दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर विपश्यना ध्यान करने गए हैं. 20 से 30 दिसंबर तक वो विपश्यना में रहेंगे. इससे पहले वो सितंबर 2021 में भी विपश्यना करने गए थे. लेकिन इस बार ये ख़बर इस वजह से भी चर्चा में है क्योंकि दिल्ली शराब नीति से जुड़े कथित घोटाले के मामले में अरविंद केजरीवाल को ED ने 21 दिसंबर को पूछताछ के लिए बुलाया था. लेकिन सीएम ने कह दिया कि उनका विपश्यना का कार्यक्रम पहले से तय था इसलिए वो 21 तारीख़ को नहीं आ पाएंगे.
ED की सुनवाई से पहले अरविंद केजरीवाल फिर पहुंचे विपश्यना करने, लेकिन ये होता क्या है?
अरविंद केजरीवाल एक बार फिर विपश्यना (Arvind Kejriwal Vipsanna) ध्यान करने गए हैं. 20 से 30 दिसंबर तक वो विपश्यना में रहेंगे. इससे पहले वो सितंबर 2021 में भी विपश्यना करने गए थे.
फिलहाल विस्तार से बात करेंगे विपश्यना पर.
ढाई हज़ार साल पुरानी ध्यान विधिविपश्यना एक ‘ध्यान विधि’ है. भारत में ये करीब ढाई हज़ार साल पुरानी मानी जाती है. विपश्यना का अस्तित्व तो उससे भी पहले से था, लेकिन फिर ये ध्यान कला करीब-करीब लुप्त हो गई थी. फिर गौतम बुद्ध ने इसको री-डिस्कवर किया. भारत से विपश्यना पहुंची बर्मा, थाइलैंड जैसे देशों में. बुद्ध गए तो 500 साल बाद विपश्यना वैसी नहीं रह गई जैसी ये थी, धीरे-धीरे भारत से ही गायब होने लगी.
लेकिन बर्मा जैसी जगहों के लोगों ने इसे बचाए रखा. और अब एक बार फिर विपश्यना बड़े स्तर पर लोगों के बीच पहुंच रही है. विपश्यना का मकसद होता है कि दिमाग में जो कुछ चल रहा है और उससे जो दिक्कत हो रही है, उससे पिंड छुड़ाना. केवल बॉडी ही नहीं, दिल-दिमाग के भी दुखों को, ओवरथिंकिंग को दूर करना. इसमें आदमी खुद को चेक करता है और खुद को भीतर से शुद्ध करने की कोशिश करता है. जो कुछ भी घट रहा हो, उसको आदमी तटस्थ होकर देखता है और अपने चित्त को साफ करने की कोशिश करता है.
कम शब्दों में बताएं तो दिन में कई-कई बार बैठे-बैठे ध्यान करना होता है. 10 घंटे बैठे रहो, और ध्यान करो. दस दिन तक मौन रखना होता है. इशारों में भी बात नहीं कर सकते.
विपश्यना का भारत से जाना और वापस आनाबर्मा में सयाजी ऊ बा खिन नाम के एक बड़े ध्यानी बाबा हुए. 6 मार्च, 1899 को बर्मा की राजधानी रंगून में पैदा हुए. पहले एकाउंटेंट जनरल के ऑफिस में क्लर्क हुआ करते थे. जब बर्मा, भारत से अलग हुआ, उस वक्त रंगून नदी के किनारे एक गांव के किसान से उन्होंने ‘आनापान’ का कोर्स किया. इसमें दिमाग और चित्त को एकाग्र करना सिखाया जाता है. सीख-सिखाकर 1950 में इन्होंने अपने ऑफिस में विपश्यना केंद्र बनाया, तब तक ये स्पेशल ऑफिस सुपरिटेंडेंट बन गए थे.
1952 में सयाजी ने ही रंगून में अंतरराष्ट्रीय विपश्यना ध्यान केंद्र की स्थापना की. 31 साल का एक आदमी एक बार उनके पास आया. सयाजी ने उसे विपश्यना सिखाया. उस आदमी का नाम सत्यनारायण गोयनका था. वो मारवाड़ी समूह के व्यापारी थे. मांडले में पैदा हुए थे. 14 साल तक उन्होंने सयाजी से ट्रेनिंग ली. 1969 में सत्यनारायण गोयनका विपश्यना को एक बार फिर भारत लेकर आए. 1969 में शिविर लगाने शुरू किए. 120 असिस्टेंट्स को इस काम के लिए ट्रेंड किया. और विपश्यना एक बार फिर भारत में ज़िंदा हो गई. बाद में 2012 में उनको इस काम के लिए पद्मभूषण भी मिला.
विपश्यना करें कैसे?विपश्यना के मेन सेंटर का पूरा पता है: विपश्यना इंटरनैशनल अकैडमी, धम्मगिरि, इगतपुरी, जिला नासिक, महाराष्ट्र. सीखने के लिए इगतपुरी जाना जरूरी नहीं. देश में इसके करीब 70 सेंटर हैं और पूरी दुनिया में कुल 161 सेंटर. www.vridhamma.org विपश्यना के इगतपुरी सेंटर की वेबसाइट है. www.dhamma.org पर ऑनलाइन बुकिंग भी है. विपश्यना के कोर्स पूरी तरह फ्री होते हैं. रहने, खाने का भी पैसा नहीं लिया जाता. शिविर का सारा खर्च पुराने साधकों के दिए दान से चलता है. शिविर खत्म होने पर कोई चाहे तो भविष्य के शिविरों के लिए दान दे सकता है.
वीडियो: UP चुनाव: विपश्यना ध्यान की संपूर्ण डीटेल आपको इस वीडियो में मिलेगी