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काछाथीवू द्वीप पर एस जयशंकर ने गिनाई नेहरू की 'गलती', जवाब देने पी चिदंबरम सामने आए

चिदंबरम ने जयशंकर को लेकर जवाब दिया कि लोग कितनी जल्दी रंग बदल लेते हैं.

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काछाथीवू द्वीप को लेकर बीजेपी और कांग्रेस की बयानबाजी जारी है. (फोटो- पीटीआई)

लोकसभा चुनाव से पहले भारत के दक्षिण में स्थित काछाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) को लेकर विवाद गहरा गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के मंत्री कांग्रेस और डीएमके को इस मुद्दे को लेकर घेर रहे हैं. वे कह रहे हैं कि लोगों को ये जानने का अधिकार है कि काछाथीवू द्वीप कैसे श्रीलंका को दे दिया गया. वहीं, अब कांग्रेस के कई नेता मोदी सरकार को बांग्लादेश और चीन के मुद्दों पर घेर रहे हैं. आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार ने चीन को हजारों वर्ग किलोमीटर की जमीन दे दी.

ये पूरा विवाद तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष के अन्नामलाई को आरटीआई से मिली जानकारी के बाद शुरू हुआ है. 31 मार्च को अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में इस RTI से मिली जानकारी पर एक रिपोर्ट छपी थी. रिपोर्ट में कहा गया कि भारत सरकार के ढीले रवैये के कारण 1974 में काछाथीवू द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया. ये भी कहा गया है कि तब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता एम करुणानिधि ने भी अपनी सहमति दी थी.

प्रधानमंत्री ने किस बात पर घेरा?

इस रिपोर्ट के आने के बाद बीजेपी पिछले दो दिन से कांग्रेस को घेर रही है. 31 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुद्दे को मेरठ की चुनावी रैली में भी उठा दिया. कहा था कि आज ही कांग्रेस का एक और देश विरोधी कारनामा देश के सामने आया है. पीएम ने कहा, 

"तमिलनाडु में भारत के समुद्री तट से कुछ दूर, श्रीलंका और तमिलनाडु के बीच एक द्वीप है- काछाथीवू. यह द्वीप राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है. जब देश आजाद हुआ तो यह द्वीप हमारे पास था और यह भारत का अभिन्न अंग रहा है. लेकिन कांग्रेस ने 4-5 दशक पहले कह दिया कि यह द्वीप गैरजरूरी है, फालतू है, यहां तो कुछ होता ही नहीं है और ये कहते हुए आजाद भारत में कांग्रेस के लोगों ने मां भारती का एक अंग काट दिया और भारत से अलग कर दिया. देश कांग्रेस के रवैये की कीमत आजतक चुका रहा है. भारत के मछुआरे मछली पकड़ने के लिए समंदर में जाते हैं, इस द्वीप की तरफ जाते हैं तो इन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है, उनकी नाव को कब्जा कर लिया जाता है. ये कांग्रेस के पाप का परिणाम है कि हमारे मछुआरे आज भी सजा भुगतते चले जा रहे हैं."

फिर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक अप्रैल को इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की. जयशंकर ने कहा कि तब के प्रधानमंत्री ने इस द्वीप को लेकर लापरवाही बरती, इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. उन्होंने कहा,

“मई 1961 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिखा था कि वे इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देते हैं और उन्हें इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी. उनका रवैया ऐसा था कि जितना जल्दी कच्चाथीवू को श्रीलंका को दे दिया जाए, उतना बेहतर होगा. यही नजरिया इंदिरा गांधी का भी था.”

उन्होंने कहा कि ये मुद्दा अभी इसलिए उठ रहा है कि ये लोगों को मुद्दा है. इस पर बात इसलिए हो रही है कि मछुआरे आज भी गिरफ्तार हो रहे हैं और नाव आज भी जब्त की जा रही है.

काछातीवू द्वीप

जयशंकर ने आगे कहा कि लोगों को ये जानने का हक है कि कैसे काछातीवू द्वीप को श्रीलंका को दे दिया गया. और कैसे 1976 में भारतीय मछुआरों का मछली पकड़ने का अधिकार भी श्रीलंका को दे दिया गया. उन्होंने कांग्रेस और डीएमके को घेरते हुए ये भी कहा कि दोनों पार्टियां इस मुद्दे पर ऐसे बात कर रही हैं, जैसे उनकी कोई जिम्मेदारी ही नहीं है.

कांग्रेस ने क्या जवाब दिया?

