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Chandrayaan-3 बदल सकता है रास्ता, लैंडिंग से ठीक पहले ISRO वैज्ञानिक के बयान ने बढ़ाई टेंशन!

Chandrayaan-3 चांद की सतह से बस कुछ ही दूरी पर है. इधर ISRO के वैज्ञानिक ने कहा है कि इसकी लैंडिंग में देरी हो सकती है.

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ISRO साइंटिस्ट नीलेश देसाई ने लैंडर पर नई जानकारी दी. (फोटो सोर्स- आजतक और ANI)

23 अगस्त शाम 6 बजकर 4 मिनट का वक़्त होगा, जब चंद्रयान-3 (Chandrayan-3) मिशन का लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा. अभी तक ISRO की तरफ से यही जानकारी थी. लेकिन तय तारीख से ऐन पहले 21 अगस्त को ISRO के सीनियर साइंटिस्ट ने कहा है कि लैंडिंग टाली भी जा सकती है. उन्होंने कहा है कि टचडाउन करने (चांद की सतह को छूने) से 2 घंटे पहले अगर इसरो को लगता है कि लैंडर की पोजीशन ठीक नहीं है तो लैंडिंग 27 अगस्त तक के लिए टाल दी जाएगी. ये भी कहा कि ऐसे में 27 अगस्त को लैंडर फिलवक्त तय जगह से 400 से 450 किलोमीटर दूर लैंड करेगा.

‘ISRO की जांच से लैंडिंग बदलेगी’

नीलेश एम देसाई, ISRO के अहमदाबाद स्थित सेंटर ऑफर स्पेस एप्लीकेशंस के डायरेक्टर हैं. न्यूज़ एजेंसी ANI से बात करते हुए उन्होंने कहा,

"अभी तक कोई दिक्कत नहीं है. हम 23 अगस्त को ही लैंडर को चांद पर लैंड कराने की कोशिश करेंगे. लेकिन अगर हमें ऐसा लगता है कि चांद पर उतरने के लिए लैंडर की पोजीशन ठीक नहीं है तो हम इसकी लैंडिंग की तारीख बढ़ाकर 27 की रखेंगे.

लैंडिंग की प्रक्रिया बताते हुए देसाई ने और भी कई जरूरी चीजें समझाईं. मसलन, उन्होंने बताया कि लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कैसे होगी.

सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया

देसाई ने बताया कि लैंडर मॉड्यूल अभी 25 किलोमीटर-134 किलोमीटर की ऑर्बिट में है. माने चांद के चारों तरफ ऐसी कक्षा में चक्कर लगा रहा है, जिससे चांद की न्यूनतम दूरी मात्र 25 किलोमीटर है और अधिकतम दूरी 134 किलोमीटर. लैंडर 30 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद की सतह पर उतंरना शुरू करेगा. इस वक़्त इसकी वेलॉसिटी 1.68 किलोमीटर प्रति सेकंड की होगी. ये बहुत तेज गति होती है. हम स्पीड यानी गति शब्द का इस्तेमाल इसलिए नहीं कर रहे क्योंकि उसमें दिशा महत्वपूर्ण नहीं होती जबकि वेलॉसिटी का मतलब स्पीड प्लस डायरेक्शन. और लैंडर के लिए उसकी गति के अलावा दिशा और उसकी पोजीशन को भी इसरो द्वारा तय रखा गया है.

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लैंडर जब चांद की सतह को छुएगा उस वक़्त इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती इसकी तेज गति होगी. जिसके चलते क्रैश लैंडिंग की आशंका है. देसाई कहते हैं कि जब लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा उस वक़्त चांद का अपना गुरुत्वाकर्षण बल भी लैंडर को अपनी तरफ खींचेगा. लैंडर की वेलॉसिटी कम करने के लिए थ्रस्टर इंजन लगाए गए हैं. इनको रेट्रो फायर करके लैंडर की वेलॉसिटी कम की जाएगी. आसान भाषा में समझें तो रेट्रो-फायर माने इंजन से रिवर्स थ्रस्ट (उल्टी दिशा में धक्का देकर) किसी स्पेसक्राफ्ट या रॉकेट को उल्टी दिशा में गति देना, ताकि इसकी वेलॉसिटी कम की जा सके.
देसाई बताते हैं,

"हम थ्रस्टर इंजन को रेट्रो-फायर करेंगे. ताकि जब लैंडर, चांद की सतह को छुए तब इसकी वेलॉसिटी जीरो हो जाए. हमने लैंडर मॉड्यूल में 4 थ्रस्टर लगाए हैं. 30 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंडर 7.5 किलोमीटर की तक उतरेगा. उसके बाद ये 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई तक आएगा. तब हम लैंडर के दो इंजन बंद कर देंगे."

देसाई आगे कहते हैं कि 30 किलोमीटर की ऊंचाई से लैंडर जब 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचेगा तब रिवर्स थ्रस्ट के जरिए लैंडर की वेलॉसिटी 1.68 किलोमीटर प्रति सेकंड से घटकर 350 मीटर प्रति सेकंड की हो जाएगी. और इसके बाद जब लैंडर 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई से 800 मीटर की ऊंचाई तक आएगा तब वेलॉसिटी लगभग जीरो हो जाएगी. इसके बाद लैंडर जब चांद से मात्र 150 मीटर ऊपर होगा तब 'वर्टिकल डिसेंट' करेगा. माने सीधा 90 डिग्री के एंगल से चांद की सतह पर उतरेगा. और इस स्थिति में एक बार फिर लैंडर यह तय करेगा कि जिस जगह पर ये सीधा नेनेचे की तरफ उतरने वाला है वो उपयुक्त है या नहीं. अगर जगह बिल्कुल ठीक-सटीक नहीं है तो ये 60 मीटर दाएं या बाएं भी मुड़कर उतर सकता है.

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