The Lallantop

तालिबान के राज में अफगानिस्तान की करेंसी दुनिया में 'अव्वल' कैसे बन गई?

सितंबर तिमाही में अफ़ग़ानिस्तान की करेंसी अफ़ग़ानी दुनिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गई है. अफ़ग़ानी के मूल्य में 9 फ़ीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है.

post-main-image
अफ़ग़ानिस्तान बड़े पैमाने पर ग़रीबी, बेरोज़गारी और मंहगाई से जूझ रहा है. (फोटो - इंडिया टुडे)

अगस्त 2021 में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया. तब से वही शासन कर रहे हैं. अब तो कई देशों ने भी तालिबान की हुकूमत को मान्यता दे दी है. जब से वो सत्ता पर क़ाबिज़ हैं, तब से कई चिंताजनक ख़बरें आईं. ख़ासकर महिलाओं और सार्वजनिक जीवन में उनकी भागेदारी के प्रति दमन की ख़बरें. मानवीय इंडेक्स पर भले ही अफ़ग़ानिस्तान नीचे सरकता जा रहा हो, लेकिन एक इंडेक्स में देश अव्वल हो गया है. पैसे के इंडेक्स में.

ब्लूमबर्ग की एक समीक्षा के मुताबिक़, सितंबर तिमाही में अफ़ग़ानिस्तान की करेंसी ‘अफ़ग़ानी' दुनिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गई है. अफ़ग़ानी के मूल्य में 9 फ़ीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है.

लेकिन ये हुआ कैसे?

अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक स्थिति कभी बहुत अच्छी रही नहीं. एशियन डेवलेपमेंट बैंक के आंकड़ों की कहें तो 2020 तक आधी आबादी (49% जनता) ग़रीबी रेखा के नीचे रह रही थी. यहां तक कि 2022 के मध्य तक, दो-तिहाई अफ़ग़ान परिवारों को खाने और बाक़ी बुनियादी चीज़ों के लाले थे. पैसा कमाने के लिए परिवार के पुरुषों को कम-उत्पादकता वाले काम करने पड़े. तो इस स्थिति के रहते हुए सबसे अच्छी करेंसी कैसे?

पहले तो सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली करेंसी का मतलब समझिए. किसी करेंसी के रंग, आकार, मेटरियल क्वॉलिटी से तय नहीं होता कि अमुक करेंसी का 'वज़न' कितना है? करेंसी के अच्छा प्रदर्शन करने का मतलब है मार्केट में उसका प्रचलन बढ़ना. माने मार्केट में दिखेगा तो बिकेगा.

ये भी देखें - तालिबान की नई सरकार सालों पुरानी बचा पोश की परंपरा खत्म कर देगी?

अब सवाल है कि मार्केट में चलन बढ़ा कैसे? दो कारण हैं. एक बाहरी, दूसरा अंदरी.

बाहरी ये कि इस वक़्त देश को अरबों डॉलर की मानवीय मदद मिल रही है. आर्थिक कठिनाइयों को कम करने के लिए 2021 के अंत से ही UN अमेरिकी डॉलर्स के खेप-के-खेप भेज रहा है, जो अब तक 330 करोड़ के आस-पास हो गए होंगे. साथ ही अफ़ग़ानिस्तान ने एशिया के पड़ोसी देशों के साथ व्यापार बढ़ाया है, जिससे निवेश बढ़ा है.

इससे इतर, अफ़ग़ानिस्तान ने अपनी नीतियों में भी बदलाव किए हैं. अपनी मुद्रा पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए तालिबान ने स्थानीय लेनदेन में अमेरिकी डॉलर और पाकिस्तानी रुपये के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके अलावा, उन्होंने देश से अमेरिकी डॉलर के बाहर जाने पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं. ऑनलाइन करेंसी ट्रेडिंग को अपराध घोषित कर दिया है और अपराधियों को सख़्त निर्देश हैं कि जेल में डाल देंगे.

तिमाही में तो अव्वल आ गया, मगर आज की तारीख़ में दुनिया की करेंसी के प्रदर्शन में अफ़ग़ानी तीसरे नंबर पर है. पहले नंबर पर कोलंबिया का कोलंबियन पेसो और दूसरे पर श्रीलंका का रुपया है.

ये भी पढ़ें - अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी में महिलाओं का प्रदर्शन 

हालांकि, इस सफलता के बावजूद अफ़ग़ानिस्तान बड़े पैमाने पर ग़रीबी, बेरोज़गारी और वैश्विक मंच पर गंभीर मानवाधिकार रिकॉर्ड से जूझ रहा है. वर्ल्ड बैंक की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण अफ़ग़ानिस्तान दुनिया के वित्तीय सिस्टम से कटा हुआ है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अफ़ग़ानिस्तान को इस साल लगभग 3.2 बिलियन डॉलर (क़रीब 27 हज़ार करोड़) की आर्थिक मदद चाहिए. और, अभी केवल 1.1 बिलियन डॉलर (क़रीब 9 हज़ार करोड़) ही दिए गए हैं.

वीडियो: दुनियादारी: अफगानिस्तान वॉर में ब्रिटेन की स्पेशल फोर्स ने क्या कांड किया था?