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कैप्टन अंशुमान कीर्ति चक्र विवाद: सेना का NoK नियम क्या है?

सैनिक की मृत्यु के बाद पेंशन, सम्मान और आर्थिक सहायता पर हक किसका - पत्नी या माता पिता का? इस सवाल का जवाब आपको तभी मिलेगा, जब आप सेना के संदर्भ में Next Of Kin (NoK) का सिद्धांत समझें.

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Captain Anshuman Singh

19 जुलाई 2023 को कैप्टन अंशुमान सिंह (Captain Anshuman Singh) सियाचिन ग्लेशियर पर अपने साथियों बचाते हुए शहीद हो गए थे. उनके साहस और सेवा के लिए उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से अलंकृत किया गया. 5 जुलाई 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कैप्टन अंशुमान की पत्नी स्मृति और उनकी मां मंजू सिंह को शहीद कैप्टन का कीर्ति चक्र सौंपा. एक हफ्ते के भीतर विवाद खड़ा हो गया कि कैप्टन अंशुमान के परिजनों को मिलने वाला सम्मान, आर्थिक सहायता एवं पेंशन आदि कौन रखेगा - कैप्टन के माता-पिता या पत्नी.

कैप्टन अंशुमान के माता-पिता ने आरोप लगाया कि उनके बेटे की मौत के बाद उन्हें कुछ नहीं मिला. स्मृति अपने मायके चली गईं. और अपने साथ कीर्ति चक्र, फोटो एल्बम, कपड़े और अंशुमान से जुड़ी कुछ यादें भी ले गईं. 

ये बात सामने आने के बाद से लोग माता-पिता और स्मृति को सही या गलत बताने में लगे हैं. ऐसे में ये जान लेना बेहतर होगा कि ऐसे मामलों को लेकर सेना के नियम क्या कहते हैं. दी लल्लनटॉप ने इस मसले पर जानकारी के लिए सेना के एक पूर्व अधिकारी, एक पूर्व IAS और कुछ अन्य संबंधित लोगों से बात की. सब एक बात पर सहमत थे, कि सैनिक की मृत्यु के उपरांत सारा व्यवहार (सम्मान/पेंशन आदि) नेक्स्ट ऑफ किन (NoK) के साथ ही किया जाता है.

NoK क्या होता है?

नेक्सट ऑफ किन (NOK) माने निकटतम संबंधी. सेना एक रिस्की पेशा है. जहां जान का खतरा किसी दूसरे प्रोफेशन से कहीं ज्यादा है. ऐसे में जैसे ही कोई व्यक्ति सेना में भर्ती होता/होती है तो उसका NOK दर्ज कर लिया जाता है. ताकि अनहोनी की स्थिति में परिवार को उसका हक मिले. नए रिक्रूट्स को इस संबंध में काउंसिलिंग भी दी जाती है. 

भर्ती के समय अविवाहित लोगों के लिए उनके माता-पिता NOK बनाए जाते हैं. किसी परिस्थिति में अगर माता-पिता ना हो, तो उनके लीगल गार्डियन को NOK बनाया जाता है. सेना में भर्ती किसी व्यक्ति की मौत के बाद सेना का संवाद उनके NOK से ही होता है.

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Captain Anshuman Singh
कैप्टन अंशुमान सिंह. (फाइल फोटो)

जब किसी सैनिक की शादी हो जाती है, तब अपने आप NOK बदल जाता है. माता-पिता की जगह सैनिक के स्पाउस पत्नी/पति को उनका NOK बना दिया जाता है. इसका एक कारण ये भी होता है कि शादीशुदा सैनिकों को अविवाहित सैनिकों से अतिरिक्त भत्ते एवं लाभ मिलते हैं. तो शादी होने पर सैनिक तत्परता से अपने पति/पत्नी का नाम रिकॉर्ड में दर्ज करा देते हैं.  

इसके बाद अगर व्यक्ति को सेना में ड्यूटी के दौरान कुछ हो जाता है तो मरणोपरांत मिलने वाली सुविधाएं पत्नी/पति (NOK) को ही मिलती हैं. कैप्टन अंशुमान के माता-पिता ने इसी नियम में बदलाव की मांग की है.

