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CBI ने किस मामले में IAS शाहिद चौधरी के घर सहित 40 जगहों पर छापेमारी की है?

श्रीनगर के पूर्व डिप्टी कमिश्नर रहे हैं शाहिद चौधरी.

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श्रीनगर में छापे के दौरान की एक तस्वीर (लेफ्ट) और शाहिद इकबाल चौधरी की फाइल फोटो. फोटो सोर्स- आजतक
शनिवार 24 जुलाई को CBI ने जम्मू-कश्मीर के IAS और श्रीनगर के पूर्व डिप्टी कमिश्नर शाहिद चौधरी के आवास पर छापेमारी की. शाहिद के आवास के अलावा भी कई और जगहों पर CBI ने छापे मारे हैं. चौधरी पर कथित रूप से 'अवैध लाइसेंस' जारी करने के आरोप हैं. https://twitter.com/ANI/status/1418792760916660225 इंडिया टुडे के संवाददाता तनसीम हैदर की एक रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू, श्रीनगर, उधमपुर, राजौरी, अनंतनाग, बारामूला और दिल्ली समेत 40 जगहों पर ये छापेमारी की गई. केंद्रीय एजेंसी ने करीब 20 गन हाउसों पर भी छापे मारे हैं. साथ ही कर्मचारियों के सरकारी और आवासीय ठिकानों पर भी छापेमारी की है. जिन सरकारी कर्मचारियों के ठिकानों पर छापेमारी की गई है उनमें IAS अधिकारी भी शामिल हैं. इस मामले में CBI ने साल 2019 में केस रजिस्टर्ड किया था. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे आरोप हैं कि साल 2012 से साल 2016 के बीच जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग जिलों के डिप्टी कमिश्नरों ने पैसे कमाने के लिए भारी संख्या में फर्जी लाइसेंस बनाए. शाहिद इकबाल चौधरी कठुआ, रियासी, राजौरी और उधमपुर जिलों में भी डिप्टी कमिश्नर रह चुके हैं. फिलहाल वे जम्मू-कश्मीर में जनजातीय मामले के सचिव और मिशन यूथ के सीईओ हैं. 2009 बैच के IAS ऑफिसर शाहिद इकबाल चौधरी पर आरोप हैं कि उन्होंने बतौर डिप्टी कमिश्नर, फर्जी नामों पर हजारों शस्त्र लाइसेंस जारी किए. दैनिक भास्कर की एक खबर के मुताबिक साल 2012 से जम्मू-कश्मीर में अवैध तरीके से 2 लाख से अधिक लाइसेंस जारी किए गए. इसको भारत का सबसे बड़ा गन लाइसेंस रैकेट बताया जाता है. साल 2020 में इस मामले में CBI ने दो अधिकारियों को गिरफ्तार किया था जिनमें IAS राजीव रंजन भी शामिल थे. राजस्थान ATS ने साल 2017 में इस मामले का खुलासा किया था और 50 से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार किया था. मामला सामने आने के बाद राज्य के तत्कालीन राज्यपाल एनएन वोहरा ने CBI को जांच सौंपी थी. अभी तक की जांच ये बताती है कि जम्मू-कश्मीर के बाहर रहने वालों को भी हथियार के लाइसेंस राज्य से जारी किए गए हैं. साथ ही इसमें सरकारी अधिकारियों की भी संलिप्तता रही है. ऐसा अनुमान है कि 2 लाख से भी अधिक लाइसेंस अभी तक जारी किए जा चुके हैं. ये लाइसेंस जाली दस्तावेजों पर बनवाए जाते थे. इस पूरे मामले में डिप्टी कमिशनरों के अलावा सरकारी मशीनरी के और भी कई कर्मचारी शामिल हैं. आपको बता दें कि हथियारों का लाइसेंस बनवाने के लिए एक लंबी प्रक्रिया होती है जिसमें तमाम तरह की जांचें भी शामिल हैं. पुलिस जांच, LIU जांच समेत कई तरह की जांचों के बाद लाइसेंस की फाइल जिले के DM या डिप्टी कमिश्नर के पास पहुंचती है जिस पर उनकी स्वीकृति के बाद लाइसेंस बन जाता है. इसी के आधार पर हथियार और कारतूस खरीदे जा सकते हैं.