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हिंदी की अकेली कविता जिस पर अनुराग कश्यप ने आइटम सॉन्ग बना दिया है

'तुम राजघाट का शांति मार्च, मैं हिंदू-मुस्लिम दंगा हूं.' एक कविता रोज़ में पढ़ें ये पूरी मज़ेदार पोयम.

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# 'मुश्किल है अपना मेल प्रिये' - उपमा यानी मेटाफर का, ढेर सारे मेटाफर का उपयोग करके सत्रह वर्ष पहले लिखी गई एक ऐसी हास्य कविता जो न केवल टाइम प्रूफ हो चुकी है बल्कि सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव के बाद तो और ज़्यादा चर्चित हो गई है. Poem 1 # ये अपने आप में कविता तो है ही, कविता का टेम्पलेट भी है. टेम्पलेट - मतलब जिसमें आप अपनी मर्ज़ी से कुछ शब्द बदल कर अपनी एक कविता बना सकते हो. टेम्पलेट - जैसे पिज़्ज़ा का बेस जिसमें आप अपनी मर्ज़ी से टॉपिंग्स डाल कर उसे अपने 'स्वाद' के अनुरूप बना सकते हो. Poem 2 # ये ऐसी कविता है जिसका एक वर्ज़न डायरेक्टर नुराग कश्यप ने अपनी आने वाली थ्रिलर फ़िल्म 'मुक्काबाज़' में रखा है. Poem 3 # अनुराग कश्यप कहते हैंः "मैं काफी बड़ा फैन रहा हूं डॉ. सुनील जोगी की पोयम - मुश्किल है अपना मेल प्रिये  का. और ये जो पोयम है, ये सालों से हमारे अन-इक्वल (असमान) प्यार की व्यथा डिस्क्राइब (वर्णित) करती आई है." Poem 4 # अनुराग आगे कहते हैं:  "यह सत्रह साल पुरानी कविता है, जिसको हमने फाइनली कम्पोज़ किया है. और उसको हमने इस तरह से किया है इस फ़िल्म में कि वो हमारा आइटम सॉन्ग भी बन गया." Poem 5 # अपनी बात को खत्म करते हुए वो बताते हैंः "इसमें एक बहुत बड़ा सरप्राइज़ है. जो आइटम है वो आपको ख़ास पसंद आएगा. वो बहुत ही स्माल टाउन आइटम है." Poem 6 # ये जो अनइक्वल वाली बात अनुराग ने की है वो इसलिए क्यूंकि कवि डॉ. सुनील जोगी जहां अपनी तुलना के लिए निकृष्ट चीज़ों का संदर्भ देते हैं वहीं अपनी न हो सकी प्रेमिका को उन निकृष्ट वस्तुओं की पूरक उत्कृष्ट वस्तुओं से संदर्भित करते हैं.

लल्लनटॉप के पाठक ऑरिजिनल कविता नीचे पढ़ें और हम उन्हें प्रोत्साहित करते हैं कि इसको टेम्पलेट की तरह इस्तेमाल करके अपनी कुछ निजी कविताएं लिखें:
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम MA फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम फौजी अफसर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूं तुम रबड़ी खीर मलाई हो, मैं तो सत्तू सपरेटा हूं तुम AC घर में रहती हो, मैं पेड़ के नीचे लेटा हूं तुम नई मारुती लगती हो, मैं स्कूटर लम्ब्रेटा हूं इस कदर अगर हम छुप छुप कर, आपस में प्यार बढ़ाएंगे तो एक रोज तेरे डेडी, अमरीश पुरी बन जाएंगे सब हड्डी पसली तोड़ मुझे वो भिजवा देंगे जेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूं गदहे की नाल प्रिये तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखों की हड़ताल प्रिये तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं एल्युमिनियम का थाल प्रिये तुम चिकन सूप बिरयानी हो, मैं कंकड़ वाली दाल प्रिये तुम हिरन चौकड़ी भरती हो, मैं हूं कछुए की चाल प्रिये तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हूं बबूल की छाल प्रिये मैं पके आम सा लटका हूं मत मारो मुझे गुलेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये मैं शनि देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कंचन काया हो मैं तन से मन से कांशीराम, तुम महा चंचला माया हो तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूं तुम राज घाट का शांति मार्च, मैं हिन्दू-मुस्लिम दंगा हूं तुम हो पूनम का ताजमहल, मैं काली गुफा अजंता की तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूं भगवंता की तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलम-ठेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मैं पत्थर का सिलबट्टा हूं तुम AK सैंतालिस जैसी, मैं तो एक देसी कट्टा हूं तुम चतुर राबड़ी देवी सी, मैं भोला भाला लालू हूं तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मैं चिड़िया घर का भालू हूं Poem 9 तुम व्यस्त सोनिया गांधी सी, मैं वी. पी. सिंह सा खाली हूं तुम हंसी माधुरी दीक्षित की, मैं हवलदार की गाली हूं कल जेल अगर हो जाए तो, दिलवा देना तुम ‘बेल’ प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये मैं ढाबे के ढांचे जैसा, तुम पांच-सितारा होटल हो मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम ‘रेड लेबल’ की बोतल हो तुम चित्रहार का मधुर गीत, मैं कृषि दर्शन की झाड़ी हूं तुम विश्व सुन्दरी सी कमाल, मैं तेलिया-छाप कबाड़ी हूं Poem 8 तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन वाला चोगा तुम मछली मनसरोवर की, मैं हूं सागर तट का घोंघा दस मंजिल से गिर जाऊंगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूं तुम हो ममता, जयललिता सी, मैं कुंआरा अटल बिहारी हूं तुम तेंदुलकर* का शतक प्रिये, मैं फॉलो-ऑन की पारी हूं तुम गेट्ज, मारुती, सैंट्रो हो, मैं लेलैंड की लारी हूं Poem 7 मुझको रेफ्री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये. *अनुराग वाले वर्ज़न में तेंदुलकर को विराट से रिप्लेस कर दिया है.

फ़िल्म 'मुक्काबाज़' का वर्ज़न ये है. एक बड़ा सरप्राइज़ भी है जो फैंस को मज़ा दे जाएगाः

 ये रही कविता, सुनील जोगी की आवाज़ में:

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