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अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया.. कनाडा-भारत विवाद में कौन किसके पाले में है?

India-Canada Dispute की ख़बरें आईं, तो सबसे पहले पूछा गया कि G7 किस दिशा में जाएगा? क्योंकि भले ही कनाडा इस समूह का हिस्सा हो, मगर फ़्रांस, यूके, इटली और अमेरिका भारत के भी दोस्त हैं.

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ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषी सुनक, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंंत्री ऐंथनी आल्बनीज़ और अमेरिकी राष्ट्रपति (फोटो - AP/रॉयटर्स)

कनाडा और भारत के बीच तनाव (India-Canada Dispute). दो दिन से ये इंटरनेट और ख़बरों की दुनिया का कीवर्ड बना हुआ है. भारत ने तो भारत सरकार और ‘ख़ालिस्तानी आतंकी' की हत्या के बीच संबंधों को सिरे से ख़ारिज किया है और कहा कि कनाडा में हिंसा के किसी भी कृत्य में भारत की संलिप्तता के आरोप बेतुके और राजनीति से प्रेरित हैं. लेकिन अलग-अलग कहानियां, पुराने-नए क़िस्से, वर्तमान के सामरिक संबंध और भविष्य की आशंकाओं पर चर्चा छिड़ी हुई है. दोनों ही देश वर्ल्ड ऑर्डर में अपनी जगह रखते हैं. दोनों के बीच बैर हो जाए अंतरराष्ट्रीय मंचों के लिए ये अनुकूल है नहीं. इसीलिए ख़ेमा न चुनते हुए भी, ख़ेमा चुनना पड़ रहा है.

कौन-सा देश किसके पाले में है?

कनाडा-भारत के बीच तनाव की ख़बरें आईं, तो सबसे पहले पूछा गया कि G7 किस दिशा में जाएगा? पहले तो G7 ही जान लीजिए क्या है? ये 7 ताक़तवर देशों का एक समूह है जिसमें अमेरिका, यूके, जर्मनी, फ़्रांस, इटली, कनाडा और जापान. मतलब, मुख्यतः पश्चिम के देश और पूर्व से जापान हैं. अब वापस लौटते हैं सवाल पर कि कौन किस साइड है. तो भले ही कनाडा इस समूह का हिस्सा हो, मगर फ़्रांस, यूके, इटली और अमेरिका भारत के भी दोस्त हैं. मुख्यधारा मीडिया के टीवी चैनलों के बकौल, तो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस दोस्ती में अलग ही नर्मी आ गई है. इसीलिए ये देखना ज़रूरी है कि किसने-क्या कहा? कौन 'सच्चा' दोस्त है? कौन फ़ायदे का?

पहले बात ब्रिटेन की. ब्रिटेन ने कहा कि वो कनाडा के 'गंभीर आरोपों' के बारे में अपने कनाडाई सहयोगियों के साथ लगातार बातचीत कर रहा है. देश के एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा,

"हम इन गंभीर आरोपों के बारे में अपने कनाडाई सहयोगियों के साथ बात कर रहे हैं. कनाडा के अधिकारियों की जांच के दौरान कुछ भी टिप्पणी करना अनुचित होगा."

ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका, कनाडा के इंटेलिजेंस सहयोगी (five eyes) हैं. माने तीनों देश एक-दूसरे से ख़ूफ़िया जानकारी और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर जानकारी साझा करते हैं. दोनों देशों ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों पर गहरी चिंता जताई है. वाइट हाउस राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता एड्रिएन वॉटसन ने एक संक्षिप्त बयान में कहा,

"हम अपने कनाडाई साझेदारों के साथ नियमित संपर्क में हैं. ये बहुत ज़रूरी है कि जांच आगे बढ़े और अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाया जाए."

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ऐंथनी अल्बानीज़ ने बताया कि उनकी प्रधानमंत्री ट्रूडो के साथ चर्चा हुई, लेकिन वह इन चर्चाओं को गोपनीय रखना चाहते हैं. प्रधानमंत्री तो कुछ नहीं बोले, मगर उनसे पहले ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग ने न्यूयॉर्क में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में इस मसले बयान दिया था. कहा था,

"ये बहुत संवेदनशील रिपोर्ट्स हैं और मुझे पता है कि जांच अभी भी चल रही है. हम अपने सहयोगियों के साथ पूरे घटनाक्रम पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं. और हम ऐसा करना जारी रखेंगे. हमने इस मुद्दे को भारतीय समकक्षों के साथ उठाया है, जैसा कि हमसे अपेक्षित है."

ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी कहा था कि सभी देशों को संप्रभुता और क़ानून के शासन का सम्मान करना चाहिए.

फ़्रांस और इटली ने अभी तक कोई बयान नहीं दिया है. जापान ने भी कुछ नहीं कहा है, लेकिन अभी जापान-कनाडा के संबंधों को देखकर लगता है कि जापान भारत के पाले है नहीं. जापान के अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्री - 21 सितंबर को - कनाडा की राजधानी ओटावा में होंगे. इलेक्ट्रिक गाड़ियों की एक डील पर दस्तख़त करने के लिए. हालांकि, हम जानते ही हैं: आज के समय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों में व्यापार और कूटनीति दो अलग पहलू हैं.

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बीबीसी राजनयिक संवाददाता जेम्स लैंडेल लिखते हैं कि अमेरिका और बाक़ी पश्चिमी ताक़तें कभी नहीं चाहेंगी कि वो किसी भी विवाद के चलते भारत से रिश्ते ख़राब करें. जेम्स के बकौल,

"फ़िलहाल कनाडा के सहयोगी वफ़ादार हैं, लेकिन सतर्क भी हैं.पश्चिम की पूरी कोशिश रहेगी कि कनाडा और भारत के बीच राजनयिक विवाद का असर बाक़ी अंतरराष्ट्रीय रिश्तों पर न पड़े.

इसलिए अभी पश्चिम इंतज़ार कर रहा है. देख रहा है कि जांच में क्या निकल कर आता है. अगर पुख़्ता सबूत मिलते हैं, तब मामला फंस जाएगा. क्योंकि अतीत में पश्चिमी देशों ने रूस, ईरान या सऊदी अरब जैसे देशों द्वारा सीमा के पार जाकर की गई कथित ग़ैर-क़ानूनी हत्याओं की निंदा की है. और, वो नहीं चाहेंगे कि भारत इस सूची में शामिल हो."

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माने सभी देश अपना-अपना फीता बचाए हुए हैं. कह रहे हैं कि घटनाक्रम पर पैनी नज़र बनाए हुए हैं, मगर किसी देश से संबंध ख़राब नहीं करने. आज की इस कूटनीति पर अकबर इलाहाबादी का ये शेर बहुत माकूल है:-

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