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नूह में हुई हिंसा के बाद राम मूर्ति और जुबैर की इस दोस्ती की लोग मिसाल क्यों दे रहे?

ये दोस्ती 13 साल पुरानी है. नूह में हुई हिंसा के बाद भी दोनों दोस्त रोजाना खरीदारी करने बाइक पर साथ जाते हैं.

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राम मूर्ति और जुबैर पिछले कई सालों से एक साथ नूह बाजार आते-जाते रहे हैं. (फोटो- इंडिया टुडे)

31 जुलाई के दिन हरियाणा का नूह खबरों में आया. खबर थी हिंदू-मुस्लिम दंगे की. दंगा, जो बाद में आसपास के इलाकों से लेकर गुरुग्राम तक फैल गया. साथ फैली नफरत और हिंसा की आग. दुकानें जलाई गईं. तोड़फोड़ हुई. गाड़ियां फूंकी गईं. 6 लोगों की मौत हुई. दशकों से नूह के इलाके में साथ रहने वाले हिंदू-मुस्लिम संप्रदाय के सौहार्द पर सवाल खड़े होने लगे. इन सवालों के बीच नूह से दोस्ती की एक मिसाल सामने आई है. एक हिंदू और एक मुस्लिम की दोस्ती.

ये दोस्ती 13 साल पुरानी है. नूह में हुई हिंसा के बाद इस दोस्ती की लोग तारीफ कर रहे हैं. पंडित राम मूर्ति शास्त्री और जुबैर नाम के शख्स की दोस्ती एक दशक से भी ज्यादा पुरानी है. इंडिया टुडे के अनमोल नाथ बाली की रिपोर्ट के मुताबिक नूह में हुई हिंसा के बाद भी दोनों रोजाना बाइक पर खरीदारी करने जाते हैं.

दोनों दोस्त नूह में हुई हिंसा पर क्या बोले?

जुबैर एक किसान हैं. वो कहते हैं,

“हिंसा से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. ये सब राजनीति का हिस्सा है."

वहीं, पंडित राम मूर्ति शास्त्री गांव के एक मंदिर में पुजारी हैं. शास्त्री और जुबैर पिछले कई सालों से एक साथ नूह बाजार आते-जाते रहे हैं. जुबैर के साथ दोस्ती पर शास्त्री कहते हैं,

“मेरे बहुत सारे मुस्लिम दोस्त हैं. हिंसा पूरी तरह से राजनीतिक है. जुबैर और मैं आमतौर पर गांव के मंदिर जाते रहते हैं.”

शास्त्री आगे कहते है कि किसी भी तरह की सांप्रदायिक हिंसा उनकी दोस्ती को खत्म नहीं कर सकती. दोनों ने ये भी बताया कि नूह में उन्होंने पहले कभी ऐसी हिंसा नहीं देखी थी.

मंदिर की रखवाली कर रहे मुस्लिम

हरियाणा का घारेसा गांव. यहां विभाजन के दौरान महात्मा गांधी ने मेव समुदाय के लोगों को पाकिस्तान जाने के बजाए भारत में रहने की बात कही थी. इसी गांव में अब, नूह हिंसा के बाद मुस्लिम समुदाय स्थानीय मंदिर की रखवाली कर रहा है. मंदिर के पास घर होने के कारण शुकत अली पूरे दिन मंदिर के आसपास की गतिविधि पर नज़र रखते हैं. अली कहते हैं,

“हम नहीं चाहते कि कोई बाहरी व्यक्ति हमारे समुदायों के बीच शांति भंग करे. हर रात हिंदू समुदाय के दो व्यक्ति और 10 मुस्लिम व्यक्ति मंदिर परिसर की रखवाली करते हैं.”

गांव के रहने वाले रविंद्र कुमार कहते हैं कि मंदिर और मस्जिद के बीच कभी विभाजन नहीं हो सकता. जब हम एक साथ बड़े हुए हैं, तो किसी भी जगह जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता. रविंदर आगे कहते हैं कि ये 2024 के चुनाव से पहले वोट हासिल करने के लिए एक राजनीतिक साजिश से ज्यादा कुछ नहीं है.

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