चुनाव आयोग, आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड को लिंक करवा रहा है (Election Commission Aadhaar Linking Drive). ये पूरी तरह आपकी मर्जी पर है कि आप आधार कार्ड से अपना वोटर आईडी लिंक करें या ना करें. कम से कम अभी तक. ये अभियान 1 अगस्त 2022 को शुरू हुआ था. भारत सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय ने इसी साल मार्च में एक नोटिफिकेशन के जरिए ऐसा करने की अंतिम तारीख बढ़ाकर 31 मार्च 2024 कर दी है. इससे पहले 17 जून 2022 को विधि और न्याय मंत्रालय ने इसी काम के लिए 1 अप्रैल 2023 को अंतिम तारीख बनाया था. जिसे अब बढ़ा दिया गया है.
आधार कार्ड से वोटर आईडी लिंक नहीं है, तो वोट नहीं डाल पाएंगे?
चुनाव आयोग ने आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड को स्वेच्छा से लिंक कराने की बात कही है. लेकिन इसे लेकर कुछ गंभीर सवाल भी उठाए गए हैं.
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साल 2021 के चुनाव कानून (संशोधन) कानून के तहत चुनाव आयोग को ये अधिकार प्राप्त होता है कि वो आधार कार्ड का डेटा कलेक्ट कर सकते हैं. कानून और विधि मंत्रालय के तब के मुखिया किरेन रिजिजू ने 06 अप्रैल 2023 को संसद पटल पर एक सवाल के लिखित उत्तर में कहा था कि जिनका आधार कार्ड, वोटर आईडी से लिंक नहीं है, उनका नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जा सकता.
भारत में कुल वोटर हैं, 94.5 करोड़. ‘दी हिन्दू’ अखबार के हवाले से प्राप्त आरटीआई की जानकारी बताती है कि इनमें से साठ प्रतिशत से अधिक वोटर्स ने आधार कार्ड को वोटर आईडी से लिंक करवा लिया है. जिसमें त्रिपुरा में 92.33 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक वोटर्स ने ऐसा किया है. इसके बाद लक्ष्यद्वीप और मध्य प्रदेश का नंबर आता है. इस तरह आधार कार्ड से अपनी वोटर आईडी को लिंक कराने वाले मतदाताओं की संख्या होती है 56, 90, 83, 090. शब्दों में - छप्पन करोड़ नब्बे लाख तिरासी हजार नब्बे.
लेकिन ये एक्सरसाइज एक विवाद भी लेकर आई है. सवाल उठ रहे हैं कि चुनाव आयोग के ऐसा करने से चुनावों की निष्पक्षता तो प्रभावित नहीं होगी? चुनाव आयोग का लॉजिक ये है कि इससे चुनावों में होने वाली धांधली रुकेगी क्योंकि आधार कार्ड से लिंकिंग के चलते डुप्लीकेट वोटर आईडी की समस्या से निजात मिलेगी. ठीक वैसे, जैसे गैस कनेक्शन के मामले में मिली थी. इसके अलावा तर्क है कि एक ही व्यक्ति के नाम पर अलग-अलग जगहों पर बने कई वोटर आईडी से कई तरह के क्राइम होने की सम्भावना रहती है, जो इस प्रक्रिया के बाद खत्म होंगे.
होता क्या है कि एक व्यक्ति रोजगार, शिक्षा या किसी भी अन्य कारण से एक शहर से दूसरे शहर माइग्रेट करता है. तो वो वहां पर नया वोटर आईडी तो बनवा लेता है, लेकिन पुराना आईडी अमूमन कैंसिल नहीं करवाता. इस वजह से डुप्लीकेसी की काफी समस्या रहती है.
इस मुद्दे पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का कहना है कि उन्होंने कुछ महीने पहले यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया UIDAI के पूर्व चेयरमैन, नंदन नीलेकणि को फोन किया था. जब कुरैशी ने पूछा कि क्या इससे चुनावों की निष्पक्षता प्रभावित होने का खतरा पैदा नहीं होता? तो नीलेकणि की बात ने पूरी तरह संतुष्ट नहीं किया. कुरैशी कहते हैं,
“उन्होंने मुझे एक ऐसा जवाब दिया, जिससे मैं कुछ परेशान हो उठा. क्योंकि उन्होंने साफ़-साफ़ ये नहीं कहा कि ‘कोई बात नहीं, परेशान मत होइए, मैं गारंटी लेता हूं.’
जब मैं इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की ईमानदारी की गारंटी ले रहा हूं, तो मैं भी इसी तरह के कॉन्फिडेंट जवाब की उम्मीद रखता हूं.”
वहीं जानकारों का इस विषय पर कहना है कि मतदाताओं को इस बात का भरोसा दिलाना होगा कि उनका डाटा सुरक्षित रहेगा और लीक नहीं होगा. साथ ही विपक्ष का ये सवाल भी है कि क्या इस प्रक्रिया को अनिवार्य किया जा सकता है? साथ ही आधार कार्ड से जब पैन कार्ड जुड़ा हुआ होगा और बैंक अकाउंट भी, तो फाइनेंशियल सिक्योरिटी पर खतरा मंडरा सकता है. हालांकि चुनाव आयोग की तरफ से इसका स्पष्ट जवाब है कि वे ‘आधार वैधता अधिनियम 2016' के नियमों का पूरी तरह पालन कर रहे हैं. और ये डाटा, लाइसेंस प्राप्त ‘आधार वॉल्ट’ में सुरक्षित रहेगा.
पहले भी हो चुकी है इस तरह की कोशिशइससे पहले चुनाव आयोग ने साल 2015 में भी वोटर ID को आधार से लिंक करने का कैंपेन चलाया था. इस कैंपेन के तहत 30 करोड़ से अधिक वोटर्स के ID को आधार से लिंक किया गया था, लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के करीब 55 लाख लोगों के नाम वोटर डेटाबेस से हट गए थे. यानी वे मतदाता नहीं रहे.
वोटर लिस्ट से हटे नामों को संविधान के विरुद्ध बताते हुए ये मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया और 26 सितंबर 2018 को आधार को लेकर दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने वोटर ID और आधार को लिंक करने से रोक लगा दी. इसके बाद आयोग की ये प्रक्रिया रुक गई. चुनाव कानून (संशोधन) 2021 के आने के बाद ये प्रक्रिया फिर से शुरू हुई है.
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