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22 साल पहले पाकिस्तान के लिए जासूसी का आरोप लगा था, अब जज बनने जा रहे हैं ये शख्स

मामला Kanpur का है. पिछले हफ्ते ही Allahabad High Court ने उत्तर प्रदेश सरकार को आर्डर देकर कहा कि वे 2002 में गिरफ्तार किए गए Pradeep Kumar को Additional District Judge नियुक्त करने के लिए लेटर जारी करें. जून, 2002 में Pradeep के ऊपर देशद्रोह, आपराधिक साजिश और ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था.

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पाकिस्तान के लिए जासूसी के लगे थे आरोप (फोटो साभार: आजतक)

दो दशक पहले जिन शख्स को ‘पाकिस्तान’ (Pakistan) के लिए जाससूी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, अब वो जज बनने जा रहे हैं. मामला कानपुर (Kanpur) का है. पिछले हफ्ते ही इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश सरकार को आर्डर दिया. कहा कि वे 2002 में गिरफ्तार किए गए प्रदीप कुमार (Pradeep Kumar) को अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (Additional District Judge) नियुक्त करने के लिए लेटर जारी करें. जून, 2002 में प्रदीप के ऊपर देशद्रोह, आपराधिक साजिश और ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज हुआ था. इसके बाद 2014 में उन्हें रिहा कर दिया गया था.

क्या था पूरा मामला?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 13 जून, 2002 को STF और मिलिट्री इंटेलीजेंस के एक ऑपरेशन में प्रदीप कुमार को गिरफ्तार किया गया था. एक सेना अधिकारी की तरफ से जिला मजिस्ट्रेट को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया था कि 2002 में 24 साल के प्रदीप कुमार लॉ के स्टूडेंट थे. इसी दौरान वे ‘फैजान इलाही’ नाम के एक शख्स के संपर्क में आए थे. जो एक फोटोस्टेट की दुकान चलाता था. फैजान ने प्रदीप से कथित तौर कुछ पैसों के बदले टेलीफोन पर कुछ जानकारी देने के लिए कहा था. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि प्रदीप ने पैसे के बदले में कानपुर छावनी की संवेदनशील जानकारी दी.

‘सबूत’ न होने पर किया बरी

प्रदीप पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया गया था. उन पर देशद्रोह , आपराधिक साजिश और ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट के अलग-अलग प्रावधानों के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. कानपुर की एक अदालत ने 2014 में उन्हें बरी कर दिया. बरी करते हुए अपने आदेश में कोर्ट ने कहा था,

"अभियोजन पक्ष (Prosecutors) को यह दिखाना होगा कि आरोपी ने शब्दों, संकेतों या विजुअल चित्रण के माध्यम से सरकार के प्रति घृणा या अवमानना ​​को भड़काने का प्रयास किया है. इस मामले में, सरकार के खिलाफ़ ऐसी कार्रवाइयों के दावों को पुष्ट करने के लिए कोई सबूत रिकॉर्ड पर नहीं है."

‘जज’ बनने के लिए दिया एग्जाम

2014 में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. बरी होने से पहले प्रदीप को दो मुकदमों में जेल में भी रहना पड़ा था. बरी होने के दो साल बाद यानी 2016 में, प्रदीप कुमार ने यूपी उच्च न्यायिक सेवा (UP Higher Judicial Service Exam) के लिए एग्जाम दिया. ये सीधी भर्ती थी, जिसमें उन्हें मेरिट सूची में 27वां स्थान मिला था. 18 अगस्त, 2017 को हाई कोर्ट ने अन्य चयनित उम्मीदवारों के साथ उनकी नियुक्ति की सिफारिश राज्य सरकार से की. हालांकि, प्रदीप कुमार को तब नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया गया था. 

इसके जवाब में प्रदीप ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने अगस्त 2017 में राज्य सरकार को दो हफ्ते के भीतर मामले को राज्यपाल के सामने  प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. इसके अलावा अदालत ने याचिकाकर्ता की नियुक्ति के संबंध में राज्य के ‘उदासीन रवैये’ और देरी के लिए 10 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.

‘राज्य सरकार’ के खिलाफ कोर्ट पहुंचे

मामले की राज्य सरकार ने समीक्षा की. इसके बाद 26 सितंबर, 2019 को एक कार्यालय ज्ञापन के माध्यम से याचिकाकर्ता को नियुक्त करने से इनकार कर दिया गया. इसके बाद प्रदीप कुमार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में फिर एक नई याचिका दायर की. याचिका में प्रदीप ने राज्य सरकार के 2019 के आदेश को रद्द करने की प्रार्थना की और यूपी उच्च न्यायिक सेवा में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की मांग की.

6 दिसंबर को हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस दोनादी रमेश की खंडपीठ ने राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया और प्रदीप कुमार को दो हफ्ते के भीतर नियुक्त करने को कहा. कोर्ट ने कहा, “ सभी औपचारिकताएँ पूरी होने पर, याचिकाकर्ता को 15 जनवरी 2025 से पहले नियुक्ति पत्र जारी किया जा सकता है.”

‘कड़ी मेहनत से वंचित नहीं किया जा सकता’

अदालत ने अपने फैसले में आगे कहा, "इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ता ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया है. वह भारतीय खुफिया एजेंसियों की 'रडार' पर रहा था. किसी अपराध के लिए संदिग्ध होना कोई अपराध या नागरिक के चरित्र पर दाग नहीं है. यह कहना कि किसी नागरिक पर कथित अपराध का शक है, इसलिए उसे उसकी कड़ी मेहनत और रिहाई से वंचित नहीं किया जा सकता.”

2019 में कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट को एक सेना अधिकारी ने रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट के मुताबिक दिलचस्प बात ये है कि प्रदीप कुमार के पिता भी 1990 में रिश्वतखोरी के आरोपों में अतिरिक्त न्यायाधीश पद से निलंबित किए गए थे. 

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