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Chandrayan 3 के बाद Aditya L-1 ने अब क्या किया, जो ISRO वाले खुश हैं?

Aditya L-1 सूर्य से जुड़ी जानकारी जुटाने गया है. 18 सितंबर तक आदित्य L-1 पांच कक्षाओं को पार करेगा.

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भारत का पहला सौर मिशन आदित्य L-1 दूसरी कक्षा में पहुंचा, अगली कक्षा में 10 सितंबर को पहुंचेगा. (फोटो क्रेडिट - ISRO ट्विटर)

Chandrayan 3 के बाद ISRO का आदित्य एल-1 (Aditya L-1) चर्चा में है. 5 सितंबर को इसने धरती की ऑर्बिट में दूसरी छलांग लगाई है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने बताया कि हमारे पहले सौर मिशन का स्पेसक्राफ्ट अब 282 किमी*40,225 किमी के ऑर्बिट में है. ISRO ने एक ट्वीट में बताया,

"आदित्य एल-1 मिशन ने अपना दूसरा कदम सफलता के साथ पूरा कर लिया है. ऑपरेशन के दौरान मॉरीशस, बेंगलुरु और पोर्ट ब्लेयर के टेलोमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड नेटवर्क(Istrac) और ISRO के ग्राउंड स्टेशनों ने सैटेलाइट को ट्रैक किया है. आदित्य एल-1 अब अपनी नई कक्षा 82 किमी*40,225 किमी में पहुंच गया है. 10 सितंबर 2023 करीब 2:30 बजे इसका अपनी अगली कक्षा में जाना निर्धारित है."

2 सितंबर को लॉन्च हुआ था आदित्य L-1

2 सितंबर को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित लॉन्च स्टेशन से आदित्य एल-1 को अंतरिक्ष में भेजा गया था. इसके एक दिन बाद ही आदित्य एल-1 अपनी पहली कक्षा 245 किमी*22,459 किमी में पहुंच गया था. आदित्य एल-1 सूरज के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी जुटाने के लिए बनाई गई सैटेलाइट है. ये सूरज और धरती के बीच एल-1 पॉइंट पर रहेगी.

सूरज और पृथ्वी दोनों में गुरुत्वाकर्षण बल है. सूरज का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी से कहीं ज्यादा है. लेकिन दोनों के बीच एक पॉइंट है, यहा दोनों का गुरुत्वाकर्षण एक-दूसरे को संतुलित करता है. अगर इस पॉइंट से गुजरने वाले ऑर्बिट पर कोई सैटेलाइट हो तो वो न सूरज की तरफ जाएगी, न ही धरती की तरफ. सूरज और धरती के बीच ऐसे 5 पॉइंट तय किए गए हैं. एल-1 इन्हीं में से एक पॉइंट है.

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18 सितंबर को 5वीं कक्षा में पहुंचेगा आदित्य L-1

ISRO के मुताबिक, आदित्य एल-1 इसी पॉइंट पर रहेगा. और सूरज की तरफ देखते हुए उसकी जानकारी इकट्ठा करेगा. ये 18 सितंबर तक सूरज की तरफ बढ़ते हुए 5वीं कक्षा में पहुंचेगा. इसके बाद ये एल-1 पॉइंट की तरफ आगे बढ़ेगा.

यहां से ये सूरज की सतह की ऊपरी परत कोरोना की गर्मी और सोलर विंड (सौर हवा) की स्पीड बढ़ने के पीछे के रहस्य के बारे में जानकारी जुटाएगा. इसके साथ ही सूरज के वातावरण को समझने, अलग-अलग दिशाओं में मापने पर सूरज के तापमान में आने वाले बदलाव (Anisotropy) का अध्ययन करने, कोरोनल मास इंजेक्शन (CME), सोलर फ्लेयर आदि कैसे बनते हैं, ये सब समझने की कोशिश करेगा. इस मिशन को पूरा होने में करीब 4 महीने का समय लगेगा. 

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