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इलेक्टोरल बॉन्ड पर CJI चंद्रचूड़ के 5 सख्त कमेंट, चुनाव आयोग से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि...

Electoral Bond से किस पार्टी को कितने पैसे मिले थे? इसपर फैसला सुनाते हुए Supreme Court ने कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं.

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CJI ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताया है. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court verdict on Electoral Bond) ने इस पर रोक लगा दी है. 15 फरवरी को अपना फैसला सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कई सख्त कमेंट किए. 5 प्वॉइंट्स में इलेक्टोरल बॉन्ड और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को समझेंगे. 

इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर सबसे बड़ी बहस इस बात पर थी कि इस बॉन्ड के जरिए किसी राजनीतिक दल को मिलने वाले चंदे की जानकारी आम लोगों को मिलनी चाहिए या नहीं. इससे पहले 2 नवंबर को कोर्ट ने इस पर सुनवाई की थी. कोर्ट ने सरकार के उस तर्क पर अपनी असहमति जताई थी. जिसमें कहा गया था कि वोटर्स को चंदा देने वाले की पहचान जानने का अधिकार नहीं है.

सूचना के अधिकार का उल्लंघन

कोर्ट ने 15 फरवरी को अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. इससे स्पष्ट है कि कोर्ट ने माना है कि वोटर्स को चंदा देने वालों की जानकारी होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि चंदा देने वालों की जानकारी सार्वजनिक नहीं करना नियमों के खिलाफ है. ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

पिछली सुनवाई में इस बात पर भी चर्चा हुई थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी हासिल करने का अधिकार ‘तर्कसंगत प्रतिबंधों’ के तहत आता है. मतलब, जरूरत पड़ने पर सूचना देने से मना किया जा सकता है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि पार्टी को यह पता होता है कि उसे चंदा कौन दे रहा है. उन्होंने कहा था कि चंदा देने वाले को उत्पीड़न से बचाने के लिए इस गोपनीयता को बनाए रखा जाता है.

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Election Commission और SBI को मिला निर्देश 

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग से भी नाराजगी जताई थी. कहा था कि चुनाव आयोग इस बात की जानकारी दे कि 30 सितंबर, 2023 तक राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड से कितना पैसा मिला है. इस बात की जानकारी नहीं रखने पर कोर्ट ने चुनाव आयोग से नाराजगी जताई थी.

उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला सुनाते हुए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और चुनाव आयोग को भी निर्देश दिया है. SBI से कहा गया है कि 2019 से अब तक की सारी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी तीन हफ्ते के अंदर चुनाव आयोग को दी जाए. SBI ही इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करती थी. अब कोर्ट ने बैंक को बॉन्ड नहीं जारी करने का निर्देश दिया है. क्योंकि कोर्ट का मानना है कि ये चंदे पूरी तरह से लेनदेन के उद्देश्य से दिए जा सकते हैं. चुनाव आयोग इन जानकारियों को अपने आधिकारिक वेबसाइट पर पब्लिश करेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जितने भी चुनावी बांड भुनाए नहीं गए हैं, उन्हें बैंकों को वापस कर दिया जाए.

काले धन को रोकने के कई और विकल्प

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि काले धन को रोकने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड के अलावा दूसरे विकल्प हैं. इस तरह की खरीद से काले धन को बढ़ावा ही मिलेगा. इससे कोई रोक नहीं लगेगी और इससे पारदर्शिता का भी हनन होता है. CJI डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा कि कोर्ट सिर्फ इस आधार पर आंखें नहीं मूंद सकता कि इसके दुरुपयोग की संभावना है. कोर्ट की राय है कि काले धन पर रोक लगाना चुनावी बांड का आधार नहीं है.

CJI ने कहा कि ये उचित नहीं है कि काले धन पर रोक लगाने के लिए सूचना के अधिकार का उल्लंघन किया जाए.

अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन

उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 19(1)(A) की भी बात की है. कहा है कि गुमनाम चुनावी बांड्स अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन हैं. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(A) सभी नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. यह स्वतंत्रता मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक, प्रसारण, प्रेस या अन्य किसी भी रूप में हो सकती है. इसमें नागरिकों को सूचनाओं तक पहुंचने का भी अधिकार दिया गया है.

कंपनी अधिनियम में संशोधन पर नाराजगी

CJI ने कहा कि राजनीतिक प्रक्रिया पर किसी व्यक्ति के योगदान की तुलना में किसी कंपनी के योगदान का अधिक गंभीर प्रभाव पड़ता है. कंपनियों द्वारा योगदान पूरी तरह से व्यावसायिक लेनदेन है. धारा 182 कंपनी अधिनियम में संशोधन स्पष्ट रूप से कंपनियों और व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार करता है.

Electoral Bond से किस पार्टी को कितने पैसे मिले?

इंडियन एक्सप्रेस की दामिनी नाथ की रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2022 के बीच भारतीय स्टेट बैंक ने 9 हजार 208 करोड़ 23 लाख रुपये का चुनावी बॉन्ड बेचा है. इसमें सबसे अधिक पैसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मिले हैं. एक्सप्रेस को ये जानकारी 2023 में SBI से RTI के माध्यम से प्राप्त हुई थी.

इस रिपोर्ट के अनुसार, 2017 से 2022 तक बिके बॉन्ड्स के पैसों में 57 प्रतिशत भाजपा को और 10 प्रतिशत कांग्रेस को मिले थे. भाजपा को 5271.97 करोड़ और कांग्रेस को 952.29 करोड़ रुपए मिले थे. इलेक्टोरल बॉन्ड से ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस (TMC) को 767.88 करोड़, बीजू जनता दल (BJD) को 622 करोड़, DMK को 431.50 करोड़, NCP को 51.15 करोड़, आम आदमी पार्टी को लगभग 48.83 करोड़ और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड को 24.4 करोड़ रुपए मिले थे.

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