंजाब और हरियाणा में चावल और गेहूं के अलावा दूसरी फसलें भी उगाई जाएं. किसानों को कपास और मक्का बोने के लिए भरसक प्रोत्साहित भी किया गया है. मगर इस प्लैन से मध्य भारत, पूर्वांचल और दक्षिणी भारत के किसानों को कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं होगा. फिर तिलहन, मसाले और फल-सब्जियों को लेकर भी सरकार ने कुछ अलग से योजना नहीं बताई है.

हालांकि, जिन फसलों पर सरकार गारंटी देने को तैयार हुई है, उनमें सीधे तौर पर किसानों का घाटा नहीं है. देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि दलहन का भाव ज़्यादा है. इसलिए अगर किसान गेहूं की जगह अरहर बोएगा, तो भी उसे बहुत घाटा नहीं होगा.

क्या हो सकता है आगे का रास्ता?

दो तरीक़े हैं. पहला कि ख़रीदारों को MSP पर फसल ख़रीदने के लिए फ़ोर्स किया जाए. मसलन, क़ानून कहता है कि गन्ना उत्पादकों को चीनी मिलों की तरफ़ से ख़रीद के 14 दिनों के अंदर ‘उचित और लाभकारी’ या राज्य-सलाहित मूल्य मिलेगा. लेकिन ये व्यावहारिक नज़रिए से मुश्किल है. हो सकता है MSP देने के 'डर' से फसल ख़रीदी ही न जाए. दूसरा तरीक़ा ये है कि सरकार ही किसानों की पूरी फसल MSP पर ख़रीद ले. मगर ये भी वित्तीय लिहाज़ से टिकाऊ प्लैन नहीं है.

इन दोनों तरीक़ों के अलावा कृषि विशेषज्ञ एक तीसरे तरीक़े की ओर इशारा करते हैं: मूल्य कमी भुगतान (PDP). इसमें सरकार को किसी भी फसल को ख़रीदने या स्टॉक करने की ज़रूरत नहीं है. बस अगर बाज़ार मूल्य और MSP कम है, तो सरकार सुनिश्चित कर दे कि किसानों को इन दोनों के बीच का अंतर मिल जाए.

मगर राष्ट्र के स्तर पर इसे लागू करने के लिए बहुत सोचा-समझा, क़ायदे के काम के साथ बनाया एक प्लैन चाहिए.