सम्मान पेंशन, बीमा को लेकर नियम

संबंधित व्यक्तियों से बातचीत में हमें पेंशन और इंश्योरेंस के क्लेम पर भी कुछ जानकारी मिली. सेना के किसी शादीशुदा व्यक्ति के मरणोपरांत उनके इंश्योरेंस और पेंशन का कम से कम 67 परसेंट उनके NOK यानी उनकी पत्नी को मिलता है. बाकी 33 परसेंट के लिए व्यक्ति अपने विवेक के अनुसार, किसी और को ‘नॉमिनी’ बना सकता है. व्यक्ति अगर चाहे तो अपनी पत्नी को 67 परसेंट ज्यादा का भी उत्तराधिकारी बना सकता है. लेकिन इससे कम नहीं.

सम्मान को लेकर भी NoK का ही सिद्धांत काम करता है. अविवाहित सैनिकों को मरणोपरांत मिलने वाला सम्मान (मेडल) माता-पिता को सौंपा जाता है. विवाहित सैनिकों के मामले में सम्मान पति/पत्नी को सौंपा जाता है. हालांकि समारोह में माता-पिता को भी आमंत्रित किया जाता है. 

अभी हमने जितनी बातें आपको बताईं, वो सब रक्षा मंत्रालय से मिलने वाली पेंशन, आर्थिक सहायता, इंश्योरेंस और सम्मान पर लागू होती हैं. ड्यूटी पर प्राण देने वाले सैनिकों के परिजनों को कई राज्य सरकारें भी आर्थिक मदद आदि देती हैं. कुछ सूबों में केस बाय केस मदद दी जाती है, तो कुछ सूबों में इसके लिए आधिकारिक नीति है. हम कुछ उदाहरण आपके सामने रख रहे हैं.  

राज्य सरकारों से मिलने वाली मदद किसे दी जाती है?

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में मरणोपरांत मिलने वाले आर्थिक सहयोग के लिए अलग-अलग नियम हैं. मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने पिछले महीने ही एक नियम बनाया था. इसके अनुसार, शहादत के बाद राज्य सरकार की ओर से मिलने वाले आर्थिक सहयोग को माता-पिता और पत्नी में आधा-आधा बांटा जाता है. यानी 50 प्रतिशत माता-पिता को और 50 प्रतिशत पत्नी को. 

जून 2022 में UP सरकार ने इस संबंध में फैसला लिया था. राज्य में शहीद के आश्रितों को 50 लाख रुपये दी जाती है. नियम के अनुसार, राज्य सरकार की ओर से 35 लाख रुपये शहीद की पत्नी को और 15 लाख रुपये मां-बाप को दिया जाता है. हरियाणा में 70 प्रतिशत अनुग्रह राशि पत्नी को और 30 प्रतिशत राशि माता-पिता को दी जाती है. इन मामलों में अगर शहीद के माता-पिता की मौत हो गई हो तो सारी सहायता राशि पत्नी को ही दी जाती है.

कैप्टन अंशुमान, कीर्ति चक्र 

कैप्टन अंशुमान 26 पंजाब रेजिमेंट में मेडिकल अफसर थे. 2023 में उनकी यूनिट सियाचिन ग्लेशियर में तैनात थी. 19 जुलाई 2023 को ग्लेशियर में सेना के भंडार में आग लगी. शॉर्ट सर्किट से शुरू हुई इस आग ने पहले फाइबर ग्लास से बने एक हट को अपनी ज़द में लिया. कैप्टन अंशुमान ने हट में फंसे 5 सैनिकों को सुरक्षित निकाला.

इसके बाद आग मेडिकल रूम में फैली. कैप्टन अंशुमान एक बार फिर जलते हट में घुसे, ताकि कुछ जीवन रक्षक दवाओं को बाहर ला सकें. लेकिन इस बार वो बाहर नहीं आ पाए और उनके प्राण चले गए. 

22 जुलाई 2023 को यूपी के देवरिया में सैनिक सम्मान के साथ कैप्टन अंशुमान का अंतिम संस्कार हुआ. और 26 जनवरी 2024 को गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया, जो कि शांति के समय साहस के लिए मिलने वाला दूसरा सबसे बड़ा वीरता पदक है. 5 जुलाई 2024 को ये पदक कैप्टन के NoK, माने स्मृति और कैप्टन की माता को सौंप दिया गया.

वीडियो: 50 साल तक की प्लानिंग की थी अगले दिन शहादत की खबर आई, कैप्टन अंशुमान सिंह की पत्नी ने बताया