ये फिल्म की कहानी नहीं, हकीकत है. और हकीकत राजधानी दिल्ली से करीब 110 किमी की दूरी पर बसे बुलंदशहर जिले की है. बात इतनी है कि लौंगा गांव की एक शादीशुदा महिला पांच मार्च को अपने पड़ोसी धर्मेंद्र लोधी के साथ कहीं चली गई थी. गांववाले उसे खोजने में लगे थे. 10 मार्च को गांववालों ने उसे खोज निकाला और गांव में वापस लेकर आए. एक शादीशुदा महिला का किसी और के साथ चले जाना गांववालों को नागवार गुजरा. महिला के पति सौदान सिंह की गुजारिश पर गांव में 20 मार्च को पंचायत हुई और फिर महिला को पीटने की सजा का ऐलान हुआ. नतीजा ये हुआ कि महिला को पेड़ से बांधकर सात घंटों तक पीटा जाता रहा.
महिला का पति उसे लगातार बेल्ट से पीटता रहा.
इतना ही महिला के साथ पिटाई के अलावा और भी क्रूरता की गई. महिला का आरोप है कि पिटाई के बाद जब वो अपने घर में पहुंची तो गांव के कुछ लोग घर के अंदर आए और उसके साथ अश्लील हरकतें कीं. साथ ही शिकायत करने पर जान से मारने की धमकी तक दी गई. हालांकि गांव के पूर्व प्रधान ने इस घटना का वीडियो बना लिया और उसे सोशल मीडिया पर डाल दिया. वीडियो वायरल हुआ, तो मामला पुलिस के पास पहुंचा. वहीं महिला ने भी कोतवाली पुलिस को मामले की तहरीर दी. अगले ही दिन यानी 21 मार्च को पुलिस ने वीडियो की जांच की और मामले को सही पाया. इसके बाद पुलिस की ओर से 22 मार्च को सात नामजद और 12 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया. इसके बाद पुलिस ने गांव के प्रधान शेर सिंह, महिला के पति सौदान सिंह और एक दूसरे आदमी को गिरफ्तार कर लिया है. स्याना थाना प्रभारी अल्ताफ अंसारी ने मीडिया को बताया है कि बाकी बचे हुए चार और नामजद आरोपियों को भी गिरफ्तार किया जाएगा. इसके अलावा वीडियो फुटेज में दिख रहे और भी आरोपियों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
पुलिस पीटने वाले के खिलाफ तो कार्रवाई करेगी, लेकिन जो भीड़ तमाशा देखती रही, उसपर कोई कार्रवाई नहीं होगी.
ठीक है पुलिस कार्रवाई करेगी. आरोपियों के खिलाफ, पति के खिलाफ, सजा सुनाने वालों के खिलाफ, लेकिन उनका क्या जो मूक दर्शक बनकर तमाशा देखते रहे. सैकड़ों की भीड़ के सामने एक महिला पिटती रही और लोग तमाशबीन बने रहे. महिला उन लोगों से बचाव की गुहार लगती रही, लेकिन किसी ने भी उस महिला की चीखें नहीं सुनीं. चुप्पी साधे तमाशा देखने वालों के खिलाफ तो पुलिस की कोई धारा काम नहीं करेगी, क्योंकि भारतीय दंड संहिता में इसका कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन अगर सबसे ज्यादा गलती किसी ने की है, तो ये वही लोग हैं, जो मूकदर्शक बने रहे. इनकी चुप्पी से ही उन लोगों को इतनी हिम्मत नहीं कि एक महिला को पेड़ से बांधकर सात घंटे तक पीटते रहे. अगर किसी ने आवाज उठाई होती, पंचायत के फैसले का विरोध किया होता, तो वो महिला आज इस हाल में नहीं होती.
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