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तमिलनाडु के गवर्नर 3 साल तक 12 बिल रोके रहे, बहुत ढूंढा पर संविधान में ऐसा कहीं नहीं मिला

तमिलनाडु विधानसभा ने इन 12 विधेयकों को जनवरी 2020 से अप्रैल 2023 के बीच राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा था, लेकिन राज्यपाल ने उन पर कोई निर्णय नहीं लिया और उन्हें अनिश्चित काल के लिए रोक कर रखा. अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है. कोर्ट ने क्या-क्या कहा? और इस बारे में संविधान क्या कहता है?

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तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि. (India Today)

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने पूछा कि राज्य सरकार द्वारा भेजे गए 12 विधेयकों में उन्हें ऐसा क्या "गंभीर" लगा कि उन्होंने तीन साल से अधिक समय से इन्हें लंबित रखा है. जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने इन विधेयकों के बारे में चर्चा की. ये विधेयक मुख्य रूप से उच्च शिक्षा और राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े थे. राज्यपाल की ओर से भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि अदालत में उपस्थित थे.

राज्यपाल ने तीन साल तक विधेयकों को रोककर रखा

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि तमिलनाडु विधानसभा ने इन 12 विधेयकों को जनवरी 2020 से अप्रैल 2023 के बीच राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा था, लेकिन राज्यपाल ने उन पर कोई निर्णय नहीं लिया और उन्हें अनिश्चित काल के लिए रोक कर रखा. जब तमिलनाडु सरकार ने नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, तब राज्यपाल ने जल्दी से 2 विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया और बाकी 10 विधेयकों को खारिज कर दिया.

इसके बाद, तमिलनाडु विधानसभा ने इन 10 विधेयकों को एक विशेष सत्र में दोबारा पारित कर राज्यपाल को फिर से भेजा. इस बार, राज्यपाल ने सभी 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेज दिया. राष्ट्रपति ने इन विधेयकों पर फैसला लिया. 1 विधेयक को मंजूरी दी, 7 विधेयकों को खारिज कर दिया. 2 विधेयकों पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की इस देरी और फैसलों पर सवाल उठाया है और मामले की गंभीरता पर विचार कर रहा है.

किसी भी राज्य में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल, विधानसभा और विधान परिषद एक संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ही काम करते हैं. राज्यपाल के पास क्या शक्तियां हैं, उनका इस्तेमाल कैसे करना है, उनकी क्या प्रक्रिया है, सबकुछ संविधान के अलग-अलग अनुच्छेदों में लिखा गया है. संविधान में क्या लिखा है. एक नज़र डालते हैं.

विधेयकों को स्वीकृति (Assent to Bills)

अनुच्छेद 200: जब किसी राज्य की विधानसभा या यदि राज्य में विधान परिषद भी है, तो दोनों सदनों द्वारा कोई विधेयक पारित कर दिया जाता है, तो इसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है. इसके बाद राज्यपाल के पास तीन विकल्प होते हैं-

- विधेयक को मंजूरी देना 
- विधेयक को मंजूरी देने से इनकार करना
- विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखना

लेकिन राज्यपाल मंजूरी देंगे या इनकार करेंगे, इसके लिए भी संविधान में प्रावधान बताए गए हैं.

पहली शर्त:
राज्यपाल, यदि विधेयक मनी बिल नहीं है, तो बिल वापस भेज सकते हैं. और सुझाव दे सकते हैं कि इस पर फिर से विचार किया जाए. विधायिका (Assembly or Council) को तब विधेयक पर दोबारा विचार करना होगा. यदि विधेयक को संशोधनों के साथ या बिना संशोधनों के दोबारा पारित किया जाता है और फिर से राज्यपाल को भेजा जाता है, तो राज्यपाल को इसे मंजूरी देनी ही होगी और वे इसे रोक नहीं सकते.

दूसरी शर्त:
यदि राज्यपाल को लगता है कि विधेयक उच्च न्यायालय की शक्तियों को प्रभावित करता है और इसके कारण न्यायालय की स्थिति को खतरा हो सकता है, तो वे इसे मंजूरी नहीं देंगे और राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखेंगे.

इसके बाद सवाल है कि अगर राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज देते हैं तब क्या-क्या हो सकता है. राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का किस तरह से इस्तेमाल करेंगे और किस तरह के आदेश या निर्देश दे सकते हैं, इसके बारे में संविधान के अनुच्छेद 201 में लिखा गया है.

अनुच्छेद 201: यदि राज्यपाल ने किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजा, तो राष्ट्रपति के पास दो विकल्प होते हैं-

- विधेयक को मंजूरी देना 
- विधेयक को मंजूरी देने से इनकार करना

यहां भी विशेष प्रावधान है. यदि विधेयक मनी बिल नहीं है, तो राष्ट्रपति राज्यपाल को निर्देश दे सकते हैं कि वह विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानसभा या विधानमंडल के पास वापस भेजें. अब एक बार फिर विधायिका की बारी आती है. विधानमंडल को वापस आए विधेयक पर फिर से विचार करना होगा और इसे छह महीने के भीतर पारित करना होगा. जब विधेयक फिर से राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति इसे मंजूरी देने या अस्वीकार करने का निर्णय लेंगे.

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