"पिछले एक साल में पानी के बदलते स्तर की वजह से इसे चार-पांच दिन के लिए देखा गया था."इनटैक के महानदी प्रोजेक्ट के प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर अनिल धीर ने 'इंडिया टुडे' को बताया-
"हम महानदी के स्मारकों को डॉक्यूमेंट करते रहे हैं. महानदी के उद्गम से लेकर उसके समुद्र से मिलने तक. दोनों किनारों पर पांच किमी की रेडियस में, जहां विरासत पानी के नीचे डूबी हुई है. लोग पहले से जानते थे कि इसके नीचे एक मंदिर है, लेकिन पिछले 25 साल से यह पानी के ऊपर दिखाई नहीं दे रहा था."नयागढ़ के सब-कलेक्टर लग्नजित रौत ने बताया कि उन्होंने गांव वालों को मंदिर देखने के लिए नदी में जाने से मना किया है. बाढ़ आने से डूब गया था पूरा गांव मंदिर के मस्तक के डिज़ाइन और निर्माण में इस्तेमाल हुए पदार्थ पर गौर किया गया, जिससे इसके निर्माण काल के बारे में अंदाज़ा होता है. पुरातत्व विशेषज्ञ दीपक कुमार नायक ने बताया-
"60 फ़ुट का यह मंदिर भगवान विष्णु के एक रूप भगवान गोपीनाथ का है. यह 15वीं सदी के अंत या 16वीं सदी के शुरुआत का बना हुआ है."जिस जगह पर मंदिर मिला है, इसे सतपतना माना जाता था, यानी सात गांवों का समूह. पद्माबती गांव इसी समूह का हिस्सा था. 150 साल पहले एक बाढ़ आई. नदी का रास्ता बदल गया और 19वीं सदी में पूरा गांव डूब गया. पद्माबती गांव के लोगों ने कहा कि इस इलाके में पानी के नीचे 22 मंदिर हैं, लेकिन केवल गोपीनाथ देव मंदिर का मस्तक कुछ साल से दिख रहा था, क्योंकि यह सबसे ऊंचा है.
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