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फरीदाबादः हजारों लोगों वाले खोरी गांव को ढहाने के लिए पुलिस-प्रशासन क्यों निकल पड़ा है?

पुलिस और जनता आमने-सामने, नेता और सामाजिक संगठन भी मैदान में उतरे.

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अरावली की पहाड़ियों पर फरीदाबाद में बसे खोरी गांव को 6 हफ्ते में खाली करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गांव वालों और पुलिस के बीच संघर्ष शुरू हो गया है. कई लोग गांव छोड़ गए हैं लेकिन हजारों लोग अब भी डटे हुए हैं. (फोटो-पीटीआई)
फरीदाबाद के खोरी गांव के लाखों लोग सड़कों पर आ गए हैं. मामला फॉरेस्ट एरिया में गांव बसाने का है. सुप्रीम कोर्ट ने इस गांव को 6 हफ्ते के भीतर तोड़ने का आदेश दिया है. इस गांव में तकरीबन 6500 घर हैं. 40 हजार से ज्यादा लोग इनमें रहते हैं. वो आंदोलन कर रहे हैं. उनका साथ देने राजनीतिक दल और सामाजिक कार्यकर्ता भी पहुंच चुके हैं. किसान संगठन भी मैदान में उतर चुका है. आखिर क्या है पूरा मामला, आइए जानते हैं. पुलिस और जनता आमने-सामने हरियाणा के खोरी गांव में 30 जून को पुलिस और इलाके के लोगों के बीच जमकर पथराव और लाठीचार्ज हुआ. ये लोग एक महापंचायत में जा रहे थे. सुप्रीम कोर्ट के गांव खाली कराने के आदेश के मद्देनजर ये महापंचायत बुलाई गई थी. इसे लेकर पुलिस पूरी तरह सतर्क थी. उसने सूरजकुंड रोड पर लोगों के आने-जाने पर रोक लगा दी. इसी बीच महापंचायत स्थल पर लोगों ने जुटना शुरू कर दिया. पुलिस ने जब उन्हें रोका तो भीड़ ने पुलिस पर पथराव कर दिया. उसके बाद पुलिस ने लाठियां बरसाईं और लोगों को हटाया. क्यों खाली कराया जा रहा है खोरी गांव? दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में शुमार हैं अरावली की पहाड़ियां. दिल्ली-एनसीआर के आसपास हरियाली की ये अकेली चादर है. इस फॉरेस्ट एरिया में न सिर्फ घने जंगल हैं बल्कि जंगली जानवर भी रहते हैं. फॉरेस्ट लैंड होने की वजह से इलाका काफी संवेदनशील है. इसके बावजूद यहां अवैध खनन का काम होता रहा. यहां की खदानों में काम करने वाले मजदूर हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और बिहार से आते हैं. वह इस इलाके में ही अपना गांव बसा लेते हैं. गांव बसता है तो दूसरी जगहों से ही भी लोग फॉरेस्ट लैंड में आ बसते हैं. कुछ इसी तरह बस गया फरीदाबाद का खोरी गांव. कोर्ट के आदेश के बाद साल 2009 में इस इलाके में खनन तो बंद हो गया, लेकिन गांव के लोग यहीं रह गए. लोगों ने यहां पक्के मकान बना लिए. जब फरीदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने अवैध निर्माणों पर कार्रवाई शुरू की तो मामला कोर्ट पहुंच गया.