लेकिन अब कांग्रेस नेता आरोपों जवाब दे रहे हैं. पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के सीनियर नेता पी चिदंबरम ने X (पहले ट्विटर) पर लिखा, 

“जैसे को तैसा करना पुराना हो गया. ट्वीट के बदले ट्वीट नया हथियार है. क्या विदेश मंत्री 27 जनवरी 2015 के आरटीआई जवाब का जिक्र करेंगे. मुझे पूरा भरोसा है कि 27 जनवरी 2015 को जयशंकर विदेश सचिव थे. आरटीआई जवाब में उन परिस्थितियों को सही ठहराया गया था जिसके तहत भारत ने माना कि एक छोटा सा द्वीप (काछातीवू) श्रीलंका का है. अब विदेश मंत्री और उनका मंत्रालय ऐसे क्यों बदल रहे हैं? कितनी जल्दी लोग रंग बदल लेते हैं. एक विनम्र उदार विदेश सेवा के अधिकारी और एक तेजतर्रार विदेश सचिव से आरएसएस-बीजेपी के प्रवक्ता बनने तक, जयशंकर के जीवन और समय को इस कलाबाजी के खेल में दर्ज किया जाएगा”

उन्होंने एक और पोस्ट में लिखा कि ये सही है कि पिछले 50 सालों में मछुआरों को पकड़ा गया है और उसी तरह भारत ने भी श्रीलंका के मछुआरों को पकड़ा. उन्होंने एक्स पर लिखा, 

"सभी सरकारों ने श्रीलंका के साथ बातचीत की और मछुआरों को छुड़ाया. ये तब भी हुआ जब जयशंकर एक विदेशी सेवा के अफसर थे और जब वे विदेश सचिव थे और जब वे विदेश मंत्री हैं. कांग्रेस और डीएमके के खिलाफ बयानबाजी करके जयशंकर के लिए क्या बदल गया? क्या मछुआरे तब नहीं पकड़े जाते थे जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और बीजेपी सत्ता में थी. या तमिलनाडु में जब अलग-अलग दलों के साथ गठबंधन में थी. क्या श्रीलंका ने मछुआरों को तब नहीं पकड़ा जब 2014 के बाद मोदी सत्ता में आए?"

वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने आरोपों के जवाब में कहा कि प्रधानमंत्री तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं. उन्होंने कहा कि ये द्वीप हमने दोस्ती के चलते दिया था. लेकिन ये द्वीप देते वक्त कन्याकुमारी में मछली पकड़ने का अधिकार हमने लिया. द्वीप देने के वक्त मछुआरों को और तीर्थयात्रियों के जाने पर कोई रोक नहीं लगी. पवन खेड़ा ने कहा कि जयशंकर ने विदेश सचिव रहते हुए एक आरटीआई में बताया कि ऐसी कोई डील नहीं हुई कि हमारी जमीन वहां चली गई है या उनसे हमने कोई जमीन ली हो.

ये भी पढ़ें- भारत ने श्रीलंका को तोहफे में आइलैंड दे दिया! काछाथीवू द्वीप की पूरी कहानी

पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री को भारत-बांग्लादेश के बीच 2015 में हुए जमीन समझौते की याद दिलाई. इस समझौते के तहत जुलाई 2015 में भारत में मौजूद 111 एन्क्लेव बांग्लादेश में चले गए और 51 भारत का हिस्सा बन गए. खेड़ा ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, 

"ये भी मैत्री थी. बांग्लादेश ने कोई जोर-जबरदस्ती से नहीं लिया. ना ही आपने डर के किया. लेकिन आपने जो डर से किया, वो चीन के साथ. चीन हजारों किलोमीटर अंदर घुस आया है. लद्दाख में सोनम वांगचुक लगातार ये मुद्दा उठा रहे हैं. आपके अपने अरुणाचल के सांसद ये मुद्दा उठा चुके हैं. आपने आंखें बंद करके क्लीन चिट दे दी. वो होता है भय. डर से कुछ देने और मित्रता में देने में फर्क होता है."

रिपोर्ट में क्या सामने आया?

ये तथ्य पहले से सार्वजनिक है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में काछातीवू द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था. लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में RTI जवाब के हवाले से बताया गया है कि इसमें करुणानिधि ने भी अपना समर्थन दिया था. रिपोर्ट में ये भी लिखा गया है कि जवाहर लाल नेहरु ने 10 मई 1961 को कहा था कि वे इस छोटे से द्वीप को कोई महत्व नहीं देते हैं और उन्हें इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई झिझक नहीं होगी. रिपोर्ट के मुताबिक, नेहरु ने कहा था कि वे इस मुद्दे को अनिश्चितकाल तक लंबित रखने के पक्ष में नहीं हैं. 

साल 1974 तक दोनों देश इस द्वीप प्रशासन संभाल रहे थे. ये द्वीप मुख्य रूप से मछली पकड़ने की जगह था. दोनों देश के मछुआरे इसका इस्तेमाल करते थे. 1974 में समुद्री सीमारेखा विवाद को सुलझाने के लिए दोनों देशों की एक बैठक हुई थी. इसी दौरान समझौता हुआ और भारत ने काछाथीवू द्वीप श्रीलंका को दे दिया.

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