बचपन से हम पढ़ते आ रहे हैं कि पौधे ऑक्सीजन बनाते हैं. इसके लिए ये फोटेसिंथिसिस (Photosynthesis) नाम का एक प्रोसेस करते हैं. जिसमें सूरज की रौशनी की मौजूदगी में कार्बन डाई ऑक्साइड(CO2) को ऑक्सीजन (O2) में बदलते हैं. लेकिन हाल में वैज्ञानिकों को एक ऐसी जगह ऑक्सीजन मिली है. जिसके बारे में आपने सोचा भी ना होगा. ये ऑक्सीजन मिली है, समुद्रतल पर (Deep sea floor). जहां लाइट तक नहीं पहुंच पाती है. इसे डॉर्क ऑक्सीजन (Dark Oxygen) नाम दिया जा रहा है. पर ये हुआ कैसे?
Dark Oxygen क्या बला है, जहां लाइट तक नहीं पहुंचती, वहां ये ऑक्सीजन कौन बना रहा?
वैज्ञानिकों को एक ऐसी जगह ऑक्सीजन मिली है. जिसके बारे में आपने सोचा भी ना होगा. समुद्रतल पर, जहां लाइट तक नहीं पहुंच पाती है. इसे डॉर्क ऑक्सीजन (Dark Oxygen) नाम दिया जा रहा है. पर ये हुआ कैसे? वहां ऑक्सीजन बन कैसे रही है?
पौधों के ऑक्सीजन बनाने के बारे में तो हम जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि लगभग आधी ऑक्सीजन तो समंदर से आती है. इसके बारे में आगे बताते हैं. पहले बात करते हैं, इस डॉर्क ऑक्सीजन की. दरअसल नेचर जियोसाइंस (Nature Geoscience) में हाल ही में एक रिसर्च छपी. जिसमें प्रशांत महासागर में करीब 5 किलोमीटर नीचे, जहां लाइट तक नहीं पहुंचती है. वहां साइंटिस्ट्स को ऑक्सीजन का सोर्स मिला है.
माना जा रहा है कि यह ऑक्सीजन समंदर की तलहटी पर पड़ी छोटी-छोटी गोल सी चीजों से बन रही होगी. जिनको 'मेटैलिक नॉड्यूल्स'(metallic nodules) कहा जाता है. ये किसी धातु वगैरह के बने हो सकते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि कोई न कोई ऐसा प्रोसेस होता है, जो पानी यानी H2O को तोड़कर, इसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में बदल देते हैं.
BBC की खबर के मुताबिक, इस रिसर्च से जुड़े स्कॉटिश एसोसिएशन फॉर मरीन साइंस के प्रोफेसर एंड्रू स्वीटमैन बताते हैं,
मैंने पहली बार साल 2013 में देखा था कि समंदर की तलहटी में बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन बनाई जा रही है. वो भी घुप्प अंधेरे में. लेकिन मैंने तब इस पर इतना ध्यान नहीं दिया. क्योंकि मुझे सिखाया गया था कि ऑक्सीजन तो फोटोसिंथेसिस के जरिए लाइट में ही बनती है. लेकिन बाद में मुझे अंदाजा हुआ कि मैं कितनी बड़ी खोज को इग्नोर कर रहा था.
दरअसल यह रिसर्च हवाई और मेक्सिको के बीच गहरे समंदर में हुई है. जहां तलहटी में ऐसे पत्थर या मेटैलिक टुकड़े भरे पड़े हैं. जो पानी में मिली धातु और समुद्री जीवों के खोल (Shell) वगैरह से मिलकर बने होते हैं. इनके बनने में लाखों साल लग सकते हैं.
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दूसरी तरफ कंपनियां अलग ही फिराक में हैंवहीं इनमें लीथियम, कोबाल्ट और कॉपर जैसी धातुओं के होेने की बात भी कही जा रही है. ये धातुएं बैटरियां बनाने में इस्तेमाल की जाती हैं. इसी के चक्कर में खनन करने के लिए तमाम कंपनियां कतार लगाए हैं. इस सब को लेकर भी प्रोफ स्वीटमैन ने अपने रिसर्च पेपर में चिंता भी जताई है. वो कह रहे हैं कि अगर ऐसा किया गया तो ये समुद्र के भीतर के जीवों के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
सिर्फ पेड़ नहीं बनाते ऑक्सीजनसाइंटिस्ट्स का मानना है कि धरती में बन रही लगभग आधी ऑक्सीजन समंदर से आती है. मजेदार बात ये है कि लगभग इतनी ही ऑक्सीजन समुद्री जीव इस्तेमाल कर लेते हैं. माने निल बटे सन्नाटा? लेकिन ये ऑक्सीजन धरती की सतह के बड़े पेड़-पौधे नहीं बनाते. बल्कि इसमें बड़ा रोल है, समुद्र में तैर रहे प्लैंकटन (plankton) का है. ये एल्गी या बैक्टीरिया, जैसे नन्हें जीव होते हैं.
इस काम में प्रोक्लोरोकॉकस (Prochlorococcus) नाम का बैक्टीरिया अव्वल बताया जाता है. यह ऑक्सीजन बनाने वाले सबसे छोटे जीवों में से एक है. ये वातावरण की 20% ऑक्सीजन बनाने का काम भी करते हैं. माने अगर हम पांच बार सांस लेते हैं, तो एक बार सांस लेने के लिए इस प्रोक्लोरोकॉकस को धन्यवाद कहना चाहिए.
हालांकि ऑक्सीजन के ये सोर्स लगातार बदलते भी रहते हैं. जैसे कि अब समंदर के भीतर बन रही डॉर्क ऑक्सीजन की बात कही जा रही है.
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