इसके बाद कुछ ऐसे बढ़ा खेरी गांव का मामला-
# साल 2010 - खोरी गांव वेलफेयर एसोसिएशन ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में अवैध मकानों को न तोड़े जाने की याचिका दायर की. # साल 2012 - इस संबंध में एक और याचिका दायर कर पुनर्वास की मांग रखी गई. # साल 2016 - हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को निर्देश दिया कि सरकार खोरी गांव के लोगों के पुनर्वास के बारे में फैसला करे. हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण पुनर्वास नीति ने साल 2003 को कटऑफ साल माना. मतलब ये कि 2003 से पहले जो लोग इस इलाके में बसे गए थे, उन्हें आवास का अधिकार मिलेगा. # साल 2017 - फरीदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. कॉरपोरेशन ने खोरी गांव में निर्माण को अवैध बताया. सुप्रीम कोर्ट ने 19 फरवरी 2020 को इस मामले पर फैसला सुनाया, और अरावली वन क्षेत्र में हुए सभी अवैध निर्माण को हटाने का आदेश दे दिया. # साल 2020 - सितम्बर के महीने में यहां लगभग 1700 घर ढहा दिए गए. # 7 जून 2021 - घरों को न तोड़े जाने को लेकर दायर की गई जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. 6 हफ्ते के अंदर फॉरेस्ट लैंड खाली करवाने का आदेश दे दिया. कहा कि जमीन पर कब्जा करने वाले कानून के शासन की आड़ नहीं ले सकते और न ही निष्पक्षता की बात कर सकते हैं. कोर्ट ने राज्य और फरीदाबाद नगर निगम को निर्देश दिया कि गांव के पास अरावली वन क्षेत्र में सभी अतिक्रमण को तुरंत हटाएं.
Kheri Village Faridabad Haryana
सुप्रीम कोर्ट के खोरी गांव को खाली करवाने के आदेश के बाद कई लोग गांव छोड़कर चले गए लेकिन अब भी हजारों लोग अपने घरों में डटे हैं. (फोटो-पीटीआई)
किसान नेता भी आंदोलन में कूदे कोर्ट के आदेश के बाद से ही गांव में माहौल गरमाने लगा था. जिला प्रशासन ने गांव की बिजली-पानी बंद कर दी. आगे का फैसला लेने के लिए महापंचायत बुलाई गई. इस महापंचायत में साथ देने किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी भी फरीदाबाद पहुंचे. लेकिन पुलिस ने उन्हें खोरी गांव में घुसने से रोक दिया. उसके बाद गुरनाम सिंह चढूनी ने बयान दिया. लोगों पर पुलिस के लाठीचार्ज को बेहद गलत बताया. चढूनी ने कहा कि धरती पर पैदा हुए हर जीव का धरती पर रहने का हक है. सरकार को इन लोगों को दोबारा बसाना चाहिए.
इधर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने भी खोरी गांव के लोगों के पुनर्वास को लेकर घोषणा कर दी. लेकिन एक शर्त के साथ. जिन लोगों के पास हरियाणा सरकार के दस्तावेज होंगे, सिर्फ उनका पुनर्वास किया जाएगा. पुनर्वास की जगह बताई गई फरीदाबाद का डबुआ क्षेत्र. इस घोषणा को लेकर किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने मोर्चा खोल दिया. उन्होंने सीएम मनोहर लाल खट्टर को पाकिस्तानी कह दिया. उन्होंने आजतक से कहा कि
"सरकार फूट डालने का काम कर रही है. 20 सालों से रह रहे गांव के लोग चाहें यूपी के हों या बिहार के या फिर दिल्ली के, सभी के पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए. जब पाकिस्तानी होकर मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री बन सकते हैं तो क्या इन लोगों को हक नहीं है? मनोहर लाल का जन्म पाकिस्तान का है और उनकी बोली भी हरियाणवी नहीं है. लेकिन इसके बावजूद हरियाणा ने उन्हें स्वीकारा और मुख्यमंत्री बनाया है. उन्हें भी हरियाणा या किसी दूसरे प्रदेश के लोगों के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए, सभी के पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए."
खोरी गांव की मुश्किल इसलिए भी बढ़ गई है कि कोरोना महामारी के चलते बहुत से लोगों के पास फिलहाल कोई काम नहीं है. घर ढहाए जाने शुरू हो चुके हैं. पुनर्वास का ठोस प्लान भी नजर नहीं आ रहा. एक बड़ा सवाल यह भी है जब बरसों तक गांव बस रहा था, तब प्रशासन और अधिकारियों की नींद क्यों नहीं टूटी?