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'जजमेंट में 212 पैरा कॉपी पेस्ट किए... ' पूर्व CJI दीपक मिश्रा ने जो किया, जानकर विश्वास नहीं होगा

Former CJI Dipak Misra: सिंगापुर के उच्चतम न्यायालय ने पूर्व CJI दीपक मिश्रा के सुनाए फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस फैसले के बड़े हिस्से को दो अन्य फैसलों से सीधे-सीधे कॉपी-पेस्ट किया गया था. क्या है ये पूरा मामला?

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भारत के पूर्व CJI दीपक मिश्रा. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

सिंगापुर की सर्वोच्च अदालत ‘कोर्ट ऑफ अपील’ ने भारत के पूर्व CJI दीपक मिश्रा (Ex CJI Dipak Misra) पर गंभीर आरोप लगाए हैं. ये मामला अंतरराष्ट्रीय रेलवे ठेके से जुड़ा है. कोर्ट ने इस मामले में आर्बिट्रेशन (मध्यस्थता) के एक फैसले को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस फैसले के बड़े हिस्से को दो अन्य फैसलों से सीधे-सीधे कॉपी-पेस्ट किया गया था. 

इन तीनों मामलों में ‘प्रिसाइडिंग आर्बिट्रेटर’ यानी कि मध्यस्था के अध्यक्ष पूर्व CJI दीपक मिश्रा ही थे. सिंगापुर की अदालत ने 40 पन्नों के अपने फैसले में लिखा कि 451 पैरा में से कम से कम 212 पैरा पूरी तरह से कॉपी-पेस्ट किए थे. जिन दो मामलों से पैरा कॉपी-पेस्ट किए गए थे, उनका सीधा कनेक्शन तीसरे केस से था. ‘कोर्ट ऑफ अपील’ के चीफ जस्टिस सुंदरेश मेनन ने ये फैसला 9 अप्रैल को सुनाया.

क्या है पूरा मामला?

विवाद एक 'स्पेशल पर्पज व्हीकल' (SPV) से जुड़ा था. किसी व्यावसायिक उद्देश्य या गतिविधि के लिए SPV बनाया जाता है. ताकि वित्तीय जोखिमों को अलग किया जा सके और पूंजी जुटाने में मदद मिले. जिस SPV को लेकर विवाद हुआ, उसे मालगाड़ियों के लिए अलग ट्रैक का नेटवर्क संभालने के लिए बनाया गया था. SPV और तीन कंपनियों के एक संघ (कंसोर्टियम) के बीच विवाद था. इन कंपनियों को 2014 में ‘वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर’ (WDFC) के मैनेजमेंट का ठेका मिला था. 

2017 में भारत सरकार ने न्यूनतम वेतन में वृद्धि की. इसी के बाद विवाद हुआ. सवाल उठा कि क्या अब कॉन्ट्रैक्ट के तहत काम कर रही कंपनियों के कंसोर्टियम को अतिरिक्त पैसे मिलने चाहिए. बातचीत से कोई समाधान नहीं निकला. मामले को इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (ICC) के नियमों के तहत, सिंगापुर में आर्बिट्रेशन में भेजा गया. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इस ट्राइब्यूनल (न्यायाधिकरण) की अध्यक्षता भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा कर रहे थे. उनके साथ दो और सदस्य भी थे- एक हाई कोर्ट के पूर्व जज और एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश. दिसंबर 2021 में आर्बिट्रेशन की शुरुआत हुई. नवंबर 2023 में ट्राइब्यूनल ने कंसोर्टियम के पक्ष में फैसला सुनाया. यानी कि अतिरिक्त भुगतान की स्वीकृति दी गई.

"आर्बिट्रेटर के मन में पूर्वाग्रह था…"

सिंगापुर के हाईकोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई. याचिका में कहा गया कि इस फैसले में जिन तर्कों का इस्तेमाल किया गया है, वो पहले के ऐसे ही मामलो में दिए गए फैसले से हूबहू लिए गए हैं. उन पुराने मामलों की अध्यक्षता भी दीपक मिश्रा कर रहे थे, लेकिन उनमें बाकी जज अलग थे. हाईकोर्ट ने माना कि एक जैसे तर्क और भाषा ये दिखाते हैं कि अध्यक्ष (आर्बिट्रेटर) के मन में पूर्वाग्रह था. उन्होंने इस मामले की अलग से निष्पक्ष समीक्षा नहीं की. इसलिए कोर्ट ने इस फैसले को खारिज कर दिया.

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इसके बाद ये मामला ‘कोर्ट ऑफ अपील’ में पहुंचा. सिंगापुर के उच्चतम न्यायालय ने ये स्पष्ट किया कि कोई आर्बिट्रेटर पहले के किसी फैसले से तर्क ले सकता है. लेकिन इस केस में पहले और बाद के मामलों के फैक्ट्स अलग-अलग थे. इसलिए पुराने फैसलों को कॉपी करके इस नए मामले का हल निकालना सही तरीका नहीं था.

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