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कृषि विज्ञानी एम एस स्वामीनाथन, पूर्व-प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और चौधरी चरण सिंह को भी मिलेगा भारत रत्न

इन तीनों से पहले मोदी सरकार ने बिहार के कर्पूरी ठाकुर और भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का एलान किया था.

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नरसिम्हा राव, चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन. (फ़ोटो - आजतक)

पूर्व-प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh), पूर्व-प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव (PV Narsimha Rao) और कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) को मरणोपरांत भारत रत्न दिया जाएगा. इन तीनों से पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने बिहार के पूर्व-मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने की एलान किया था.

चौधरी चरण सिंह, भारत ने देश पांचवें प्रधानमंत्री के तौर पर 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक सत्ता संभाली. जनता पार्टी के सदस्य थे और उन्हें भारत के बड़ किसान नेताओं में गिना जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके लिए लिखा,

ये सम्मान देश के लिए उनके अतुलनीय योगदान को समर्पित है. उन्होंने किसानों के अधिकार और उनके कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हों या देश के गृहमंत्री और यहां तक कि एक विधायक के रूप में भी, उन्होंने हमेशा राष्ट्र निर्माण को गति प्रदान की.

जवाब में राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी ने लिखा - 'दिल जीत लिया!'

पिछले कई सालों से रालोद की तरफ़ से ये मांग उठाई जा रही थी, कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिया जाए. इस घोषणा के बाद भाजपा और RLD के बीच संभावित गठबंधन की ख़बरें और तेज़ हो गई हैं.

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पामुलापति वेंकट नरसिम्हा राव भारत के 10वें प्रधान मंत्री थे, जिन्होंने देश को आर्थिक सुधारों के युग में प्रवेश कराया. 21 जून 1991 से 16 मई 1996 तक उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल में ही न्यू इंडस्ट्रियल पॉलिसी (NIP) लागू हुई थी. उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति के बाद भारत का बाज़ार दुनिया भर के लिए खोला गया था.

पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने का एलान करते हुए प्रधानमंत्री ने लिखा,  

एक प्रतिष्ठित विद्वान और राजनेता के रूप में नरसिम्हा राव गारू ने विभिन्न क्षमताओं में भारत की सेवा की. उन्हें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और कई वर्षों तक संसद और विधानसभा सदस्य के रूप में किए गए कार्यों के लिए समान रूप से याद किया जाता है. उनका दूरदर्शी नेतृत्व भारत को आर्थिक रूप से उन्नत बनाने, देश की समृद्धि और विकास के लिए एक ठोस नींव रखने में सहायक था. 

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हरित क्रांति के जनक के तौर पर एम एस स्वामीनाथन (1925-2023) एक प्रसिद्ध कृषि-विज्ञानी और पौधों के आनुवंशिक विज्ञानी (plant geneticist) थे. 60 के दशक में उन्होंने धान की ज़्यादा उपजाऊ क़िस्मों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाई थी. 'हरित क्रांति' की सफलता के लिए उन्होंने दो केंद्रीय कृषि मंत्रियों - सी. सुब्रमण्यम और जगजीवन राम - के साथ मिलकर काम किया था. देश को अकाल से बचाने के लिए स्वामीनाथन और उनके अमेरिकी वैज्ञानिक साथी नॉर्मन बोरलॉग को ही श्रेय दिया जाता है.

प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि उनका काम छात्रों को सीखने और अनुसंधान को प्रोत्साहित करता है. 

बीते साल, 28 सितंबर को ही स्वामीनाथन की देह बीत गई. 98 की उम्र में उन्होंने अपने चेन्नई स्थित घर पर ही उन्होंने अंतिम क्षण गुज़ारे.