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'आपसी बातचीत में जातिसूचक टिप्पणी करना SC/ST एक्ट के तहत अपराध नहीं'

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने ये बात कही है.

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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने शादी शुदा महिला और उसके प्रेमी के रिश्ते को अनैतिक करार देते हुए दोनों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया.
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया है. यह फैसला अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कानून 1989 (एससी-एसटी एक्ट) से जुड़ा है. कोर्ट ने कहा कि फोन पर बातचीत के दौरान जातिसूचक टिप्पणी करना एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध नहीं है. क्योंकि यह घटना सार्वजनिक यानी लोगों के सामने नहीं हुई. जस्टिस हरनरेश सिंह गिल ने कुरुक्षेत्र के दो लोगों की याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया. इन दोनों पर गांव के सरपंच के खिलाफ मोबाइल पर जातिवादी टिप्पणी करने का आरोप लगा था. साथ ही एफआईआर भी दर्ज की गई थी. दोनों ने इस FIR को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. मामला क्या है? घटना साल 2017 की है. कुरुक्षेत्र के एक गांव के सरपंच राजिंदर कुमार ने एससी-एसटी एक्ट के तहत दो लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया. आरोप लगाया कि संदीप कुमार और प्रदीप ने मोबाइल पर बातचीत के दौरान जातिगत टिप्पणियां कीं. साथ ही आरोपियों ने जान से मारने की धमकी भी दी. राजिंदर कुमार ने गांव के देवीदयाल नाम के व्यक्ति को गवाह बनाया. इसके बाद दोनों आरोपियों पर एससी-एसटी एक्ट के तहत केस चला. मई 2019 में ट्रायल कोर्ट में आरोप तय हो गए. इसके खिलाफ आरोपी संदीप कुमार और प्रदीप ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई. कहा कि उनकी बात मोबाइल पर हुई थी न कि लोगों के सामने. ऐसे में आरोप एससी-एसटी एक्ट के तहत नहीं आते. उन्होंने राजिंदर कुमार पर बदले की भावना से केस कराने का आरोप लगाया. उनके वकीलों ने कोर्ट में कहा कि प्रदीप के पिता जसमेर सिंह ने सरपंच राजिंदर कुमार और देवीदयाल के खिलाफ प्रशासन में शिकायत की थी. इसके बाद पंचायत को धर्मशाला बनाने के लिए मिले पैसे वापस लौटाने पड़े थे. इसके चलते उन पर केस किया गया. कोर्ट ने क्या कहा? सुनवाई के बाद फैसले में जस्टिस गिल ने कहा कि रिकॉर्ड पर काफी बातें हैं, जो बताती हैं कि प्रदीप के पिता जसमेर सिंह ने सरपंच और देवीदयाल के काम पर सवाल उठाए थे. इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि जसमेर सिंह की अर्जी के बाद पंचायत को 7 लाख रुपये लौटाने पड़े थे. ऐसे में यदि दो तरह के मत हैं और एक मत से केवल संदेह उभरता है, तो यह स्थापित कानून है कि ट्रायल जज आरोपी को आरोपमुक्त कर सकता है. ऐसे हालात में यह नहीं देखना चाहिए कि क्या ट्रायल का अंत दोषसिद्धि में निकलेगा या फिर बरी करने में. फैसले में आगे कहा कि अगर लोगों की नज़र से दूर जातिवादी शब्द कहे गए हों, तो इस तरह के गलत शब्द कहने के पीछे अपमान की मंशा नहीं होती. ऐसे में यह अपराध का ऐसा कृत्य नहीं बनता जो एससी और एसटी कानून 1989 के तहत संज्ञान लेने लायक हो. अगर सार्वजनिक रूप से एससी या एसटी के व्यक्ति को नीचा दिखाने की मंशा से जानबूझकर बेइज्जती की जाती या धमकाया जाता, तो यह एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध होता. जस्टिस गिल ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज एफआईआर को भी रद्द कर दिया.
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