मेवाड़ का ऐतिहासिक चित्तौड़गढ़ किला (Chittorgarh fort Mewar). कभी इस किले को लेकर महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) और मुगलों के बीच जंग हुआ करती थी. भारत में लोकतंत्र के आने के बाद राजशाही तो खत्म हो गई, लेकिन परंपराएं अभी भी जिंदा हैं. उन्हीं परंपराओं के लिए फिलहाल महाराणा प्रताप सिंह के वंशजों में जंग छिड़ी हुई है कि चित्तौड़गढ़ किले और उदयपुर की रियासत का असली उत्तराधिकारी कौन है?
मेवाड़ की गद्दी के लिए महाराणा प्रताप के वंशज क्यों भिड़े हुए हैं?
उदयपुर में राजपरिवार के बड़े बेटे महेंद्र सिंह मेवाड़ के बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ को आज गद्दी पर बैठाने की परंपरा निभाई गई. दूसरी तरफ, महेंद्र सिंह के छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ ने इस रस्म को ग़ैरक़ानूनी करार दिया है. उनका कहना है कि गद्दी पर अधिकार उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का है.
उदयपुर में राजपरिवार के बड़े बेटे और पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ (Mahendra Singh Mewar) के बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ (Vishwaraj Singh Mewar) को आज (25 नवंबर) गद्दी पर बैठाने की परंपरा निभाई गई. पगड़ी दस्तूर की ये रस्म चित्तौड़गढ़ जिले के ‘फतह प्रकाश महल’ (Fateh Prakash Palace) में अदा की गई. इस दौरान खून से उनका तिलक किया गया. साथ ही 21 तोपों की सलामी भी दी गई.
महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद आस-पास की रियासतों ने बड़े बेटे विश्वराज सिंह को उदयपुर के उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार किया है. विश्वराज सिंह मेवाड़ एकलिंगनाथजी के 77वें दीवान होंगे.
दूसरी तरफ, महेंद्र सिंह के छोटे भाई अरविंद सिंह मेवाड़ (Arvind Singh Mewar) और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ (Lakshyaraj Singh Mewar) ने इस रस्म को “ग़ैरक़ानूनी” करार दिया है. अरविंद सिंह मेवाड़ का कहना है,
क्यों हुआ विवाद?“मेवाड़ राजघराना एक ट्रस्ट के ज़रिए चलता है, जिसका संचालन उनके पिता ने उन्हें दे रखा है. पूर्व महाराजा ने बड़े बेटे महेंद्र सिंह मेवाड़ और उनके परिवार को उदयपुर की शाही गद्दी से बेदख़ल कर रखा है. इसलिए राजगद्दी पर अधिकार मेरा (अरविंद सिंह मेवाड़) और मेरे बेटे लक्ष्यराज सिंह का है.”
भगवत सिंह मेवाड़ (Bhagwat Singh Mewar) उदयपुर रियासत के आखिरी शासक (नाममात्र) थे. महाराणा भगवत सिंह के दो पुत्र थे- महेंद्र सिंह मेवाड़ और अरविन्द सिंह मेवाड़. 1971 में भारत सरकार ने सभी शाही खिताब या राजशाही व्यवस्था को खत्म कर दिया था. इसके बाद सिर्फ सरकारी नियम पूरे राज्य के लिए लागू हो गए.
उदयपुर राजघराने की गद्दी को संभालने के लिए महाराणा भगवत सिंह ने ‘महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन’ नाम की एक संस्था शुरू की. ये संस्था उदयपुर में सिटी पैलेस संग्रहालय चलाती है. अरविंद सिंह मेवाड़ इसी ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं.
उधर चित्तौड़गढ़ के उत्तराधिकारी घोषित किए जाने के बाद विश्वराज सिंह, उदयपुर के सिटी पैलेस मैं जाकर ‘धूणी स्थल’ पर नमन करना चाहते हैं और उसके बाद ‘एकलिंगनाथजी महाराज’ के मंदिर में दर्शन करना चाहते हैं. मगर मौजूदा ट्रस्ट के मुखिया अरविंद सिंह मेवाड़ ने इसे ग़ैरक़ानूनी घोषित कर रखा है. उन्होंने कहा है,
“दोनों ही जगह BJP विधायक विश्वराज सिंह को प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा. इसे लेकर अख़बारों में बड़े-बड़े इश्तिहार भी दिए गए हैं.”
इस मामले को लेकर जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल का कहना है कि जो भी स्थिति बनेगी उसे लेकर निर्णय लिया जाएगा. प्रशासन दोनों पक्षों को समझाने के लिए कई मीटिंग्स कर चुका है.
पहले भी हो चुका है विवादउदयपुर की गद्दी को लेकर विवाद काफ़ी पुराना है. बड़े बेटे महेंद्र सिंह मेवाड़ और छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच इसे लेकर कई बार टकराव भी हो चुका है. कई अदालतों में यह मामला चल रहा है.
हालांकि अभी मेवाड़ चैरिटेबल ट्रस्ट के ज़रिए छोटे बेटे अरविंद सिंह मेवाड़ ही उदयपुर राज घराने की गद्दी को संभालते हैं और सिटी पैलेस में रहते हैं. मगर आसपास की रियासतों में बड़े बेटे यानी महेंद्र सिंह मेवाड़ का प्रभाव ज़्यादा है.
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खून से किया गया तिलकविश्वराज सिंह मेवाड़, जिन्हें आज गद्दी पर बैठाने की परंपरा निभाई गई, नाथद्वारा विधानसभा से BJP के विधायक हैं. विश्वराज सिंह की पत्नी महिमा कुमारी मेवाड़ (Mahima Kumari Mewar) भी राजसमंद से बीजेपी सांसद हैं.
गद्दी पर बैठाने के दौरान सलूम्बर के रावत देवब्रत सिंह ने उंगली काटकर खून से उन्हें तिलक लगाया. खून से राजतिलक करने की परंपरा महराणा प्रताप के समय हुई थी, जब तिलक करने के लिए किसी को कुमकुम नहीं मिला था तो चुंडा जी के वंशज वरिष्ठ रावत ने गोगूंदा में महाराणा प्रताप का अपनी उंगली काटकर खून से राजतिलक किया था.
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