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"जज बनने के लिए उपयुक्त नहीं शेखर यादव", जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूर्व CJI दीपक मिश्रा को लिखी थी चिट्ठी

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अगस्त, 2018 में तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा को पत्र लिखा था. इसके बाद 25 सितंबर, 2018 को CJI दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकुर की तीन-सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 16 वकीलों के जज के रूप में नियुक्ति पर फैसले को स्थगित कर दिया. इस सूची में जस्टिस शेखर यादव भी शामिल थे.

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पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने शेखर यादव को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज नियुक्त किए जाने को लेकर जताई थी असहमति. (तस्वीर:सोशल मीडिया)

देश तो बहुसंख्यक से चलेगा कहने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव को लेकर बड़ा दावा सामने आया है. ‘The Leaflet’ ने सुप्रीम कोर्ट के दस्तावेजों के हवाले से बताया है कि भारत के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ जस्टिस शेखर कुमार यादव (Justice Shekhar Yadav) को इलाहाबाद हाई कोर्ट का जज बनाए जाने के पक्ष में नहीं थे.

‘द लीफलेट’ कानूनी मामलों से जुड़ी रिपोर्ट्स प्रकाशित करती है. इसमें छपी वरिष्ठ पत्रकार मनीष छिब्बर की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस चंद्रचूड़ ने तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा को लिखे अपने पत्र में शेखर यादव के RSS से जुड़ाव का भी जिक्र किया था. उन्होंने साफ शब्दों में लिखा था कि शेखर कुमार यादव इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज बनने के लिए ‘उपयुक्त’ नहीं है.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने अगस्त, 2018 में ये पत्र लिखा था. इसके बाद 25 सितंबर, 2018 को तत्कालीन  CJI दीपक मिश्रा, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकुर की तीन-सदस्यीय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 16 वकीलों के जज के रूप में नियुक्ति पर फैसले को स्थगित कर दिया. इन 16 वकीलों की सूची में जस्टिस शेखर यादव भी शामिल थे.

अक्टूबर 2018 में तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा रिटायर हो गए. उनके बाद ये पद संभाला जस्टिस रंजन गोगोई ने. उनके कार्यकाल के दौरान ही जस्टिस चंद्रचूड़ की सलाह को ‘नज़रअंदाज’ किया गया था. शेखर कुमार यादव इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज बने जो अपने हालिया बयान के बाद लगातार सुर्खियों में बने हुए हैं.

चंद्रचूड़ ने पत्र में क्या लिखा था?

डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट का जज बनने से पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के भी चीफ जस्टिस रह चुके हैं. The Leaflet ने बताया है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट कॉलेजियम के तत्कालीन प्रमुख जस्टिस दिलिप बाबासाहेब भोसले ने 14 फरवरी, 2018 को हाई कोर्ट के वकीलों की जजों के रूप में पदोन्नति के लिए नाम सुझाए थे. उस वक्त डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट में जज थे. ऐसे में तत्कालीन CJI दीपक मिश्रा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकीलों की पदोन्नति के लिए कलोजियम के सुझाए नामों को लेकर चंद्रचूड़ से भी सलाह मांगी थी.

रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस चंद्रचूड़ ने 13 अगस्त, 2018 को CJI दीपक मिश्रा को लिखे अपने पत्र में शेखर कुमार यादव को लेकर चेताया था. चंद्रचूड़ ने लिखा था,

“शेखर कुमार यादव एक सहायक सरकारी वकील हैं. उनका वर्क एक्सपीरियंस कम है और वे एक औसत वकील हैं. वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सक्रिय सदस्य हैं. वे बीजेपी के एक राज्यसभा सांसद के करीबी भी हैं. इसके अलावा उनकी बीजेपी मीडिया सेल के सदस्य डॉ. एल एस ओझा के साथ भी नजदीकियां हैं.”

उन्होंने आगे लिखा, “ऐसा मालूम पड़ा है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक मेहता ने राजनीतिक संबधों के कारण उनकी सिफारिश की है. वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त होने के लिए उपयुक्त नहीं हैं.”

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लेकिन चंद्रचूड़ के सुझावों को अनदेखा किया गया

रिपोर्ट के मुताबिक, कॉलेजियम ने जिन 33 नामों को सुझाया था उनमें से चंद्रचूड़ ने केवल छह वकीलों की उम्मीदवारी का समर्थन किया था. उन्होंने अपने पत्र में बताया था कि 33 में से 22 वकील इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज बनने के लिए उपयुक्त नहीं हैं. जस्टिस चंद्रचूड़ ने लिखा कि तीन नामों के बारे में थोड़ी जांच पड़ताल की जरूरत है, जबकि दो लोगों के नामों को तो कैंसिल कर देना चाहिए.  

लेकिन सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की फरवरी, 2019 की एक बैठक में चंद्रचूड़ की टिप्पणी को अनदेखा करते हुए जस्टिस शेखर यादव के नाम की सिफारिश को आगे बढ़ाने का फैसला किया गया. इस कॉलेजियम में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई, जस्टिस एके सीकरी और एसए बोबडे शामिल थे. कॉलेजियम की सिफारिशों को सरकार ने हरी झंडी देते हुए शेखर यादव की नियुक्ति को मंजूरी दे दी थी.

जस्टिस शेखर यादव 12 दिसंबर, 2019 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के एडिशनल जज नियुक्त किए गए. इसके बाद 26 मार्च, 2021 को उन्हें परमानेंट जज बनाया गया. शेखर कुमार यादव 15 अप्रैल, 2026 को रिटायर होने वाले हैं.  

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव ने 8 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में कहा था कि ‘देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा’. उनके इस बयान का चौतरफा विरोध हुआ. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए उनको ‘हिदायत’ दी है. कहा कि ऐसे बयानों से बचा जा सकता था.

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