सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर पर रोक लगा दी है. गुरुवार, 15 फरवरी को सुनाए इस फैसले (Supreme Court verdict on Electoral Bond) में सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को निर्देश दिए हैं कि 2019 से ले कर अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी तीन हफ़्ते के अंदर चुनाव आयोग को सौंपे. और, चुनाव आयोग को ये सारी जानकारी अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर पब्लिश करनी होगी.
इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, SBI को देनी होगी पिछले 5 साल की जानकारी...
सुनवाई के दौरान Supreme Court ने कहा था कि आम लोगों को इस बात की जानकारी मिलनी चाहिए कि किसी राजनीतिक पार्टी को electoral bond के जरिए कौन और कितना चंदा देता है.
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बॉन्ड जारी करने वाली बैंक तुरंत बॉन्ड जारी करना बंद कर दें. CJI डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा कि नागरिकों को सरकार को जिम्मेदार ठहराने का अधिकार है. सूचना के अधिकार का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है. कोर्ट ने कहा,
“गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन हैं.”
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CJI ने कहा कि वित्तीय सहायता से राजनीतिक दलों के साथ (Quid Pro Quo) लेनदेन की स्थिति बन सकती है.
इस दौरान कोर्ट ने कंपनी अधिनियम में संशोधन (कॉर्पोरेट राजनीतिक फंडिंग की अनुमति) को असंवैधानिक बताया है.
फैसला सुनाने से पहले CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि फैसला एक है, लेकिन इसपर तरह के दो राय हैं. उन्होंने कहा,
"हम सर्वसम्मती से इस फैसले पर पहुंचे हैं. दो राय हैं, एक मेरी और दूसरी न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की. दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं. लेकिन तर्क में थोड़ा अंतर है.”
सुप्रीम कोर्ट की 5 न्यायधीशों की पीठ ने ये फैसला सुनाया है. इस पीठ में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना (Justice Sanjeev Khanna), जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे.
Electoral Bond क्या है?मोदी सरकार ने 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड लाने की घोषणा की थी. इसके तहत सरकार हर साल चार बार 10-10 दिनों के लिए बॉन्ड जारी करती थी. बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीने में जारी किए जाते थे. मूल्य होता था- एक हजार, दस हजार, दस लाख या एक करोड़ रुपये. राजनीतिक पार्टियों को 2 हजार रुपये से अधिक चंदा देने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति या कॉरपोरेट हाउस भारतीय स्टेट बैंक की तय शाखाओं से ये बॉन्ड खरीद सकते थे.
इलेक्टोरल बॉन्ड को RTI के दायरे से भी बाहर रखा गया था.
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