अमरीश मेरे फेवरेट विलेन हैं. दुनिया में उनसे अच्छा विलेन न कभी हुआ है, न कभी होगा.अधिकतर फिल्मों में निगेटिव रोल करने वाले पुरी के जीवन में पॉजिटीव डायलॉग्स की भारी कमी रही है. बावजूद इसके उनके कई डायलॉग्स आज भी लोगों की ज़ुबान पर रहते हैं. कुछ डायलॉग्स तो ऐसे भी हैं, जिन्हें उनकी पर्सनैलिटी के साथ मैचकर खूब बेचा गया है, जबकि उन्होंने वो बोला भी नहीं है. पिछले दिनों 'आओ कभी हवेली' वाला मीम मार्केट में भयानक वायरल हुआ था. 1986 में आई फिल्म 'नगीना' में अमरीश पुरी ने सपेरे भैरवनाथ का रोल किया था. उनके इस किरदार की फोटो और साथ में 'आओ कभी हवेली पर' लिखकर इतना फैलाया गया कि लोगों ने इसे तकिया कलाम बना लिया. टी-शर्ट, कॉफी मग से लेकर लोगों के स्टेटस पर अमरीश पुरी के इस अनकहे डायलॉग ने कब्ज़ा कर लिया.

एक समय में ये डायलॉग मार्केट का सबसे हॉट जोक हुआ करता था.
किसी से कोई काम हो, सब हवेली पर ही बुला रहे थे. अमरीश पुरी के किरदार की उस तस्वीर को देखकर एक समय के लिए आपको भी विश्वास हो जाएगा कि ये डायलॉग इसी आदमी ने बोला होगा. लेकिन ये गलत है. अमरीश पुरी ने अपने पूरे करियर में ये कभी नहीं कहा. हालांकि इससे मिलता-जुलता एक डायलॉग परेश रावल ने बोला था. फिल्म 'दिलवाले' में. जब सुनील शेट्टी पुलिस हेडक्वॉर्टर में परेश से कुछ पूछते हैं, तो जवाब में परेश रावल कहते हैं- 'हवेली पे आ जाना'. परेश रावल का वो डायलॉग आप यहां सुन सकते हैं-
हालांकि इस डायलॉग के उनके हिस्से में नहीं होने से अमरीश पुरी को कोई खास फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनके पास ऐसे कई डायलॉग्स हैं, जो इससे बेहतर और ज़्यादा पावरफुल हैं. पढ़िए अमरीश पुरी के पांच जबरदस्त डायलॉग्स-
1.) मोगैंबो खुश हुआ!1987 में आई फिल्म 'मिस्टर इंडिया' के अरुण कुमार को आप एक पल के लिए भूल सकते हैं, लेकिन मोगैंबो की खुशी कभी दिमाग से नहीं जाती.
2.) जा सिमरन जा, जी ले अपनी ज़िंदगीये आपको बहुत क्लीशे लग सकता है, लेकिन 1995 में आई 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के इस डायलॉग ने अमरीश पुरी को जनता के बीच अमर कर दिया. या यूं कहें कि अमरीश पुरी ने इस डायलॉग को अमर कर दिया.
3.) जो ज़िंदगी मुझसे टकराती है, वो सिसक-सिसककर दम तोड़ती है.1990 में 'घायल' का बलवंत राय अपने आगे के करियर में भी इस डायलॉग जितना ही प्रासंगिक रहा.
4.) इतने टुकड़े करूंगा कि पहचाना नहीं जाएगा.लेकिन हद तो तब हो गई, जब अशरफ अली की इस धमकी के बावजूद तारा सिंह अपनी जगह से नहीं हिला और उसका 'गदर' (2001) ज़ारी रहा.
5.) नागर की जगह हासिल करने के लिए जेब में पैसे नहीं बाजुओं में ताकत चाहिए. अपनी औकात से बढ़कर बात मत किया कर सामी. कहीं ऐसा न हो कि जिस क्लब पर तुझे बड़ा नाज़ है, वहां कुत्तों का अस्पताल खुल जाए.1989 में आई फिल्म 'इलाका' से अमरीश पुरी का यादगार डायलॉग.
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