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उद्धव को मिली 'मशाल' तो शिंदे को मिला 'तलवार-ढाल', एकनाथ शिंदे ने ये कहा!

चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे कैंप की पार्टी का नाम 'बालासाहेबांची शिवसेना' दिया है.

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एकनाथ शिंदे और उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह.

चुनाव आयोग ने शिवसेना के एकनाथ शिंदे कैंप को 'दो तलवार और एक ढाल' निशान दिया है. इसे पहले आयोग ने उनकी पार्टी का नाम 'बालासाहेबांची शिवसेना' घोषित किया था. वहीं आयोग ने उद्धव ठाकरे कैंप की पार्टी का नाम ‘शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)’ रखा है और उन्हें 'मशाल' निशान दिया गया है.

निर्वाचन आयोग ने कुछ समय के लिए शिवसेना पार्टी के नाम और इसके निशान 'धनुष और बाण' के इस्तेमाल पर रोक लगाई है. आयोग इस विषय पर विचार कर रहा है कि एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे कैंप में से कौन 'असली शिवसेना' है. इसलिए दोनों कैंप को जो नाम और निशान दिए गए हैं, वो कुछ समय के लिए हैं.

इससे पहले उद्धव ठाकरे ग्रुप ने अपनी पार्टी के निशान के लिए तीन विकल्प दिए थे- त्रिशूल, उगता हुआ सूरज और मशाल. वहीं पार्टी के नाम के लिए उन्होंने शिवसेना (बालासाहेब ठाकरे), शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और शिवसेना (बालासाहेब प्रबोधन्कर ठाकरे) का विकल्प दिया था.

वहीं शिंदे ग्रुप ने चुनाव चिह्न के रूप में त्रिशूल, उगता हुआ सूरज और गदा का विकल्प दिया था. पार्टी के नाम के लिए शिवसेना (बालासाहेब ठाकरे), बालासाहेबांची शिवसेना और शिवसेना बालासाहेबांची का ऑप्शन दिया था.

चुनाव निशान मिलने के बाद एकनाथ शिंदे ने कहा, 

'यह (दो तलवार और ढाल निशान) छत्रपति शिवाजी महराज की पहचान है और लोग इसके बारे में जानते हैं. बालासाहेब के शिवसैनिक आज खुश हैं. हम इस निशान पर चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे.'

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आयोग से मांग की है कि चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत उनके धड़े को 'आधिकारिक शिवसेना' करार दिया जाए. इस याचिका उद्धव ठाकरे कैंप ने विरोध किया था और मांग की थी और इस संबंध में चुनाव आयोग की कार्यवाही पर रोक लगाई जाए. हालांकि 27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ठाकरे की याचिका खारिज कर दी और कहा कि चुनाव आयोग इस संबंध में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है.

3 नवंबर को अंधेरी ईस्ट विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है. इसी के संबंध ने आयोग ने ये आदेश दिया है. निर्वाचन आयोग ने कहा कि दोनों प्रतिद्वंद्वी समूहों को समान स्थिति में रखने, उनके अधिकारों और हितों की रक्षा करने और पहले के चलन को देखते हुए ये निर्णय लिया गया है.