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केजरीवाल सरकार के समय आई नई शराब नीति से दिल्ली को 2000 करोड़ का नुकसान, CAG रिपोर्ट में दावा

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने CAG की रिपोर्ट 25 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के पटल पर रखी. इसमें बताया गया है कि दिल्ली सरकार को आबकारी नीति सही तरीके से लागू नहीं करने के कारण 2002 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है.

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दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने CAG की रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी. (तस्वीर:PTI)

दिल्ली की नवनिर्वाचित सरकार ने अपने पहले विधानसभा सत्र में CAG (नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक) की रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल में शुरू की गई नई आबकारी नीति के कारण दिल्ली सरकार को 2000 करोड़ से अधिक के राजस्व नुकसान की बात सामने आई है. CAG ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि नई आबकारी नीति के समय पारदर्शिता नहीं रखी गई.

आबकारी नीति सही ढंग से लागू नहीं की गई

मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने CAG की रिपोर्ट 25 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के पटल पर रखी. रिपोर्ट में नई आबकारी नीति के संबंध में पिछले चार सालों (2017-18 से 2020-21) का लेखा जोखा सामने आया है. रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली सरकार को आबकारी नीति सही तरीके से लागू नहीं करने के कारण 2002 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है. इस दौरान लाइसेंस को सही ढंग से रिटेंडर नहीं करने की वजह से दिल्ली सरकार को करीब 890 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा. वहीं, नॉन कंफर्मिंग क्षेत्रों में शराब की दुकानें नहीं खोले जाने के कारण से 941.53 करोड़ का नुकसान हुआ. 

रिपोर्ट में बताया गया कि 28 दिसबंर, 2021 से 27 जनवरी, 2022 के बीच कोरोना के नाम पर लाइसेंस शुल्क माफ करने के फैसले से करीब 144 करोड़ रुपये का घाटा हुआ. इसके अलावा सिक्योरिटी डिपॉजिट सही से इकट्ठा नहीं करने के कारण 27 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.  

रिपोर्ट में नीतियों को लागू करने के दौरान आई कई अन्य दिक्कतों को भी सामने लाया गया है.

लाइसेंस देने में नियमों का उल्लंघन हुआ

CAG रिपोर्ट से मालूम पड़ा कि केजरीवाल की AAP सरकार दिल्ली आबकारी अधिनियम, 2010 के नियम 35 को सही ढंग से लागू नहीं करा पाई. यह नियम मल्टिपल लाइसेंस देने से रोक लगाता है. कुछ खुदरा व्यापारी आबकारी नीति खत्म होने के बाद भी लाइसेंस रखे हुए थे, जबकि कई व्यापारियों ने उसे जल्दी ही सरेंडर कर दिया. इस दौरान लाइसेंस धारकों को सरेंडर करने से पहले कोई एडवांस नोटिस देने का प्रावधान नहीं था. इन सब कारणों से सप्लाई पर बुरा असर पड़ा.

रिपोर्ट कहती है कि लाइसेंस जारी करने में भी कई बुनियादी चीज़ों का ध्यान नहीं दिया गया. मसलन, जिन व्यापारियों को लाइसेंस दिए गए उनके वित्तीय लेन-देन का ठीक से ऑडिट नहीं किया गया. वहीं, कइयों की आपराधिक पृष्ठभूमि की सही से जांच नहीं की गई.  

टेस्टिंग से संबंधित नियमों का उल्लंघन

CAG रिपोर्ट से सामने आया कि AAP सरकार ने कई दफा बिना क्वालिटी टेस्ट किए लाइसेंस दे दिए. कई टेस्ट भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के नियमों के तहत नहीं थे. कई टेस्ट अधिकृत लैब से नहीं कराए गए थे जिस कारण इनमें मिथाइल अल्कोहल जैसे नुकसानदायक तत्वों की जांच ढंग से नहीं हुई. रिपोर्ट से पता चला कि 51 फीसदी विदेशी शराब की टेस्ट रिपोर्ट या तो काफी पुरानी थीं.

कमीशन में इजाफा 

दिल्ली में पहले सरकार की 377 दुकानें थीं और 262 प्राइवेट वेंडर्स थे. उस समय एक व्यक्ति को केवल दो शराब की दुकानें रखने की अनुमति थी. लेकिन नई आबकारी नीति में ये सीमा बढ़ाकर 54 कर दी गई. नई नीति में नियमों के बदलाव से 32 रिटेल जोन बनाए गए जिससे 849 लिकर वेंड्स बना दिए गए. इनमें से सिर्फ 22 प्राइवेट प्लेयर्स को ही लाइसेंस मिले. इससे पारदर्शिता घटी और एकाधिकार को बढ़ावा मिला. इसके साथ ही शराब की बिक्री का कमीशन 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी किया गया.

अरविंद केजरीवाल सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद दिल्ली शराब नीति वापस ले ली थी. केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दिल्ली में कथित शराब घोटाले को लेकर मामला दर्ज किया था. इसमें दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत AAP नेताओं को गिरफ्तार किया गया था. ये सभी नेता अभी जमानत पर बाहर हैं.

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