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नक्सल कनेक्शन केस में प्रोफेसर जीएन साईबाबा बरी, वील चेयर में ही जेल में थे बंद

महाराष्ट्र की एक निचली अदालत ने साईबाबा को 2017 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. अक्टूबर 2022 में हाई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था. लेकिन एक दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी.

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पिछले 9 सालों से जेल में बंद हैं जीएन साईबाबा (फाइल फोटो)

बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को माओवादियों से कथित संबंध के मामले में एक बार फिर बरी कर दिया है. हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने 5 मार्च को ये फैसला सुनाया. प्रोफेसर साईबाबा 90 फीसदी से अधिक विकलांग हैं और वील चेयर पर रहते हैं. फिलहाल वो नागपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं. माओवादियों से संपर्क रखने के आरोप में साईबाबा 9 सालों से जेल में हैं. महाराष्ट्र की एक निचली अदालत ने उन्हें साल 2017 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी.

5 मार्च को बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस विनय जोशी और जस्टिस एसए मेनेजेस ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार की अपील पर फैसला नहीं कर लेता, आरोपी को 50 हजार की जमानत राशि पर रिहा किया जा सकता है. हाई कोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस साईबाबा और अन्य लोगों के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं कर पाई है. इस फैसले को चुनौती देते हुए महाराष्ट्र सरकार एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट चली गई है.

इस फैसले में जीएन साईबाबा के अलावा, पत्रकार प्रशांत राही, महेश टिकरी, हेम केशवदत्ता मिश्रा और विजय नान टिकरी को भी सभी आरोपों से बरी किया गया है. ये सभी इस केस में आरोपी थे. सुनवाई के बीच, अगस्त 2022 में मामले के एक और आरोपी पांडु नरोटे की मौत हो गई थी.

साईबाबा दिल्ली यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे. उन्होंने हमेशा अपने खिलाफ लगे आरोपों को झूठा बताया है.

डेढ़ साल पहले भी आया था रिहाई का फैसला, लेकिन...

इससे पहले 14 अक्टूबर 2022 को भी बॉम्बे हाई कोर्ट ने जीएन साईबाबा को रिहा करने का आदेश दिया था. तब भी नागपुर बेंच ने कहा था कि अगर साईबाबा किसी और मामले में बंद नहीं हैं तो उन्हें तुरंत जेल से रिहा किया जाना चाहिए. हालांकि एक दिन बाद ही महाराष्ट्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. फिर 15 अक्टूबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने साईबाबा की रिहाई का आदेश रोक दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि आरोपियों के खिलाफ अपराध गंभीर किस्म के हैं. तब जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा था कि हाई कोर्ट के फैसले में एक विस्तृत जांच की जरूरत है क्योंकि हाई कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ गंभीर अपराध को देखते हुए मामले की मेरिट पर विचार नहीं किया है. साईबाबा समेत सभी आरोपियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से कहा था कि वो मामले की फिर से सुनवाई करे.

उम्रकैद की सजा मिली

मई 2014 में पुलिस ने जीएन साईबाबा को दिल्ली यूनिवर्सिटी के उनके घर से गिरफ्तार किया था. उनपर प्रतिबंधित माओवादी पार्टी से संपर्क होने का आरोप लगाया था. पुलिस अधिकारियों ने तब कहा था कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के एक छात्र हेमंत मिश्रा को भी माओवादियों से संपर्क रखने के कारण गिरफ्तार किया गया था. पुलिस का कहना था कि पूछताछ के दौरान मिश्रा ने ही साईबाबा के माओवादियों से संबंध होने की बात कही थी. इसी बयान के आधार पर साईबाबा को गिरफ्तार किया गया था.

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पुलिस ने कहा था कि हेमंत मिश्रा से पूछताछ के दौरान पता चला कि छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ जंगलों में साईबाबा की माओवादियों से मुलाकात हुई थी और ये मुलाकात हेमंत मिश्रा ने ही करवाई थी. महाराष्ट्र पुलिस ने साईबाबा पर माओवादी पार्टी के लिए काम करने का आरोप लगाया. पुलिस ने ये भी कहा था कि साईबाबा ने 2012 में प्रतिबंधित संगठन रेवल्यूशनरी डेमोक्रैटिक फ्रंट (RDF) की एक कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया था. गढ़चिरौली की जिला अदालत में सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के वकील ने ये तक कहा था,

"साईबाबा (संगठन के) डेप्युटी जॉइंट सेक्रेटरी थे. उन्होंने एक भाषण में कहा कि नक्सलवाद ही लोकतांत्रिक सरकार की व्यवस्था को खत्म करने का इकलौता रास्ता है."

महाराष्ट्र पुलिस ने जांच के बाद सभी आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) (UAPA) और IPC की धाराओं के तहत चार्जशीट फाइल की थी. साल 2017 में गढ़चिरौली जिला अदालत ने साईबाबा और अन्य आरोपियों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई. बाद में सभी अभियुक्तों ने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. अब हाई कोर्ट से दोबारा उन सबकी रिहाई का आदेश आया है.

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